अजय बोकिल
इधर देश कोरोना से जूझ रहा है, उधर सबसे ज्यादा कोरोनाग्रस्त महाराष्ट्र में राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के राजनीतिक भविष्य पर भी खतरा मंडरा रहा है। क्योंकि अगर एक माह के अंदर राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी ने अपने कोटे से उद्धव ठाकरे को मंत्रिमंडल की सिफारिश के अनुसार विधान परिषद का सदस्य नामजद नहीं किया तो ठाकरे की कुर्सी जाती रहेगी। अगर राज्यपाल ने सिफारिश मान ली तो ठाकरे इस तरह राज्यपाल कोटे में नामजद होकर मुख्यठमंत्री बनने वाले संभवत: पहले सीएम होंगे। ठाकरे को 28 मई तक किसी भी सदन का सदस्य बनना अनिवार्य है।
यह पूरा मामला इसलिए भी गरमा गया क्योंकि उद्धव ठाकरे के ‘हनुमान’ समझे जाने वाले संजय राउत ने राज्यपाल पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया कि ‘‘राजभवन को किसी ‘फालतू राजनीति’ का अड्डा नहीं बनना चाहिए।‘’ दरअसल ऐसे मामलों में राज्यपालों की विवादास्पद भूमिका, उनके संवैधानिक अधिकार और दायित्व तथा राज्यपालों के माध्यम से खेली जाने वाली राजनीति को भी गहराई से समझने की जरूरत है।
महाराष्ट्र में यह अभूतपूर्व स्थिति है। यूं तो देश में पहले भी कई मुख्यमंत्री विधान परिषद के सदस्य रहे हैं, लेकिन वो विधान परिषद का चुनाव जीत कर सदन के सदस्य बने हैं। महाराष्ट्र में द्विसदनीय व्यवस्था है। यानी विधानसभा और विधान परिषद दोनों। संविधान के अनुच्छेद 164 (4) के अनुसार राज्य के किसी मुख्यमंत्री अथवा मंत्री को पद की शपथ लेने के 6 माह के अंदर इन दोनों में से किसी एक सदन का सदस्य बनना अनिवार्य है अन्यथा उसे अपना पद छोड़ना पड़ेगा। चूंकि उद्धव ठाकरे ने कोई चुनाव नहीं लड़ा और वे सीएम बन गए तो माना जा रहा था कि वे 6 माह के अंदर राज्य विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) के रूप में चुनाव जीत कर सदन के सदस्य बन जाएंगे।
ठाकरे ने पिछले साल 28 नवंबर को महाविकास आघाडी के नेता के रूप में राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। इस आघाडी में शिवसेना के अलावा राष्ट्रवादी कांग्रेस और कांग्रेस शामिल हैं। शिवसेना ने इसके पूर्व महायुति से अलग होकर बीजेपी को तगड़ा झटका दिया था। अब सवाल यह है कि ठाकरे सीएम पद बचाने किस सदन के सदस्य बनें। बताया जाता है कि राज्यपाल महाराष्ट्र विधान परिषद में मंत्रिमंडल की सलाह पर 12 सदस्यों को नामजद कर सकते हैं। इन सदस्यों का कार्यकाल भी 6 वर्ष का होता है। लेकिन इस कोटे के तहत जो सदस्य नामजद हुए हैं, उनका कार्यकाल भी इस साल 6 जून को खत्म होगा। इन 12 में से भी दो एमएलसी रामराव वडकुटे और राहुल नार्वेकर पिछले साल विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा में चले गए थे। यानी ये दो सीटें खाली हैं।
यदि ठाकरे इनमें से एक सीट पर राज्यपाल द्वारा नामजद होते हैं तो भी वो केवल 6 जून तक यानी पांच दिन ही सीएम रह पाएंगे। इसके तत्काल बाद उन्हें राज्यपाल से नई नामजदगी हासिल करनी होगी। राज्यपाल दोबारा ऐसा करें यह जरूरी नहीं है। क्योंकि चार माह पूर्व इन सीटों पर एनसीपी के दो सदस्यों की नामजदगी की सिफारिश राज्यपाल इस बिना पर ठुकरा चुके हैं कि इन सदस्यों का कार्यकाल 6 माह से भी कम रहेगा। वैसे भी संविधान के अनुच्छेद 163 (3) के तहत राज्यपाल मंत्रिमंडल की सिफारिश मानने के लिए बाध्य नहीं हैं। ठाकरे के पास तीसरा विकल्प यह है कि वो 28 मई के पहले इस्तीफा देकर फिर दोबारा 6 माह के लिए मुख्यमंत्री बन जाएं और बाद में विधान परिषद के चुनाव जब भी हों, चुनकर आ जाएं।
