घाटे का सौदा है केंद्र व राज्‍य में एक ही दल की सरकार

मध्‍यप्रदेश के सबसे पिछड़े और अल्‍प विकसित इलाकों में शुमार किया जाने वाला बुंदेलखंड एक बार फिर सुर्खियों में है। खबर आई है कि बुंदेलखंड क्षेत्र के विकास के लिए तत्‍कालीन यूपीए सरकार ने जो विशेष पैकेज दिया था उसमें से 359 करोड़ रुपए मोदी सरकार ने मध्‍यप्रदेश को देने से इनकार कर दिया है। इसका प्रमुख कारण फंड के उपयोग में अनियमितता और घटिया निर्माण है।

नीति आयोग ने राज्‍य सरकार से साफ कह दिया है कि बुंदेलखंड विशेष पैकेज की योजना अवधि खत्‍म हो चुकी है और अब कोई राशि नहीं दी जा सकती। लिहाजा राज्‍य सरकार अपने पास उपलब्‍ध फंड में से ही संबंधित विभागों की बकाया राशि का भुगतान करे।

अब हालत यह है कि पैकेज के अंतर्गत काम कराने वाले विभाग केंद्र से राशि मिल जाने की आस में स्‍वीकृत राशि से कहीं ज्‍यादा राशि खर्च कर चुके हैं। केंद्र की ओर से राशि देने से इनकार करने के बाद इन सारे विभागों के हाथ पैर फूल गए हैं और उन्‍हें समझ ही नहीं आ रहा कि आखिर इस गड्ढे को वे कैसे भरेंगे। राज्‍य का योजना आयोग भी फंड मैनेजमेंट को लेकर भारी असमंजस में है।

दरअसल तत्‍कालीन यूपीए सरकार ने उस समय कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी के दबाव में आकर 2009 में मध्‍यप्रदेश और उत्‍तरप्रदेश में बंटे बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए विशेष पैकेज मंजूर किया था। इसके अंतर्गत मध्‍यप्रदेश को 31 मार्च 2016 तक 3226 करोड़ रुपए मंजूर किए गए थे। लेकिन 31 मार्च 2017 तक राज्‍य को इसमें से 2867 करोड़ रुपए की राशि ही मिल पाई।

अब राज्‍य को केंद्र से 359 करोड़ रुपए और लेने हैं। इस बीच राज्‍य सरकार ने पैकेज के तहत मंजूर हुए कामों पर 2984 करोड़ रुपए की राशि खर्च कर डाली है। कई काम अभी अधूरे पड़े हैं। कुछ पर काम चल रहा है तो कुछ पूरा होने की स्थिति में हैं, लेकिन इसी बीच फंड रोक दिए जाने से इन सारे कामों के भविष्‍य पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं।

हालात बिगड़ते देख राज्‍य योजना आयोग ने गत 5 दिसंबर को नीति आयोग को पत्र लिखकर बकाया राशि जारी करने की मांग एक बार फिर उठाई थी। नीति आयोग को बताया गया कि पैकेज के तहत मंजूर काम पूरे करने के लिए राज्‍य सरकार के विभिन्‍न विभागों ने अपने विभागीय बजट से पैसे खर्च कर दिए। अब उनके पास अपने लिए पैसे की तंगी हो गई है। इस खर्च ने विभागों के अपने वित्‍तीय प्रबंधन को प्रभावित किया है।

सूचनाएं कहती हैं कि बुंदेलखंड पैकेज के तहत जल संसाधन विभाग ने छोटे बांधों और स्‍टॉप डैम जैसे कई अन्‍य कामों पर अपने बजट से 228 करोड़ रुपए और वन विभाग ने पौधरोपण जैसे कामों पर अपनी जेब से 10 करोड़ रुपए ज्‍यादा खर्च कर दिए हैं। राशि के हिसाब से देखें तो पैकेज के तहत कृषि विभाग को 664 करोड़ रुपए, जल संसाधन को 1340 करोड़, लोक स्‍वास्‍थ्‍य यांत्रिकी को 291 करोड़, वन विभाग को 170 करोड़ और पशुपालन विभाग को 159 करोड़ रुपए मिले।

