‘रॉफेल गाथा’ को आगे बढ़ाने से पहले यह जानना जरूरी है कि कल यानी 27 सितंबर को इस मामले में ताजा क्या हुआ? सो पहला तो यह कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मध्यप्रदेश में विंध्य क्षेत्र के अपने दो दिवसीय दौरे पर सतना जिले के चित्रकूट पहुंचे। वहां उन्होंने जनसभा को संबोधित करते हुए रॉफेल को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर वे सारे आरोप दोहराए जो वे पिछले कुछ महीनों से लगातार लगा रहे हैं।
लेकिन इससे ज्यादा महत्वपूर्ण एक राजनीतिक घटनाक्रम है जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। 27 सितंबर को ही यूपीए के सहयोगी दल राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष शरद पवार ने रॉफेल को लेकर राहुल गांधी और कांग्रेस को बड़ा झटका देते हुए बयान दे दिया कि पीएम मोदी के इरादों पर शक नहीं किया जा सकता है।
मीडिया ने शरद पवार से पूछा था कि रॉफेल सौदे को लेकर राहुल गांधी जो सवाल उठा रहे हैं, उनके बारे में आपका क्या कहना है। शरद पवार ने कहा कि इन मांगों का कोई औचित्य नहीं है। निजी तौर पर मुझे लगता है कि जनता के मन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीयत और इरादों को लेकर कोई शंका नहीं है।
हालांकि, शरद पवार का यह भी कहना था कि फाइटर प्लेन की कीमतों का खुलासा करने से सरकार को कोई खतरा नहीं होता। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन ने जिस तरह से मामले को लेकर सरकार का पक्ष रखा है, उससे लोगों के मन में दुविधा की स्थिति पैदा हुई है।
शरद पवार का यह बयान आज की राजनीतिक परिस्थितियों में कांग्रेस के लिए भारी पड़ सकता है। इसके दो कारण हैं। पहला तो यह कि भाजपा पवार के बयान को अब सिर पर लेकर घूमेगी कि देख लीजिए ये हम नहीं शरद पवार बोल रहे हैं। वे शरद पवार जो पीवी नरसिंहराव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के समय देश के रक्षा मंत्री रह चुके हैं।
वस्तुत: भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने खुद पहल करके इस मामले की शुरुआत भी कर दी है। उन्होंने बयान के लिए शरद पवार को धन्यवाद करते हुए तत्काल ट्वीट किया- ‘दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सच बोलने के लिए पूर्व रक्षामंत्री और वरिष्ठ सांसद शरद पवार का धन्यवाद करता हूं। प्रिय राहुल गांधी, आपके अपने सहयोगी और पवार साहेब जैसे वरिष्ठ कद के नेता पर तो विश्वास करके बुद्धिमत्ता दिखा सकेंगे।’
दूसरा, शरद पवार के इस बयान से एक संदेश यह भी जा रहा है कि मोदी और केंद्र सरकार के खिलाफ रॉफेल की लड़ाई में राहुल गांधी अकेले हैं। अन्य विपक्षी या सहयोगी दल उनके साथ उतनी मजबूती से नहीं खड़े हैं। बाकी दलों के रवैये से ऐसा लगा रहा है मानो यह सरकार के भ्रष्टाचार का नहीं कांग्रेस का अपना निजी राजनीतिक मुद्दा है। ऐसे में राहुल को अपनी यह लड़ाई अब बहुत सावधानी से लड़नी होगी।
और अब अपनी बात…
रॉफेल सौदे को लेकर राहुल गांधी तीसरा जो बड़ा आरोप लगा रहे हैं, वह यूपीए और एनडीए सरकारों के समय हुई डील में विमानों की कीमत को लेकर है। राहुल गांधी ने मार्च 2018 में किए अपने ट्वीट में आरोप लगाया था कि यूपीए के समय इन विमानों की कीमत 570 करोड़ रुपए तय की गई थी और एनडीए सरकार अब इनके लिए 1670 करोड़ रुपए दे रही है।(वस्तुत: ये दोनों आंकड़े अनुमानित और Rounded Off हैं)
संयोग से विमानों की कीमत को लेकर 27 सितंबर को ही केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का भी एक बयान आया जिसमें कहा गया है कि मोदी सरकार ने इस डील के लिए जो कीमत तय की है, वह यूपीए सरकार के मुकाबले 40 प्रतिशत कम है। यानी कांग्रेस ताजा डील में विमान की कीमत तीन गुना अधिक बता रही है तो भाजपा सरकार पुराने सौदे से 40 फीसदी कम का दावा कर रही है।
इस मामले में 7 अगस्त 2018 को इकॉनामिक टाइम्स में मनु पब्बी की एक खबर काफी विस्तार से जानकारी देती है। उसमें कहा गया है कि रक्षा मंत्रालय के अंदरूनी आकलन के मुताबिक इस समय जो सौदा हुआ है उसमें यूपीए के वक्त हुई डील की तुलना में प्रत्येक विमान की कीमत 59 करोड़ रुपए कम है।
रक्षा मंत्रालय के उसी आंतरिक नोट के हवाले से बताया गया कि भारत को अपनी जरूरत के हिसाब से जिस तरह का विकसित और‘सज्जित विमान’चाहिए,वह यूपीए काल की डील के हिसाब से आज 1705 करोड़ रुपए में पड़ता, जबकि एनडीए सरकार ने 36 विमानों की जो डील की है, उसमें प्रति विमान यह लागत 1646 करोड़ रुपए आ रही है।
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि यह बढ़ी हुई लागत भी विमान में भारत के लिए उच्च स्तर की अतिरिक्त सुविधा विकसित करने के एवज में है। जैसे कि भारत को विमान में लेह जैसे अत्यंत ऊंचे और दुर्गम स्थानों से उड़ान भरने की क्षमता चाहिए, साथ ही उसकी यह भी मांग है कि ये विमान बढ़ी हुई इन्फ्रारेड सर्च सुविधा और ट्रेक सेंसर तथा क्षमतावान इलेक्ट्रॉनिक जैमर पॉड से भी युक्त हों।
अब एक तरफ कांग्रेस का तर्क है कि उसके समय की डील के हिसाब से ये 36 विमान कहीं कम कीमत में भारत को हासिल होते, वहीं सरकार का कहना है कि उसने न सिर्फ विमानों की कीमत कम कराने के लिए बातचीत की बल्कि उन्हें भारत की जरूरतों के हिसाब से सज्जित, परिवर्धित करवाने के साथ-साथ सौदे में ‘परफार्मेंस गारंटी’ की शर्त भी रखी है।
इकॉनामिक टाइम्स की ही खबर में सरकार के गोपनीय दस्तावेजों के हवाले से कहा गया कि यूपीए सरकार के समय की डील को इसलिए भी रद्द करना पड़ा क्योंकि जब इसका विस्तृत ‘वाणिज्यिक आकलन’ किया गया तो पता चला कि शुरुआत में जिस कीमत पर बात हुई थी, उसकी तुलना में वास्तविक कीमत के लिहाज से यह विमान बहुत महंगा पड़ रहा है। इसलिए नए सिरे से बात की गई।