दिमाग चकरघिन्नी हो गया है। समझना मुश्किल है कि आखिर हो क्या रहा है। किस बात पर यकीन किया जाए और किस बात पर नहीं। सचमुच यह कोहरे को और घना कर देने वाला समय है। इतना घना कि आप अपने आपको भी न देख सकें। अपने वजूद पर शक करने लगें। दुष्यंत ने कहा था- मत कहो आकाश में कोहरा घना है, यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है। पर अब बात उससे भी आगे निकल गई है।
गुरुवार को जब कॉलम लिखने बैठा तो खबर आई कि निर्भया केस में चारों दोषियों के डेथ वारंट जारी होने के बाद एक दोषी विनय कुमार शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन दायर कर दी है। यह खबर सुनने के बाद आसपास के लोगों की पहली प्रतिक्रिया यह थी कि अदालतें इन चारों को बरी ही क्यों नहीं कर देतीं। आखिर कब तक इन्हें कानून की गलियों, पगडंडियों, सुरंगों और तहखानों का फायदा मिलता रहेगा। जब शीर्ष अदालत से लेकर राष्ट्रपति भवन तक मान चुका है कि ये दोषी हैं तो फिर यह कानून-कानून, कोर्ट-कोर्ट खेलने का नाटक कब तक जारी रहेगा?
लेकिन जनभावनाएं अपनी जगह हैं, निर्भया जैसे मामलों में उनका चरम पर होना स्वाभाविक भी है। समाज यह सवाल पूछ सकता है कि आखिर कब तक ये लोग कानून के साथ आंखमिचौली खेलते रहेंगे। पर यह भी उतना ही सच है कि यदि हमारे संविधान और कानून ने उन्हें ऐसा करने का हक दिया है तो वे अपने हक का ही तो उपयोग कर रहे हैं। आजकल हर कोई अपने ‘हकों’ का ही तो इस्तेमाल कर रहा है, आपको लगता हो तो लगता रहे कि यह तो गलत है या ऐसा नहीं होना चाहिए।
निर्भया कांड के दोषियों को मिली सजा के क्रियान्वयन में हो रही देरी पर लोग भले ही गुस्सा होते रहें लेकिन न्यायतंत्र के उस आदर्श वाक्य को भी खारिज नहीं किया जा सकता जो कहता है कि भले ही सौ दोषी छूट जाएं लेकिन किसी निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए। यह बात अलग है कि निर्भया कांड के आरोपी तो दोषी भी ठहराए जा चुके हैं।
निर्भया कांड के ताजा घटनाक्रम को देखते देखते, बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में ही हुआ एक और घटनाक्रम याद आ गया। बिहार के बहुचर्चित मुजफ्फरपुर शेल्टर होम केस में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया है कि वहां पर किसी भी लड़की की हत्या नहीं हुई है। जिनके मर्डर का शक जताया गया था, वे सब बाद में जिंदा मिली हैं।
कोर्ट में सीबीआई की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि हत्या का कोई सबूत नहीं मिला है। सभी 35 लड़कियां जीवित पाई गई हैं। शेल्टर होम से जो हड्डियां मिली हैं, वे कुछ अन्य वयस्कों की हैं। शेल्टर होम में किसी भी नाबालिग की हत्या नहीं की गई है।
इससे पहले सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को पेश स्टेटस रिपोर्ट में बताया था कि चार प्रारंभिक जांचों में किसी आपराधिक कृत्य को साबित करने वाला साक्ष्य नहीं मिला और इसलिए कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है। सभी 17 आश्रय गृह मामलों में जांच पूरी हो गई है। 13 नियमित मामलों में अंतिम रिपोर्ट सक्षम अदालत को भेजी गई है।
आपको याद होगा कि मुजफ्फरपुर में एक एनजीओ द्वारा संचालित आश्रय गृह में कई लड़कियों के यौन उत्पीड़न का मामला पूरे देश में चर्चा का विषय बना था। इस मामले ने उस समय और गंभीर मोड़ ले लिया था जब यौन उत्पीड़न की शिकार कुछ लड़कियों ने कहा था कि उनकी कुछ साथिनों की हत्या कर उनके शव शेल्टर होम में ही गाड़ दिए गए हैं।
शेल्टर होम में बच्चियों के उत्पीड़न का यह मामला टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) की रिपोर्ट के बाद सामने आया था। इस कांड ने बिहार की नीतीश कुमार सरकार को हिला दिया था क्योंकि इसमें राज्य की पूर्व महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मंजू वर्मा और उनके पति पर भी संगीन आरोप लगे थे और मंजू वर्मा ने कई दिन फरारी में गुजारने के बाद अदालत में सरेंडर किया था।
इस मामले का मुख्य आरोपी एनजीओ संचालक ब्रजेश ठाकुर था जिस पर आरोप था कि उसके शेल्टर होम में रहने वाली लड़कियों को बेहोशी के इंजेक्शन देकर उनके साथ दुष्कर्म किया जाता था। इस कांड में राज्य के कई रसूखदार लोग शामिल थे जिनमें सरकारी अफसर भी थे। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मामला सीबीआई को सौंपा गया था। और अब सीबीआई ने कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।
इस मामले को ध्यान में रखना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यह प्रचलित धारणाओं को ध्वस्त करने वाला है। इस मामले को लेकर मीडिया में लगातार कई एंगल से रिपोर्टिंग हुई थी। बहुत सारी रिपोर्ट सनसनीखेज बनाकर प्रकाशित की गई थीं। इसमें अपराध और राजनीति के गठजोड़ का चेहरा भी शामिल था।
मामले ने उस समय नया मोड़ ले लिया था जब कोर्ट ने इसकी रिपोर्टिंग पर पाबंदी लगा दी थी। उस समय चर्चित पत्रकार रवीश कुमार ने इस पाबंदी की आलोचना करते हुए लिखा था-
‘’एक दर्शक और पाठक के तौर पर आप सोचिए। क्या यह आप पर रोक नहीं है? क्या आप बिल्कुल नहीं जानना चाहेंगे कि एक कैंपस में 30 से अधिक बच्चियों के रेप के मामले में क्या हुआ? सीबीआई की तरफ से जांच कर रहे एसपी का तबादला क्यों हुआ? कहीं इस्तीफा देने वाली मंत्री को बचा तो नहीं लिया गया? कहीं केस कमज़ोर कर उस व्यक्ति को बचा तो नहीं लिया जाएगा? क्या आप वाकई इस भ्रम में हैं कि भारत में यह सब होना बंद हो गया है? अगर ऐसा है तो आप एक काम कीजिए। कल से अख़बार बंद कर दीजिए और न्यूज़ चैनल का कनेक्शन कटवा दीजिए। क्योंकि अब कुछ ग़लत ही नहीं हो रहा है। जांच एजेंसी पर भरोसा करना ही होगा। रिपोर्टिंग होगी नहीं तो अख़बार ख़रीद कर आप क्या करेंगे। क्यों ख़रीद रहे हैं?’’
और अब उसी जांच एजेंसी ने रिपोर्ट दी है कि चार प्रारंभिक जांचों में किसी आपराधिक कृत्य को साबित करने वाला साक्ष्य नहीं मिला और इसलिए कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है। ऐसे में अब आप किसे सही मानेंगे और किसे गलत? यदि आप कानूनी रास्ते अपनाने की निर्भया के दोषियों की कोशिश को गलत मानते हैं तो मुजफ्फरपुर आपके सामने आकर खड़ा हो जाएगा और यदि सीबीआई को सही मानते हैं तो सवाल उठेगा कि फिर शेल्टर होम की बच्चियों के साथ जो हुआ वो क्या था?