जब से इसी साल होने वाले लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हुई है तभी से ये कयास लगाए जा रहे हैं कि मोदी सरकार चुनाव से पहले कोई धमाका कर सकती है। वह कोई ऐसा कदम उठाएगी जो गेम चेंजर होगा और उसके जरिए भाजपा 2019 के लोकसभा चुनाव की वैतरणी को पार कर लेगी।
जब भी ऐसी चर्चाएं चलती थीं तो दो तीन मामलों का जिक्र हमेशा होता था। इनमें सबसे पहला नंबर राम मंदिर का था क्योंकि भाजपा खुद इस मुद्दे को पिछले कई दशकों से उठाती आई है। हाल के दिनों में उस पर राम मंदिर के निर्माण का चौतरफा दबाव भी बना है। लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट में होने के कारण सरकार दुविधा में है और शायद इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल के अपने चर्चित इंटरव्यू में यह साफ कर दिया था कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद ही सरकार इस दिशा में कोई कदम उठाएगी। उससे पहले कोई कानून या अध्यादेश लाने का उनका कोई विचार नहीं है।
दूसरा यह कहा जाता था कि यदि राम मंदिर बनाने में अड़चन आई तो मोदी सरकार भारत पाकिस्तान सीमा पर कोई बड़ी कार्रवाई कर सकती है। लेकिन अंतर्राष्ट्रीय हालात को देखते हुए ऐसे किसी बड़े फैसले के खतरों से सरकार नावाकिफ नहीं है। लिहाजा सर्जिकल स्ट्राइक टाइप घटनाओं को छोड़ कर उस मोर्चे पर भी तत्काल कुछ होने के आसार नजर नहीं आते।
हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस पार्टी ने किसान कर्ज माफी का पत्ता खेल कर बाजी पलट दी तो तीसरे मुद्दे के रूप में कहा जाने लगा कि केंद्र की मोदी सरकार भी किसानों की कर्ज माफी का बड़ा ऐलान कर सकती है। मीडिया रिपोर्ट तो यह भी कह रही थीं कि इसके लिए सरकार ने बाकायदा शुरुआती आकलन का काम भी चालू कर दिया है।
लेकिन सोमवार को मोदी केबिनेट के एक बड़े फैसले को लेकर जब टीवी चैनलों की ब्रेकिंग न्यूज चलने लगी तो लगा कि भाजपा ने चुनाव के लिए अपना तुरुप का पत्ता खोल दिया है। सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों के लिए शिक्षा संस्थाओं व नौकरियों में दस फीसदी आरक्षण का फैसला किया है।
इस आरक्षण की खास बात यह है कि यह 50 फीसदी आरक्षण की वर्तमान सीमा के अलावा होगा और इसके लिए मंगलवार को ही संसद में संविधान संशोधन लाया जा सकता है। मंगलवार को ही शीतकालीन सत्र का आखिरी दिन है। सूत्रों के अनुसार नए आरक्षण का लाभ 8 लाख रुपए तक की सालाना आमदनी के अलावा पांच एकड़ से कम जमीन वाले सवर्णों को मिल सकता है।
निश्चित रूप से मोदी सरकार ने यह कदम लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए ही उठाया है। पिछले दिनों के घटनाक्रमों को देखें तो सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद ऐसा कुछ नहीं हो पा रहा था जिससे राजनीतिक रूप से भाजपा का ग्राफ बढ़े। राम मंदिर मामले पर अपने ही यदि तीखे तेवरों के साथ जवाब मांग रहे थे तो सरकार की तमाम सफाइयों के बावजूद कांग्रेस राफेल को लेकर लगातार हमलावर हो रही थी।
रही सही कसर पांच राज्यों के चुनाव परिणामों ने पूरी कर दी थी। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में सत्ता गंवाने का झटका भाजपा के लिए बहुत बड़ा था। इन राज्यों में कांग्रेस का कर्ज माफी का पत्ता तो था ही, उसके अलावा एससी/एसटी एक्ट को लेकर सवर्ण समाज की भाजपा के प्रति नाराजी भी बहुत बड़ा कारण थी।
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने एसी/एसटी एक्ट में मामला दर्ज करने और सीधे गिरफ्तारी की प्रक्रिया में बदलाव करने का आदेश दिया था। उसके बाद दलितों ने देशभर में प्रदर्शन किया था। राजनीतिक दबाव के आगे झुकते हुए केंद्र सरकार ने इस मामले पर नया कानून बनाया जिससे सवर्ण काफी नाराज हो गए थे। मध्यप्रदेश में तो सपाक्स जैसी पार्टी का गठन ही इस मुद्दे को लेकर हुआ। सपाक्स भले ही एक भी सीट न जीत सकी हो लेकिन उसने भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने से लेकर उसके वोट गणित को बिगाड़ने में बड़ी भूमिका अदा की।
सवर्ण आरक्षण की नई घोषणा, इसी नाराज वर्ग को मनाने का उपक्रम है। उत्तरप्रदेश में जिस तरह मायावती और अखिलेश ने हाथ मिलाए हैं उससे भी भाजपा के लिए जरूरी हो गया था कि वह ऐसा कोई पुख्ता वोट जुगाड़ू उपाय ढूंढे जो चुनाव में उसके काम आ सके। फायदा कितना मिलेगा यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन निश्चित रूप से सवर्णों के लिए आरक्षण का यह फैसला राजनीति में हलचल तो जरूर मचाएगा।
दरअसल यह फैसला ही ऐसा है कि दाएं बाएं होकर कोई कुछ कहना चाहे तो भले ही कहे लेकिन कोई भी दल इसका खुलकर उसी तरह विरोध नहीं कर पाएगा जिस तरह एससी/एसटी एक्ट में हुए संशोधन का नहीं हुआ था। सरकार यदि संसद में संशोधन विधेयक लेकर आती है तो वहां उसे समर्थन देना ज्यादातर दलों की मजबूरी होगी क्योंकि विरोध का अर्थ होगा ऐन चुनाव से पहले एक बड़े वोट बैंक को अपने खिलाफ करना और कोई दल ऐसा होने देना नहीं चाहेगा।
सरकार के फैसले पर राजनीतिक दलों का रुख या उनकी मजबूरी क्या होगी इसके संकेत सोमवार से ही मिलने शुरू हो गए हैं जब आम आदमी पार्टी,एनसीपी, शिवसेना जैसे दलों ने कह दिया है कि वे इसका समर्थन करेंगे। कांग्रेस ने भी इसे लेकर ‘’छलावा या बहुत देर से किया गया फैसला’’ जैसी टिप्पणियां तो की हैं लेकिन उसने यह नहीं कहा है कि वह इसका विरोध करती है। हां, एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने जरूर कहा है कि ‘’आरक्षण दलितों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को ठीक करने के लिए है, आर्थिक आधार पर आरक्षण की अनुमति संविधान नहीं देता।‘’
लेकिन ओवैसी की यह प्रतिक्रिया भी भाजपा के लिए तो फायदेमंद ही होगी। वह तो चाहेगी कि ओवैसी जैसे मुस्लिम नेता इस कदम का और खुलकर विरोध करें ताकि लोगों में ध्रुवीकरण वाला संदेश अपने आप चला जाए। दूसरे जो लोग यह कह रहे हैं कि सरकार का कानून सुप्रीम कोर्ट में नहीं टिक पाएगा वे भी यह जान लें कि उस स्थिति में भी नुकसान भाजपा का उतना नहीं होगा। तब उसके पास गेंद को सुप्रीम कोर्ट के पाले में डाल देने की वैसी ही सुविधा रहेगी जैसी आज राम मंदिर मामले में है।