जात पूछती ‘सरकार’ और ‘जनेऊ’ दिखाता विपक्ष

गुजरात चुनाव में जो न हो वो थोड़ा है। वहां चुनाव प्रचार के नाम पर रोज नए नाटक चल रहे हैं। एक का परदा गिरता है तो दूसरे का प्रदर्शन शुरू हो जाता है। इन सारे प्रसंगों में एक दिलचस्पत बात यह भी है कि किसी मुद्दे को मीडिया छोड़ता है तो राजनीति उसे उठा लेती है और राजनीति छोड़ती है तो मीडिया उसे लपक लेता है।

कई बार तो समानांतर रूप से राजनीति और मीडिया दोनों ही एक मुद्दे पर कबड्डी खेलते रहते हैं। ऐसा ही एक मुद्दा कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के सोमनाथ मंदिर जाने का है। मीडिया रिपोर्ट कहती हैं कि अपने चुनाव अभियान के दौरान राहुल गांधी अब तक 18 मंदिरों के दर्शन कर चुके हैं। दर्शनों की इसी श्रृंखला में 29 नवंबर को वे प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर में दर्शन करने गए थे। राहुल के इसी सोमनाथ दर्शन पर बवाल मचा हुआ है।

मामला यह है कि सोमनाथ मंदिर के रजिस्टर में राहुल गांधी का नाम ‘गैर हिन्दू दर्शनार्थी’ के रूप में दर्ज किया गया। राहुल के साथ कांग्रेस नेता और सांसद अहमद पटेल का नाम भी दर्ज है। अहमद पटेल के नाम पर तो कोई विवाद नहीं हुआ, लेकिन राहुल के मुद्दे पर राजनीतिक शास्त्रार्थ शुरू हो गया है।

दरअसल सोमनाथ मंदिर में गैर-हिंदू दर्शनार्थियों को दर्शन से पहले इस रजिस्टर में अपना नाम दर्ज करना पड़ता है। मंदिर परिसर में लगे बोर्ड पर स्पष्ट लिखा है कि सोमनाथ एक हिंदू मंदिर है और गैर-हिंदू अनुमति लेने के बाद ही इसमें प्रवेश और दर्शन कर सकते हैं। साथ ही इसके लिए बनाए गए रजिस्टर में उन्हें अपना नाम और विवरण भरना होता है।

बताया जाता है कि राहुल गांधी के मीडिया कोऑर्डिनेटर ने इस एंट्री रजिस्टर में कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी और सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल का नाम दर्ज किया। अब इस बात पर सवाल उठाया जा रहा है कि कांग्रेस उपाध्यक्ष को गैर-हिंदू के तौर पर मंदिर में प्रवेश क्यों करना पड़ा।

विवाद खड़ा होने पर पहले तो कांग्रेस की ओर से कहा गया कि राहुल गांधी का नाम बाद में मंदिर के एंट्री रजिस्टर में जोड़ा गया है। लेकिन जब कांग्रेस को इस मुद्दे के ‘राजनीतिक नफे नुकसान’ की सुध आई तो उसने दूसरा स्टैण्ड लिया। कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा ने घटना के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराते हुए आरोप लगाया कि वह असल मुद्दों से ध्यान भटकाने का काम कर रही है। हुड्डा ने कहा- ‘’सोमनाथ मंदिर के रजिस्टर में ‘राहुल गांधी जी’ लिखा दिख रहा है। अगर राहुल अपना नाम लिखते, तो खुद के नाम में ‘जी’ क्यों लगाते।‘’

इस सफाई के बावजूद कांग्रेस को लगा कि शायद इतने से भी बात नहीं बनने वाली सो कांग्रेस के एक और प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने मीडिया में आकर एक फोटो दिखाते हुए कहा कि

राहुल गांधी जी सिर्फ हिंदू नहीं हैं, बल्कि वह ‘जनेऊधारी हिंदू’ हैं। सुरजेवाला ने सबूत के तौर पर जो फोटो दिखाया वह राहुल के पिता राजीव गांधी की मृत्यु के बाद का है और उसमें राहुल गांधी जनेऊ पहने हुए अपने पिता का अस्थि विसर्जन करते दिखाई दे रहे हैं।

