आरएसएस ने सोनिया को दिया जवाब

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भारत छोड़ो आंदोलन की 75 वीं वर्षगांठ के अवसर पर संसद में कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी द्वारा परोक्ष रूप से राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ का जिक्र करते हुए स्‍वतंत्रता आंदोलन में उसकी कोई भूमिका न होने संबंधी बयान देने के बाद संघ ने इस बारे में वस्‍तुस्थिति का खुलासा किया है। संघ ने सोशल मीडिया के जरिए भेजे गए संदेश में स्‍वतंत्रता आंदोलन में अपनी भूमिका का विस्‍तार से ब्‍योरा देते हुए कहा है कि हमारी यह पोस्ट सोनिया गांधी को जवाब के रूप में है।

पोस्‍ट कहती है-

– 6 अप्रैल 1930 को असहयोग आन्दोलन शुरू हुआ तो संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार जी संघचालक का दायित्व डा.परांजपे को सौंपकर अनेक स्वयंसेवकों के साथ आंदोलन में कूद पड़े।

– मई 1930 में नमक कानून के बजाए जंगल कानून तोड़कर संघ का सत्याग्रह शुरू करने का निर्णय ।

– डॉ. हेडगेवार के साथ गए जत्थे में अप्पाजी जोशी (जो बाद में संघ के सरकार्यवाह बने), दादाराव परमार्थ (जो बाद में मद्रास प्रान्त के प्रथम प्रान्त प्रचारक बने), आदि 12 प्रमुख स्वयंसेवक थे। उनको 9 महीने के सश्रम कारावास का दंड दिया गया।

– उसके बाद अ.भा.शारीरिक शिक्षण प्रमुख मार्तण्ड राव जोग, नागपुर के जिला संघचालक अप्पाजी हल्दे आदि अनेक स्वयंसेवकों तथा शाखाओं के जत्थे ने भी सत्याग्रह में भाग लिया था। सत्याग्रह के समय पुलिस की बर्बरता के शिकार बने सत्याग्रहियों की सुरक्षा के लिए 100 स्वयंसेवकों की टोली बनाई गई जिसके सदस्य सत्याग्रह के समय उपस्थित रहते थे।

– 8 अगस्त को गढ़वाल दिवस पर धारा 144 तोड़कर जुलूस निकालने पर पुलिस की मार से अनेक स्वयंसेवक घायल हुए।

– विजयदशमी 1931 को डॉ. हेडगेवार जेल में थे, विदर्भ के अष्टीचिमुर क्षेत्र में संघ के स्वयंसेवकों ने सामानांतर सरकार स्थापित कर दी। स्वयंसेवकों ने असहनीय अत्याचारों का सामना किया। उस क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक स्वयंसेवकों ने अपना जीवन बलिदान कर दिया था।

– नागपुर के निकट रामटेक के तत्कालीन नगर कार्यवाह रमाकांत केशव देशपांडे उपाख्य बालासाहेब देशपांडे को आंदोलन में भाग लेने पर मृत्यु दंड सुनाया गया। बाद में अपनी सरकार के समय मुक्त होकर उन्होंने वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना की।

देश के कोने-कोने में स्वयंसेवक जूझ रहे थे। स्वयंसेवकों द्वारा दिल्ली-मुजफ्फरनगर रेल लाइन पूरी तरह क्षतिग्रस्त कर दी गयी। आगरा के निकट बरहन रेलवे स्टेशन को जला दिया गया। मेरठ जिले में मवाना तहसील पर झंडा फहराते समय स्वयंसेवकों पर पुलिस ने गोली चलायी जिसमे अनेक घायल हुए थे।

– चतुर्थ संघचालक रज्जू भैया जी ने प्रयाग में आंदोलन किया था। संघ द्वारा 1942 के आंदोलन में भी दतोपन्त ठेंगड़ी जी सहित अनेक प्रमुख संघ नेताओं को आंदोलन के लिये भेजा गया था।

संघ का क्रांतिकारियों से रिश्ता

– क्रांतिकारियों के बीच संघ के संस्थापक हेडगेवार जी का नाम “कोकीन” था तथा शस्त्रों के लिये “एनाटमी” शब्दों का प्रयोग किया जाता था। क्रांतिकारियो से रिश्ते प्रगाढ़ होने के कारण ही 1928 में साण्डर्स की हत्या के बाद राजगुरू को डॉक्‍टर हेडगेवार ने अपने पास छिपाकर रखा था।

– 1927 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय सेनाओ को चीन भेजने के विरोध का प्रस्ताव हेडगेवार जी ने ही तैयार किया था और उस प्रस्ताव को संघ नेता ला.ख. परांजपे द्वारा सभा के सामने रखा गया था। इसी तीव्र विरोध के कारण भारतीय लोगों को चीन जाने से रोका गया था ।

– सन 1928 में ‘साइमन कमीशन’ विरोधी आंदोलन के प्रचार-प्रसार एवं लोगो को जाग्रत करने का दायित्व डॉ. हेडगेवार को सौंपा गया।

– 28 अप्रैल 1929 को वर्धा के प्रशिक्षण वर्ग में स्वयंसेवको को सार्वजनीक रूप से कहा गया “स्वराज्य’’ प्राप्ति के लिये वे अपना सर्वस्व त्याग हेतु तैयार रहें, हमारा लक्ष्य स्वराज्य प्राप्त करना है।

– संघ ने 26 जनवरी 1930 को अपनी सभी शाखाओं पर स्वतंत्रता दिवस मनाया ।

– पूना शिविर में गुरुजी तथा बाबा साहेब आप्टे ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करने का आह्वान किया।

– स्वयंसेवकों द्वारा क्रांतिकारियों व आंदोलनकारियों को देश भर में शरण दी गयी। दिल्ली प्रान्त के संघचालक हंसराज गुप्ता के निवास पर अरुणा व जयप्रकाश नारायण, पुणे के संघचालक भाउसाहब देवरस के यहाँ अच्युत पटवर्धन, आंध्र प्रदेश के प्रान्त संघचालक पण्डित सातवेलकर के यहाँ क्रांतिकारी नाना पाटिल आदि ने आवास के साथ-साथ अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया।

 

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