घटते-बढ़ते कद और इंसानी फितरत

0
1385

डॉ. प्रदीप उपाध्याय

मुझे अपने ज्ञान पर हमेशा से ही संदेह बना रहता आया है। अभी एक राजनीतिक दल के नेता का कद छोटा कर देने का समाचार देखा तो मैं चौंक गया। बात इंसान के कद की होती है तो निगाह सीधे उसकी कद काठी की ओर जाती है। कोई ऊँचा-पूरा, मोटा-ताजा हो सकता है तो कोई लम्बू, कीड़ी-कांप हो सकता है, कोई बौना,टिग्गा सा हो सकता है। मैंने दद्दा से पूछा-”दद्दा यह कद कैसे छोटा हो जाता है।”

दद्दा बोले- ”बबुआ, कद काठी का उतना महत्व नहीं है जितना व्यक्ति अपने व्यक्तित्व के बल पर अपना कद कितनी ऊँचाई तक ले जाता है,इस बात का है। अधिक लम्बाई लिये सिने स्टार अमिताभ बच्चन और टिग्गी ऊँचाई वाले मुकरी के उदाहरण हमारे सामने हैं। ये अपनी ऊँचाई से ज्यादा अपनी प्रतिभा के बल पर लोगों के दिलों में जगह बना पाये थे।”

‘’यह तो ठीक है लेकिन इसे कद से क्यों जोड़ा जाता है!” मैंने पूछा।

दद्दा बोले-”देखो भाई, आदमी का महत्व उसके कद के रूप में ही देखने की परम्परा है। अब विचार करो कि कुछ लोगों की निगाह में व्यक्ति का कद बहुत ही ऊँचा हो सकता है, ऐसे में उसके व्यक्तित्व की बुराई भी दबकर रह जाती है किन्तु दूसरी ओर उसकी इज्जत, उसकी शोहरत उसमें छुपी अच्छाइयों की वजह से रहे, यह जरूरी भी नहीं क्योंकि कुछ लोगों की निगाह में धन-दौलत, समाज में रुतबा और पॉवर ही व्यक्ति का कद ऊँचा करते हैं। इसके विपरीत कुछ लोग यह मानते हैं कि व्यक्ति का कद उसमें समाये सद्गुणों के कारण ऊँचा होता है। व्यक्ति सद्चरित्र, ईमानदार और सदाचारी है तो समाज में उसका कद ऊँचा रहता है।”

मैंने फिर कहा- ”दद्दा, इसमें तो विरोधाभास है! वर्तमान दौर में तो मान्यताऐं बदल गई हैं। बाहुबली जन भी मानकर चलते हैं कि समाज में उनका कद ऊँचा है। आपराधिक पृष्ठभूमि होने के बावजूद वे समाज में विशिष्ट स्थान बनाये रखते हैं, उनकी बहुत ऊपर तक पहुँच है, सभी लोगों पर उनका रुतबा कायम है, मंत्री-संत्री तक उनके ताल्लुकात हैं। उनके खिलाफ आवाज उठाने की किसी में ताकत नहीं है। ऐसे में क्या उनका कद ऊँचा नहीं माना जाना चाहिए!”

‘’नहीं बबुआ, यह सिक्के का एक पहलू हो सकता है, दूसरा पहलू यह भी  है कि ऐसे लोगों का वजूद तभी तक है जब तक वे पॉवर में रहते हैं। उनकी स्वीकार्यता उनसे भय तथा उनकी पहुँच के कारण रहती है। तभी तक लोग उनसे भय खाते हैं जब तक उनकी पहुँच है। हमारे समाज में यह भी कहा जाता है कि नंगे के नव ग्रह बलवान होते हैं, ऐसे में गिरे हुए इंसान से भय तो हर व्यक्ति खाता ही है। वैसे भी लोग अपना काम निकलवाने के लिए ऐसे बुरे इंसानों का आसरा भी ले ही लेते हैं और ऐसे में वे मान लेते हैं कि उनका कद समाज में बढ़ता ही जा रहा है।”दद्दा बोल उठे।

मैंने उनकी बात समझने की कोशिश करते हुए उनका अनुसमर्थन किया-”इसका मतलब इंसान के कद से तात्पर्य समाज में उसके मान सम्मान, स्थान से है। व्यक्ति को समाज में मान सम्मान और स्थान उसके अवदान-योगदान से मिलता है। यह उसकी अच्छाइयों के कारण मिलता है तो उसका यश चारों ओर फैलता है और वह नायक की भूमिका में आ जाता है। दूसरी ओर लोग भय और आतंक के द्वारा भी समाज में अपना स्थान बना लेते हैं। उनको मान सम्मान दिल से आदर के साथ नहीं दिया जाता बल्कि यह व्यक्ति की मजबूरी हो सकती है। ऐसे लोग खलनायक होकर भी नायक की भूमिका में बने रहते हैं। लोग दिल से भले ही स्वीकार नहीं करें लेकिन तब भी ये समाज में ऊँचा स्थान पा ही लेते हैं। ऐसे लोग भले ही समाज में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो जाएं लेकिन यह जगह तात्कालिक रूप से ही उन्हें मिल पाती है, इसमें स्थायित्व का भाव नहीं है।”

दद्दा जी को लगा कि बात मेरी सयझ में आ रही है। अतः आगे फिर बोले- ”हाँ,तुम ठीक कह रहे हो। कई बार व्यक्ति का कद उसके जीवन काल में वह ऊँचाई प्राप्त नहीं कर पाता जिसका वह वास्तविक हकदार होता है। यह भी संभव है कि उसकी विशिष्टता उसके जीवनकाल में पूर्ण रूप से उभर कर नहीं आ पाती तथापि यह भी उतना ही सही है कि अपने विशिष्ट गुणों तथा अप्रतिम योगदान के कारण व्यक्ति का कद ऊँचा और ऊँचा होता जाता है। व्यक्ति को समाज में स्थान बनाने और स्थापित होने के लिए बहुत त्याग और बलिदान करना होता है। कद की ऊँचाई इतनी आसानी से हासिल नहीं होती। यह बात दीगर है कि व्यक्ति खरा है या खोटा, क्योंकि कोई व्यक्ति किसी के लिए खरा साबित हो सकता है तो किसी के लिए खोटा! यह बात ठीक उसी तरह से व्यक्त की जा सकती है कि कोई व्यक्ति कुछ लोगों की दृष्टि में आदर्श होकर नायक हो सकता है, तो कुछ लोगों की दृष्टि में खलनायक। यह दृष्टि-दृष्टि का भेद हो सकता है तथापि व्यक्ति का कद उसके व्यक्तित्व की अच्छाइयों, गहराइयों एवं जीवन्तता पर निर्भर करता है। लोगों की निगाह में कद घटता-बढ़ता रहता है लेकिन सार्वजनिक जीवन में कार्य करने वाले व्यक्ति को बिना इस बात की परवाह किये अपने काम को ईमानदारी और सदाशयता के साथ अंजाम देना चाहिए, तभी वह अपने कद की ऊँचाई को प्राप्त कर सकता है। अब बात कद की है तो आज सभी जगह नमो-नमो की गूंज है। कल किसी ओर की हो सकती है।”

मैंने सहमति में सिर हिलाया और अपने कद को नापने की कोशिश करने लगा।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here