सुरजेवाला ने घटना को तूल देने के लिए भाजपा की निंदा करते हुए कहा कि बीजेपी को राजनीतिक संवाद इस घटिया स्तर तक नहीं ले जाना चाहिए। रजिस्‍टर में न तो राहुल गांधी के हस्ताक्षर हैं और न ही यह वह रजिस्टर है, जो एंट्री के समय राहुल गांधी को दिया गया। बात जब मंदिर प्रबंधन पर आई तो सोमनाथ मंदिर के ट्रस्टी पीके लाहिड़ी ने कहा-‘’मंदिर में गैर-हिंदू वाले रजिस्टर में वही शख्स एंट्री करता है जो वहां आता है, ऐसे में हम कहां से इस मामले में बोल सकते हैं। यह उन्हीं से पूछा जाए कि उन्होंने रजिस्टर में एंट्री क्यों दर्ज की।‘’

मामला सुर्खियों में आया तो भाजपा कहां मौका चूकने वाली थी। उसने तड़ाक से सवाल पूछ लिया कि राहुल अपना ‘असली धर्म’ बताएं। पहले भी इस मामले को उठाने वाले भाजपा के तेजतर्रार नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट किया कि ‘’राहुल को अपने धर्म की असलियत बतानी चाहिए। वे पहले भी पढ़ाई के दौरान अमेरिका के रोलिंस कॉलेज में खुद को कैथोलिक ईसाई बता चुके हैं।‘’

दरअसल राहुल गांधी के धर्म के बारे में सवाल पहले भी उठते रहे हैं, क्योंकि उनके दादा फिरोज गांधी जन्म से पारसी थे। लेकिन फिरोज और इंदिरा गांधी की शादी हिंदू विधि से हुई थी। इसी तरह राहुल के पिता राजीव और सोनिया गांधी की शादी भी आर्य समाजी तरीके से हुई थी। कांग्रेस के मुताबिक इन तथ्यों के आधार पर राहुल के हिंदू होने पर किसी को कोई ‘शक’ नहीं होना चाहिए।

लेकिन सवाल यह है कि राहुल का धर्म जानकर भाजपा आखिर करना क्या चाहती है? क्या वह राहुल को ‘गैर हिन्दू’ या कि ‘ईसाई’ साबित करके गुजरात के चुनाव में उसका फायदा लेना चाहती है? क्या इसी बहाने हिन्दुओं को प्रभावित करना चाहती है? लेकिन हिन्दू‍ धर्म तो इतना संकुचित कभी नहीं रहा। खुद भाजपा के ही लोगों ने (जरा याद कीजिए दिलीपसिंह जू देव को) दूसरे धर्म में चले गए लोगों के चरण पखार कर उन्हें फिर से हिन्दू धर्म में लौटाने का अभियान चलाया था।

ऐसे में राहुल ईसाई होते हुए भी यदि हिंदू मंदिर में चले गए और उन्होंने पूजा अर्चना कर ली तो इस पर तो हिन्दू समुदाय को खुश होना चाहिए। एक तरफ तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक मंदिर, एक कुआं और एक श्मशान की अवधारणा को स्थापित करने में लगा है और दूसरी तरफ उसे अपना मार्गदर्शक मानने वाली भाजपा, एक मंदिर जाने वाले व्यक्ति के धर्म को लेकर सवाल उठा रही है।

और कांग्रेस की भी क्या मति मारी गई है कि वह ऐसे टुच्चे सवालों पर गंभीरता से ‘रिएक्ट’ कर रही है, और जनेऊ पहने फोटो दिखाकर राहुल को ‘जनेऊ वाला हिन्दू’ साबित कर रही है। क्या खुद कांग्रेस को यह भय है कि केवल एक रजिस्टर में किसी के द्वारा नाम लिखे जाने से राहुल ‘गैर हिन्दू’ हो जाएंगे। क्या कांग्रेस भी यह मानने लगी है कि ऐसा होने पर गुजरात में उसे ‘हिन्दू वोटों’ का नुकसान उठाना पड़ेगा?

यदि ऐसा ही है तो हमें अपना सिर पीटते हुए यह मान लेना चाहिए कि यह देश कितना ही ‘डिजिटल’ हो जाए, हवा से भभूत पैदा करने वाले ‘चमत्कारों’ पर भरोसा करना वह कभी नहीं छोड़ेगा।

 

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