जिंदगी दांव पर लगाने की यह कैसी रिलेशनशिप है?

मैंने जब से वो खबर पढ़ी है, खुद को सामान्‍य नहीं रख पा रहा हूं। रोंगटे खड़े कर देने वाली ऐसी खबरें हमारे समाज में पनप रहे फोड़े और उससे रिसने वाले मवाद का जीता जागता उदाहरण हैं। खबर के मुताबिक राजधानी भोपाल के पॉश इलाके में रहने वाले एक युवक ने अपनी कथित पत्‍नी की हत्‍या कर उसका शव अपने ही घर में एक चबूतरा बनाकर गाड़ दिया। बताया गया है कि किसी बात पर कहासुनी के बाद युवक ने लड़की को मारा और उसका शव लोहे के संदूक में डाल कर उसे सीमेंट के घोल से वहीं सीमेंटेड कर दिया। मारी गई युवती पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा की रहने वाली थी और पिछले साल जून माह में ही अपने इस परिचित के साथ भोपाल आकर लिव इन रिलेशन में रहने लगी थी। लेकिन जुलाई 2016 यानी सिर्फ एक महीने के भीतर ही उसकी हत्‍या हो गई।

सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में लिव इन रिलेशन के बारे में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा था कि एक दूसरे से प्‍यार करने वाले पुरुष और स्‍त्री यदि साथ रहने का फैसला करते हैं तो यह उनके जीने के अधिकार का मामला है और इसे किसी अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक तरह से भारतीय समाज में क्रांतिकारी बदलाव का संकेत था।

लेकिन ऐसे संबंधों को दूसरा पक्ष भी है। जो दिल्‍ली हाईकोर्ट के 2016 में दिए गए एक फैसले में दिखाई दिया। उस फैसले में कोर्ट ने एक व्‍यक्ति को दुष्‍कर्म के आरोप से यह कहते हुए बरी कर दिया था कि आरोप लगाने वाली महिला खुद उसके साथ लिव इन रिलेशनशिप में थी। कोर्ट ने पाया कि महिला ने दुष्‍कर्म की रिपोर्ट लिखाते समय या तो तथ्‍यों को छिपाया या फिर उन्‍हें गलत परिप्रेक्ष्‍य में प्रस्‍तुत किया।

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के इन दो चर्चित फैसलों के अलावा पिछले कुछ सालों में देश की अदालतें लिव इन रिलेशनशिप को लेकर अलग अलग टिप्‍पणियां करती रही हैं। अदालतों का यह विचार भी कई बार सामने आया है कि एक बालिग व्‍यक्ति सोच समझकर किसी के साथ जब रहने का फैसला करता है तो उससे यह अपेक्षा भी होती है कि वह उसके परिणामों से भी अवगत होगा। या कि उसे ऐसे किसी भी कदम से होने वाले नुकसान के प्रति भी सचेत और सतर्क रहना चाहिए।

लेकिन देखने में आ रहा है कि अपनी आजादी और जिंदगी का फैसला खुद करने का तर्क देते हुए आज के युवा जो फैसले कर रहे हैं उन्‍हें करते समय आगा पीछा सोचने की प्रवृत्ति लगभग खत्‍म होती जा रही है। यह बात सही है कि युवा मानस स्‍वभाव से ही खतरों से खेलने का आदी होता है, लेकिन डर के आगे हमेशा जीत ही नहीं होती।

जीवन साथी के चयन को लेकर जिस तरह की बेपरवाही बरती जा रही है वह जानलेवा खतरों का सबब बन रही है। अपनी मर्जी से जीने की जिद में परिवार,नाते रिश्‍तेदार या समाज से होने वाला कटाव युवाओं में ऐसे अकेलेपन का कारण बन रहा है, जिससे बाहर निकलना उनके लिए बाद में मुमकिन नहीं हो पाता। जिद और जुनून में किए गए फैसले के बाद जीवन साथी द्वारा धोखा दिए जाने या संकट में पड़ने पर वे परिवार या समाज से मदद लेने की हिम्‍मत भी नहीं जुटा पाते। ऐसे में या तो वे आत्‍महत्‍या का रास्‍ता चुनते हैं या फिर एक दूसरे को ही खत्‍म कर देने का।

भोपाल की घटना का शिकार हुई युवती बंगाल के सुदूर बांकुड़ा इलाके से करीब 1300 किमी दूर यहां आकर रहने लगी थी। वो भी एक ऐसे व्‍यक्ति के साथ जिससे उसका परिचय प्रत्‍यक्ष भी नहीं बल्कि आभासी दुनिया के जरिये हुआ था। इस व्‍यक्ति को जीवन साथी चुनने के दौरान उसने न तो अपने परिवार को विश्‍वास में लिया न ही उन्‍हें सचाई बताई। ऐसे कदम युवाओं के लिए कितने घातक हो सकते हैं उसका उदाहरण सामने है।

फेसबुक या अन्‍य किसी सोशल मीडिया के जरिये होने वाली दोस्‍ती (?) और उस कथित दोस्‍ती के रिलेशनशिप में बदल जाने का मामला गंभीरता से सोचने की मांग करता है। ऐसे हजारों केस हुए हैं जब इस तरह के फौरी परिचय के बाद किसी को जीवनसाथी चुन लेने या उसके साथ लिव इन रिश्‍ता कायम कर लेने वालों ने अपनी गलती की कीमत या तो जान देकर चुकाई है या अपना भविष्‍य बरबाद करके।

परिवार या समाज द्वारा जीवनसाथी के चुनाव को अनावश्‍यक दखल मानने का परिणाम यह हुआ है कि धोखा हो जाने की स्थिति में युवा न घर का रहा है न घाट का। पारंपरिक रिश्‍तों में समाज भी उस रिश्‍ते का साक्षी होता है। समाज की यह मौजूदगी पति पत्‍नी के बीच किसी भी कारण से आने वाली दरार को पाटने में सीमेंट का काम करती है। लेकिन परिवार और समाज को बाधक या अनावश्‍यक मानकर उसे दरकिनार किया जा रहा है। इसके चलते बीचबचाव या गलतफहमियां दूर करने वाला माध्‍यम भी खत्‍म हो चला है।

जरूरत इस बात की है कि परंपराओं और समाज को नकारने के बजाय हम उनकी व्‍यावहारिक उपयोगिता एवं महत्‍व को समझें। ताकि हम न सिर्फ कोई गलत कदम उठाने से बच सकें बल्कि हमसे कोई चूक भी हो जाए तो हमें बचाने या संभालने वाले मौजूद हों। जोश और जुनून में जिसे हम अपना सब कुछ सौंप रहे हैं,यदि वह किनारा कर ले, तो कोई कंधा तो ऐसा हो जिस पर हम सिर टिका सकें…

 

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