भारतभूषण आर. गांधी
भारत पाकिस्तान पार्टीशन के बाद इटारसी आए गाँधी, पोपली, बत्रा, पसरीजा, कोहली, साहनी और भोला परिवारों का बसेरा गाँधी नगर बन गया था, हालाँकि इटारसी में एक पंजाबी मोहल्ला भी है जिसमें सिख परिवारों के अलावा अरोड़ा, जुनेजा, बावेजा, भार्वेश और कपूर परिवार भी थे जो मोने पंजाबी यानि सिख नहीं थे।
लेकिन गाँधी नगर में प्रमुख रूप से कोहली और साहनी परिवार जिनका गोत्र भारद्वाज है, ये गाँधी, पोपली, पसरीजा और बत्रा कश्यप गोत्र के परिवारों के आसपास निवास करके आज तक रह रहे हैं। हालाँकि बत्रा और पोपली सरनेम वाले कई परिवार इटारसी नगर के देशबंधुपुरा और सूरजगंज मोहल्लों के निवासी हैं।
कोहली परिवार की आज एक ऐसी बुजुर्ग महिला की अंत्येष्टि से लौटा हूँ जिसने मेरे जन्म से अब तक स्नेह दिया। हालाँकि उनके बुजुर्ग काल में मेरा उनसे बहुत ज्यादा मिलना नहीं हुआ। उन्हें मुझसे इतना अधिक स्नेह था कि उन्होंने मेरे निक नेम यानि घर में बुलाये जाने वाले नाम को सर्वप्रिय बना दिया।
मैं अपने माता पिता की सातवीं संतान था और बचपन से मोहल्ले के सभी उल्लेखित परिवारों में प्रिय भी था, लेकिन श्रीमती पुष्प कोहली के लिए मैं सबसे प्रिय बालक था। मेरे जन्म के ठीक एक साल बाद उनके घर में नवनीत कोहली ने जन्म लिया, जो उनकी चार बहनों के बाद इकलौता पुत्र था। मेरी जन्म तिथि को लेकर संशय दूर करने जब मैं उनसे मिला तो उन्होंने मेरे जन्म के समय के कई किस्से छेड़ दिए। मैंने उस दिन उनके घर भरपूर गरिष्ठ नाश्ता भी किया था। उनके हाथ के बने पराठों का स्वाद आज बहुत ज्यादा महसूस कर रहा हूँ।
मेरी सबसे बड़ी दो बहनों, जो माता पिता की सात संतानों में से पहले व दूसरे क्रम पर हैं, का कहना था कि मेरा जन्म दशहरे के दिन हुआ था और स्कूल रिकॉर्ड में मेरे जनम की तिथि 13 अक्तूबर दर्ज थी। चूँकि मेरे पिता और माता का देहावसान मेरे कॉलेज जीवन के शुरुआत से पहले ही हो गया था और मुझे पता करना था कि मेरा जन्म अगर दशहरे के दिन हुआ था तो उस दिन 9 अक्तूबर होना चाहिए और अगर 13 अक्तूबर को हुआ तो उस दिन शरद पूर्णिमा रही होगी।
मुझसे बड़े दोनों भाईयों ने भी कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया था। वो भी यही मानते थे कि पिताजी ने अगर 13 अक्तूबर दर्ज कराई थी तो सही ही होगी। मेरे इस सवाल का सही जवाब मिला श्रीमती पुष्पा कोहली जी से, उन्होंने मुझे नवनीत के साथ ही नाश्ता कराने के दौरान बताया कि मेरा जन्म 13 अक्तूबर को ही हुआ था, उन दिनों गाँधी मैदान में रामलीला का मंचन शरद पूर्णिमा तक चलता था। हो सकता है कि पुष्पा (बड़ी बहनों में दूसरी) को याद में कुछ कन्फ्यूजन हो गया होगा।
उन्होंने बातों बातों में बताया कि मेरे जन्म के एक साल बाद जब नवनीत ने उनके घर जन्म लिया तो उन्होंने कहा कि उनके घर भी मिंटू आ गया है। ये मेरा निक नेम था। उनके इसी स्नेह उवाच के कारण मेरे बाद एक दो साल में जन्मे बच्चों का निक नेम मिंटू ही रखा गया। जिन परिवारों में नवनीत के अलावा बच्चों के निक नेम मिंटू रखे गए उनमें जीतेन्द्र साहनी और योगेन्द्र पसरीजा के अलावा मेरी चाचा श्री भगवान दास गाँधी ने मेरे निक नेम पर अपने पुत्र मुकेश गाँधी का नाम भी मिंटू ही रख दिया था।
आज उनकी अंत्येष्टि के समय नवनीत के द्वारा दाह संस्कार की क्रियाओं में उसका सहयोग करते हुए महसूस कर रहा था कि जैसे अल्प समय के लिए ही सही मुझे यशोदा मां की तरह स्नेह देने वाली माता इस दुनिया से विदा हो गई।
अंत्येष्टि के बाद मुझे पैदल ही वापस लौटते देख कर मेरे साथ नईदुनिया में प्रेस रिपोर्टर रहे मंगेश यादव और गिरीश पटेल ने अपने साथ दुपहिया वाहन पर बैठने के लिए कहा। फिर अचानक पीछे से अकेले आ रहे मीडिया मित्र अशोक रोहिले ने आगे आकर अपनी मोटर साइकिल पर बिठा लिया। जबकि मेरा मन अकेले ही पैदल चलकर घर लौटने का था।
रास्ते में अशोक ने मुझसे पूछा कि मेरी नवनीत के साथ क्या रिश्तेदारी है, तब मैंने कहा कि रिश्तेदारी तो नहीं लेकिन नातेदारी बहुत गहरी है। श्रीमती पुष्पा कोहली से मेरा नाता नवनीत के जन्म से पहले का जुड़ा है और भले ही वो इस लोक से गमन कर गई हों लेकिन मेरा उनसे नाता मेरे दुनिया से रुखसत होने तक, मेरे नाम के होने तक, सदा ही रहने वाला है।
मेरा उनसे नाता और सरोकार कई दर्जन घटनाओं से जुड़ा है, जिनका उल्लेख कर पाना आज मेरे बस में नहीं है। उनकी पार्थिव देह को कंधा जरूर दे आया हूँ लेकिन अपने कन्धों पर उनकी स्मृतियों का भार सदैव ढोता रहूँगा। दिवंगत आत्मा को कोटि कोटि नमन। ईश्वर उन्हें मोक्ष प्रदान करें। इसी कामना के साथ उन्हें श्रद्धांजलि के रूप में मेरी ये शब्दांजलि।