आपको कौन चाहिए, सोने वाले या जागते रहने वाले?

यदि रघुराम राजन का जमाना होता तो शब्‍द और भाव ज्‍यादा सख्‍त होते। लेकिन उर्जित पटेल के जमाने में अपेक्षाकृत थोड़े नरम शब्‍दों में भी बात वही कही गई है। इसलिए आप इन शब्‍दों की नरमी पर मत जाइए, इन शब्‍दों के अर्थ, भाव और परिणामों की सख्‍ती को समझने का प्रयास करिए। रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने देश की अर्थ व्‍यवस्‍था को लेकर जो संकेत दिए हैं वे डराने वाले हैं।

डरने की बात इसलिए भी है कि, भारत की अर्थ व्‍यवस्‍था को भीतर तक जानने वाले दो लोग यशवंत सिन्‍हा और अरुण शौरी ने इन्‍हीं शब्‍दों को और सख्‍त तरीक से कहा है। चूंकि सिन्‍हा और शौरी दोनों ही भाजपा नेता अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्‍व वाली सरकार में मंत्री रह चुके हैं, इसलिए उनकी बातों से केवल आर्थिक मानस का ही नहीं, बल्कि राजनीतिक मानस का भी पता चलता है।

इन दिनों दो मुद्दे देश की अर्थव्‍यवस्‍था और उसके बहाने पूरी राजनीतिक व्‍यवस्‍था को मथ रहे हैं। ये मुद्दे हैं नोटबंदी और जीएसटी। पहले नोटबंदी की बात कर लें, जिसकी घोषणा की सालगिरह एक माह बाद आने वाली है। रिजर्व बैंक अगस्‍त 2017 में जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कह चुका है कि यह प्रयोग (नोटबंदी) उस लिहाज से सफल नहीं रहा है जिस लिहाज से इसे घोषित किया गया था। यानी कालाधन और भ्रष्‍टाचार रोकने के एक कारगर कदम के रूप में नोटबंदी कोई प्रभावी हथियार साबित नहीं हुआ है।

इसी तरह 4 अक्‍टूबर को अपनी मौद्रिक नीति समिति की बैठक में रिजर्व बैंक ने सरकार की अति महत्‍वाकांक्षी कर प्रणाली जीएसटी को लेकर भी कहा कि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था पर इसका नकारात्‍मक असर हुआ है। चूंकि देश में इस समय कुछ अलग तासीर वाली सरकार है और आरबीआई को सरकार से पंगा लेने के बाद खमियाजा उठाना पड़ सकता है, इसलिए उसने समीक्षा बैठक में विकास दर का अनुमान 7.3 फीसदी से घटाकर 6.7 फीसदी करते हुए सरकार को झटका देने के साथ ही अत्‍यंत विनम्रतापूर्वक यह संभावना भी नत्‍थी कर दी है कि, संभवत: आने वाले दिनों में इस स्थिति में सुधार परिलक्षित होगा।

लेकिन आरबीआई जो बात खुलकर नहीं कह पाया उसे यशवंत सिन्‍हा और अरुण शौरी ने कह दिया है। यशवंत सिन्‍हा यानी भारत के पूर्व वित्‍त मंत्री और अरुण शौरी यानी भारत के विनिवेश मंत्री के रूप में विनिवेश जैसी क्रांतिकारी स्‍कीम के अगुवा राजनेता। दोनों राजनेताओं ने नोटबंदी व जीएसटी को भारत की अर्थव्‍यवस्‍था को धक्‍का पहुंचाने वाला कदम माना है।

अरुण शौरी ने तो अब तक हुई तमाम आलोचनाओं से परे जाकर नोटबंदी के लिए सरकार की मनी लांड्रिंग स्‍कीम जैसा शब्‍द इस्‍तेमाल किया है। अर्थ और अपराध जगत के लोग जानते हैं कि मनी लांड्रिंग या हवाला कारोबार को भारतीय कानून के तहत किस किस्‍म के अपराध के रूप में जाना जाता है। नरेंद्र मोदी सरकार अब तक छाती ठोक कर यह दावा करती आई थी कि वह ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ के सिद्धांत पर चल रही है। सरकार गर्व के साथ कहा करती थी कि तीन सालों में उसके दामन पर भ्रष्‍टाचार का एक भी छींटा नहीं गिरा है। उसी सरकार को अरुण शौरी ने प्रतीकात्‍मक रूप से एक ही झटके में भारत के इतिहास की सबसे ज्‍यादा भ्रष्‍टाचारी सरकार कह दिया है।

देश अब तक भ्रष्‍टाचार से हलाल तो होता रहा है लेकिन शौरी ने जो आरोपित किया है, उसका संकेत यह है कि देश की अर्थव्‍यवस्‍था को, इस मनी लांड्रिंग स्‍कीम के जरिए, बड़े पैमाने पर किए गए भ्रष्‍टाचार के झटके से खत्‍म किया गया।

यशवंत सिन्‍हा ने जब नोटबंदी को आग में तेल डालने वाला कदम बताया था तो वर्तमान वित्‍त मंत्री अरुण जेटली ने उन पर तंज कसा था कि 80 साल की उम्र में कुछ लोग अपने लिए नौकरी की संभावना तलाश रहे हैं। अब पता नहीं अपनी नामराशि वाले 76 वर्षीय अरुण शौरी के बारे में जेटली जी की क्‍या प्रतिक्रिया होगी? देखना यह भी होगा कि शौरी के इंटरव्‍यू की काट के लिए मोदी मंत्रिमंडल का कौनसा सदस्‍य किस अखबार में लेख लिखता है। क्‍योंकि दुर्भाग्‍य से शौरी का कोई रिश्‍तेदार वर्तमान भारत सरकार के मंत्रिमंडल में नहीं है।

वैसे इस बार जवाब लेख के जरिये नहीं भाषण के जरिए आया है। ऐसा लगता है कि सिन्‍हा और शौरी का तीर ठीक निशाने पर बैठा है, तभी तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंस्‍टीट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेटरीज ऑफ इंडिया के स्‍वर्ण जयंती समारोह भाषण के दौरान बिना नाम लिए शौरी और सिन्‍हा पर निशाना साधा। उन्‍होंने कहा- ‘’कुछ लोगों को आलोचना के बिना अच्‍छी नींद नहीं आती।’’

प्रधानमंत्री का यह वाक्‍य इस समय देश का सबसे बड़ा सवाल भी है और इस सवाल में ही सवाल का जवाब भी छिपा है। सवाल यह कि देश के लिए वे लोग अच्‍छे हैं जिन्‍हें नींद नहीं आती या वे लोग जो इतनी उथल पुथल के बाद भी नींद में ही हैं।

 

 

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