संशोधित अनुमान के मुताबिक केंद्र से कृषि विभाग को 40 करोड़ रुपए, जल संसाधन को 241 करोड़, लोकस्‍वास्‍थ्‍य यांत्रिकी को 60 करोड़,वन विभाग को 17 करोड़ और पशुपालन विभाग को 1.13 करोड़ रुपए लेने हैं, लेकिन इनकी कोई जुगाड़ अभी तक नहीं हो पाई है। दिक्‍कत यह है कि केंद्र सरकार को कई कामों में अनियमितता और भ्रष्‍टाचार की शिकायतें मिली हैं और इसके चलते भी शेष राशि के भुगतान की संभावना प्रभावित हुई है।

खबरें कहती हैं कि पैकेज में केंद्र सरकार ने पेयजल व्‍यवस्‍था के लिए अलग से 100 करोड़ रुपए दिए। इससे अंचल के कई गांवों में नलजल योजनाएं बनाई गईं। इन योजनाओं के क्रियान्‍वयन में भारी अनियमितताएं हुईं। मुख्‍य तकनीकी (सतर्कता) परीक्षक की जांच में ये अनियमितताएं पकड़ी भी गईं। इसी तरह गोदाम व अन्‍य निर्माण कार्यों की गुणवत्‍ता को लेकर भी कई शिकायतें हुई हैं, जिनकी जांच कराई गई है। पैकेज के तहत बने कुछ बांध व जल संरचनाएं तो पहली बारिश ही नहीं झेल सकीं।

बुंदेलखंड पैकेज पहले ही दिन से राजनीति का शिकार रहा है। इसका मूल विचार उत्‍तरप्रदेश में आने वाले चुनावों में फायदा लेने के लिहाज से पैदा हुआ था। राहुल गांधी उस समय कांग्रेस के महासचिव थे और उन्‍हीं के दबाव पर मनमोहनसिंह सरकार ने उत्‍तरप्रदेश के सात और मध्‍यप्रदेश के छह यानी कुल 13 जिलों के लिए 7266 करोड़ रुपए का विशेष पैकेज मंजूर किया था। उत्‍तरप्रदेश के जिलों में बांदा, चित्रकूट,हमीरपुर, जालौन, झांसी,ललितपुर और महोबा तथा मध्‍यप्रदेश के जिलों में सागर, छतरपुर, दमोह, टीकमगढ़, पन्‍ना और दतिया शामिल थे।

इस पैकेज की राशि के उपयोग में भारी अनियमितताओं और घपलों घोटालों के आरोप लंबे समय से लगते रहे हैं। चुनाव के दौरान खुद राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि उनके द्वारा मंजूर कराए गए बुंदेलखंड पैकेज का फायदा उत्‍तरप्रदेश व मध्‍यप्रदेश की सरकारों ने क्षेत्र के लोगों को नहीं दिया। यही नहीं कांग्रेस नेताओं ने तो यह तक आरोप लगाया था कि पैकेज में मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश सरकार को केंद्र सरकार ने मुफ्त में बिजली दी, लेकिन बुंदेलखंड के लोगों से सरकार ने उसकी कीमत वसूल ली। मध्‍यप्रदेश में हुई ऐसी ही कथित आठ हजार करोड़ रुपए की वसूली को उपभोक्‍ताओं को लौटाने की मांग भी हुई थी।

कुल मिलाकर यह राहत पैकेज मध्‍यप्रदेश के लिए आफत का पैकेज साबित हो रहा है। यह पहला मौका नहीं है जब केंद्र की मोदी सरकार ने मध्‍यप्रदेश को दी जाने वाली राशि में कटौती की हो। इससे पहले सिंहस्‍थ, किसानों को दी जाने वाली प्राकृतिक आपदा की राशि, खनिज रायल्‍टी जैसे कई मामलों में राज्‍य की मांगों को केंद्र सरकार ठुकरा चुकी है। बुंदेलखंड पैकेज का ताजा मामला एक बार फिर साबित करता है कि चुनावों के दौरान जनता के सामने, केंद्र व राज्‍य में एक ही दल की सरकार होने के कारण होने वाले अनगिनत फायदों की जो माला जपी जाती है वह दरअसल जनता के गले का फंदा ही साबित होती है।

 

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