‘शाही’ शादी में सिर्फ एक कप कॉफी!
गिरीश उपाध्याय
बात दिसंबर 1987 की है। ग्वालियर के राजमहल में काफी चहल-पहल थी। वहां होने वाली हर गतिविधि पर दुनिया की नजर थी और वहां की छोटी सी छोटी बात भी खबर बन रही थी। मामला ग्वालियर के ‘महाराजा’ माधवराव सिंधिया की बेटी चित्रांगदाराजे सिंधिया की शादी का था, जो कश्मीर के ‘महाराजा’ डॉ. कर्णसिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह से होने जा रही थी।
उन दिनों मध्यप्रदेश की राजनीति काफी गरमाई हुई थी। मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा के साथ राजीव गांधी सरकार में रेल मंत्री माधवराव सिंधिया की जोड़ी बनी थी, जिसे मोती-माधव एक्सप्रेस के नाम से पुकारा जाता था। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह के गुट और सिंधिया गुट के बीच राजनीतिक तनातनी चरम पर थी।
समाचार एजेंसी यूएनआई का ग्वालियर ब्यूरो चीफ होने के नाते सिंधिया घराने की इस शाही शादी का कवरेज हमारे लिए खास मायने रखता था। उस जमाने में ज्यादातर अखबार खबरों के लिए समाचार एजेंसी पर ही निर्भर थे, लिहाजा रोज नई फरमाइश के साथ इस शाही शादी की खबरें देने की डिमांड न सिर्फ हमारे भोपाल और दिल्ली मुख्यालय से आतीं बल्कि अखबार भी चाहते थे कि उन्हें नियमित रूप से नए एंगल के साथ इस आयोजन की खबरें मिलें।
अब इसे राजनीतिक गुटबाजी का परिणाम कहें या कुछ और कि एक तरफ माधवराव सिंधिया अपने घर की पहली शादी की तैयारियों में लगे थे और दूसरी तरफ उस शादी को लेकर तरह तरह की चर्चाएं हो रही थीं। कोई कहता बारातियों को दस-दस तोले की सोने की चेन दी जा रही है, कोई कहता हरेक बाराती को एक-एक मारुति कार दी जाएगी। जितने मुंह उतनी बातें। शाही शादी में देश दुनिया की अनेक हस्तियों के आने की संभावना को देखकर जिला प्रशासन और नगर निगम अलग तैयारियां कर रहा था और वे तैयारियां भी राजनीति के चश्मे से देखी जाकर खबर बन रही थीं।
कुल मिलाकर इस पूरे आयोजन को शादी की तारीख आते-आते इतना विवादास्पद बना दिया गया कि वह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया। शायद यही कारण रहा कि सिंधिया से खास दोस्ती होने के बावजूद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी उस शादी में ग्वालियर नहीं आए।
सिंधिया इन सारी गतिविधियों से खासे नाराज भी थे और क्षुब्ध भी। इसी दौरान मैं एक दिन कुछ खबरें जानने के इरादे से जयविलास महल पहुंचा तो खुद माधवराव सिंधिया से ही आमना-सामना हो गया। वे शादी के लिए महल परिसर में ही बनाई गई ऊंची सी हवन वेदी की सीढ़ियों से उतर रहे थे। मुझे देखते ही उनकी भौंहें तन गईं। इससे पहले कि मैं कुछ कहता सिंधिया तेज स्वर में बोले- “गिरीश आई डोंट वांट एनी मीडिया पर्सन इन माई प्रेमिसेस…।’’
यह व्यवहार मेरे लिए अप्रत्याशित था क्योंकि सिंधिया मुझे अच्छी तरह जानते थे। युवा उम्र का असर कहिए या कुछ और… मैंने भी कह दिया- “सर मुझे भी शौक नहीं है आपके दरवाजे पर आने का, चूंकि मैं समाचार एजेंसी में काम करता हूं और मेरे लिए हर खबर के बारे में दूसरा पक्ष जानना अनिवार्य है इसलिए मैं आपका वर्जन लेने आया था। यदि आपको मीडिया की जरूरत नहीं है तो ठीक है, आगे से मैं आपके परिसर में कदम नहीं रखूंगा।’’
कहने को तो कह दिया लेकिन बाद में सोचा कि पता नहीं यह संवाद आगे क्या रूप लेगा। खैर… मैं अपने हिसाब से शादी का कवरेज करता रहा। उसी दौरान एक दिन ग्वालियर के तत्कालीन एस.पी. आसिफ इब्राहिम से यूं ही महाराजबाड़े पर आमना-सामना हुआ। वे बोले- “तुम भी कमाल करते हो यार, तुम महाराज से झगड़ लिए… और ये क्या खबरें चला रहे हो तुम लोग… सोने की चेन और मारुति कारें और जाने क्या-क्या छाप रहे हो, इसमें कोई सच्चाई नहीं है यार… तुम तो जरा सोचो…।’’
मैंने कहा- “मैं तो खुद इसी मामले पर उनसे बात करने गया था पर उन्होंने तो कह दिया कि वे मीडिया की शकल तक देखना नहीं चाहते।’’
किस्सा लंबा है, लेकिन बाद में हुआ यूं कि आसिफ इब्राहिम ने बीच में पड़कर सिंधिया से मेरी ‘सुलह’ करवाई। उस मुलाकात के दिन जयविलास परिसर में मैंने सिंधिया का दूसरा ही रूप देखा। बेटी की शादी को लेकर खड़े किए जा रहे विवाद और अपनी ‘बदनामी’ से परेशान पिता का रूप। उन्होंने कहा- “मैं उस दिन जरा गुस्सा हो गया था, तुमसे कोई नाराजी नहीं है।’’ बाद में आराम से बात हुई, खबर के लिए वर्जन भी लिया और शादी में आने न्योता भी मिला।
शादी को लेकर चल रहे विवाद से सिंधिया इतने क्षुब्ध थे कि उन्होंने विवाह समारोह में दिया जाने वाला भोज भी नहीं रखा था। विवाह के दिन जयविलास परिसर कई हस्तियों से खचाखच था और उस ठंडी रात में मेहमानों के लिए जगह-जगह चाय और कॉफी के स्टॉल भर लगे थे। दुनिया भर से आए लोग एक कप कॉफी के साथ ही इस शाही शादी का गवाह बने। हम भी…।
बरसों बाद एक दिन यूं ही बातचीत के दौरान जब जिक्र छिड़ा तो सिंधिया जी का दर्द उभर आया, वे बोले- “मैं माधवराव सिंधिया अपनी बेटी की शादी में आए मेहमानों को ठीक से खाना तक नहीं खिला सका। जिंदगी भर मुझे इस बात का मलाल रहेगा… इतनी बड़ी कंट्रोवर्सी खड़ी कर दी मीडिया ने…।’’
मुझे लगा उस समय मेरे सामने कोई महाराजा नहीं सिर्फ एक पिता है और वो जो कह रहा है वह किसी महाराजा का नहीं बल्कि एक पिता का दर्द है।
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30 सितंबर दिवंगत माधवराव सिंधिया की पुण्यतिथि है।