देश स्तब्ध है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि भारत के प्रधानमंत्री को विपक्षी पाटी के नेता ने सार्वजनिक रूप से सीधे सीधे ‘भ्रष्ट‘ और ‘चोर’ कहा हो। आरोप पहले के प्रधानमंत्रियों पर भी लगते रहे हैं, उनकी भी कड़ी से कड़ी आलोचनाएं हुई हैं, चीन से हार के बाद नेहरू और आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी को क्या-क्या नहीं सहना और सुनना पड़ा था, लेकिन वे आलोचनाएं भी मर्यादा का आवरण ओढ़े हुए थीं।
इतने सीधे, सपाट और दो टूक शब्दों में देश के मुखिया को किसी ने गाली नहीं दी। लेकिन आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रेस कान्फ्रेंस करके ‘भ्रष्टाचारी’ और ‘चोर’ कह रहे हैं। यह संकेत है आने वाले दिनों में भारत की राजनीति में भाषा की और भयावह गिरावट होने का। देश जल्दी ही कई राज्यों में विधानसभा चुनाव का और अगले साल लोकसभा चुनाव का सामना करने वाला है, आप कल्पना कर सकते हैं उसके लिए कैसी-कैसी गालियों का जखीरा तैयार किया जा रहा होगा।
फ्रांस से खरीदे जाने वाले राफेल लड़ाकू विमान तो न जाने कब देश के दुश्मनों पर बम बरसा कर उन्हें ध्वस्त करेंगे, लेकिन अभी तो भारत आने से पहले ही,इन्होंने भारत भूमि पर राजनीतिक जंग छिड़वा दी है। बयानों और गालियों की ऐसी भयानक बमबारी हो रही है कि लगता है ‘दुश्मन’ की हर चौकी, हर बंकर नेस्तनाबूद करके ही दम लिया जाएगा।
राफेल आते तो भारत पर आंख उठाने वाले या भारत को नुकसान पहुंचाने वाले दुश्मनों को नष्ट करते, लेकिन अभी तो उनके लिए हुआ सौदा ही हमारे राजनीतिक और सामाजिक तानेबाने को तहस-नहस कर रहा है। राहुल गांधी वैसे तो राफेल को लेकर कई महीनों से मोदी सरकार को घेर रहे हैं, लेकिन हाल ही में उनके हमलों की फ्रीक्वेंसी और धार दोनों ही बढ़ गई है।
फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद का यह बयान आने के बाद कि राफेल सौदे में अनिल अंबानी की कंपनी का नाम भारत सरकार ने ही सुझाया था, राहुल ने इस सौदे में हुए कथित भ्रष्टाचार का सारा दोष स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर मढ़ दिया है। पिछले साढ़े चार सालों में मोदी पर व्यक्तिगत रूप से हुआ यह सबसे बड़ा, सबसे तीखा और सबसे मारक हमला है।
2014 में जबसे केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी है तभी से.. या यूं कहें कि उससे पहले जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब से… मोदी पर और कई तरह के आरोप भले ही लगे हों, लेकिन निजी तौर पर भ्रष्टाचार करने का आरोप उन पर कभी नहीं लगा। उनके बड़े से बड़े विरोधी भी इस बात को मानते रहे हैं कि मोदी चाहे और कुछ हों, लेकिन निजी तौर पर वे भ्रष्ट नहीं हो सकते…
लेकिन राहुल गांधी ने मोदी के चेहरे पर मौजूद भ्रष्टाचारविहीनता की चमक पर राफेल सौदे के कथित भ्रष्टाचार की खरोंचें डाल दी हैं। सरकार भले ही न मान रही हो पर ये खरोंचें अब अपना असर दिखाने लगी हैं। जो लोग जरा मोदी के खिलाफ जरा सी बात नहीं सुन सकते थे वे सवाल सुनने भी लगे हैं और करने भी लगे हैं…
जिस समय मोदी सरकार बनी थी उस समय से लेकर बहुत बाद तक देश में बहुत बड़ा वर्ग था जो मोदी को एक आदर्श राजनेता मानते हुए उनसे बहुत उम्मीदें लगाए हुए था। ये वो दिन थे जब मोदी की जरा सी भी आलोचना पर लोग मरने मारने पर उतारू हो जाते थे। और बड़ी बात यह थी कि ऐसे लोग भाजपा के कार्यकर्ता या समर्थक नहीं बल्कि वे सामान्य लोग होते थे जिनका राजनीति से वैसे कोई लेना देना नहीं होता।
पर आज स्वयं भाजपा के ही लोग यह मानने लगे हैं कि उस स्थिति में काफी बदलाव आया है। अब मोदी को कसने की कई कसौटियां उठ आई हैं और लोग उनका उपयोग करने लगे हैं। इस पूरे घटनाक्रम में सबसे ताज्जुब की बात यह है कि भारत के अत्यंत मुखर या कि अब तक के सबसे मुखर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ऐसे किसी मामले में अपनी उस आक्रामक मुखरता से सामने नहीं आ रहे हैं, जिसका तेज उनके चेहरे पर दमकता रहता था और जिसके बूते वे अच्छे-अच्छों की बोलती बंद कर देते थे।
इधर राहुल गांधी सवाल पर सवाल दागे जा रहे हैं और उधर जिन्हें आरोपों में घेरा जा रहा है, जिन्हें सीधे-सीधे चोर कहा जा रहा है, उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आ रहा। राहुल इसी को ढाल बनाकर या प्रधानमंत्री की चुप्पी का फायदा उठाकर वार पर वार करते जा रहे हैं। भाजपा जिसे अब तक ‘पप्पू’ बताती रही है वह ‘पप्पू‘ भारत के प्रधानमंत्री के मानो मजे ले रहा है।
यकीन न आए तो उस प्रेस कान्फ्रेंस का वीडियो सुन लीजिए जिसमें राहुल ने प्रधानमंत्री पर तेजाबी हमला किया। सब कुछ कह चुकने के बाद राहुल ने जोड़ा-‘’अब मैं प्रधानमंत्री की मदद करने की कोशिश कर रहा हूं। मैं उनसे कह रहा हूं कृपा करके सफाई दीजिये। मैं आपके ऑफिस की रक्षा करना चाह रहा हूं। आप सफाई दीजिये, जनता को बताइये कि ये जो ओलांद है फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति, ये सही नहीं बोल रहा है, मगर आपके मुंह से आवाज नहीं निकल रही है…’’
यह स्थिति देश के लिए ठीक नहीं है। देश के सर्वोच्च पद को संदिग्ध बनाया जा रहा है और उसका कोई तार्किक या माकूल जवाब नहीं आ रहा। रॉफेल सौदे को लेकर लगातार भ्रम की स्थिति बनाई जा रही है। रॉफेल सिर्फ एक सौदा ही नहीं है, यह देश की सुरक्षा से जुड़ा प्रश्न है और इस पर किसी भी तरह की धुंध का छाए रहना देश की सुरक्षा पर धुंध का छाना है…
कल बात करेंगे- बयान भी कैसे-कैसे आ रहे हैं…
गिरीश जी ।
थोड़ा सा करेक्शन है ।
एक नारा था
“गली गली में शोर है राजीव गांधी चोर है” उस वक़्त राजीव प्रधानमंत्री थे । नागरवाला नामके एक सज्जन थे । तब भी कोई नारा लगा था । कहने का मतलब यह है कि प्रधानमंत्री कोई ऐसी तोप नही कि उनके खिलाफ नारे न लग सकें ।
हां बिलकुल सही है, ये नारे लगे थे, नारे बनना और नारे लगना अलग बात है और मुख्य विपक्षी दल के नेता द्वारा सीधे सीधे प्रधानमंत्री को प्रेस कान्फ्रेंस करके चोर कह देना अलग बात। कम से कम मेरी जानकारी में तो नहीं है कि ऐसा कभी किसी घोर विरोधी नेता ने भी किसी प्रधानमंत्री को कहा हो… यदि आपकी जानकारी में ऐसा कोई प्रसंग हो तो बताइएगा मैं करेक्शन कर लूंगा