जाहिर है कि राजनीतिक प्रेक्षकों की नजरें राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी पर लगी हैं कि वो क्या करते हैं? यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि सत्ता पक्ष और राज्यपाल के रिश्ते मधुर नहीं हैं। जिस तरह से कोश्यारी ने रातों रात देवेन्द्र फडणवीस को सीएम पद की शपथ दिलवाई थी और चार दिन बाद ही बहुमत के अभाव में फडणवीस को कुर्सी छोड़नी पड़ी थी, उससे सत्तारूढ़ महाविकास आघाडी पहले से गवर्नर से नाराज है। यही नहीं राज्यपाल द्वारा राज्य में कोरोना से निपटने में राज्य सरकार के काम की समीक्षा की पहल को भी ठाकरे सरकार ने यह कहकर ठुकरा दिया कि महामहिम इसकी जानकारी आला अफसरो से लें। उधर मजबूरी में विपक्ष में बैठी भाजपा को भी ठाकरे का सीएम बने रहना रास नहीं आ रहा है।
बहरहाल संवैधानिक बाध्यताओं के चलते उद्धव ठाकरे का राजनीतिक भविष्य राज्यपाल की मुट्ठी में है। वैसे ठाकरे के पास एक और विकल्प विधान परिषद की खाली पड़ी गैर नामजदगी वाली 9 सीटों में से एक पर विधायक निर्वाचन क्षेत्र से चुन कर आने का है। इन सीटों के चुनाव भी राज्य सभा सीटों के साथ होने थे। लेकिन कोरोना कहर के चलते चुनाव आयोग ने ये सभी चुनाव टाल दिए हैं। ये चुनाव कब होंगे, अभी नहीं कहा जा सकता। वैसे ठाकरे जैसा ही एक मामला पंजाब में 1995 में हो चुका है। तब राज्य के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के बाद उनके पुत्र तेज प्रकाश सिंह को नई सरकार में मंत्री के रूप में शामिल किया गया। लेकिन तेज प्रकाश विधानसभा सदस्य नहीं थे और पंजाब में विधान परिषद नहीं है। लिहाजा बतौर मंत्री 6 माह पूरे होने से पहले तेज प्रकाश से इस्तीफा दिलवाकर उन्हें फिर से मंत्री पद की शपथ दिलवा दी गई।
इस पर बवाल मचा और मामला कोर्ट में गया। तेज प्रकाश को इस तरह फिर मंत्री बनाने के खिलाफ दायर याचिका को पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने तेज प्रकाश को इस तरह दोबारा मंत्री बनाने को असंवैधानिक ठहराया। ऐसे में ठाकरे का इस्तीफा देकर दोबारा 6 माह के लिए सीएम बनना भी मुश्किल है। राज्यपाल शायद उन्हें शपथ ही न दिलवाएं।
अब सवाल यह कि संजय राउत ने राजभवन को लेकर इतना कड़वा ट्वीट क्यों किया? क्यों उन्होंने कहा कि राजभवन को ‘फालतू राजनीति’ का अड्डा नहीं बनना चाहिए। इसके कई कारण हैं। पहले तो इस देश में राज्यपालों की भूमिका अक्सर केन्द्र में सत्तारूढ़ दलों के राजनीतिक हितों के हिसाब से तय होती है न कि शुद्ध संवैधानिक कर्तव्यों के हिसाब से। शिवसेना को आशंका है कि राज्यपाल कोश्यारी भी परदे के पीछे से कहीं बीजेपी का ही खेल तो नहीं खेल रहे। क्योंकि भाजपा नहीं चाहती कि ठाकरे कांग्रेस और एनसीपी के समर्थन से सीएम रहें। इस खेल की एक झलक हम मप्र में देख चुके हैं। शायद इसीलिए राउत ने अपने एक ट्वीट में एक पूर्व राज्यपाल रामलाल का जिक्र भी किया।
ठाकुर रामलाल अविभाजित आंध्र प्रदेश के राज्यपाल थे और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री भी रह चुके थे। तब रामलाल ने ‘ऊपर के इशारे पर’ आंध्र में निर्वाचित मुख्यमंत्री तेलुगू देशम के एनटी रामाराव को बीच में ही पद से हटाकर रामाराव के ही एक मंत्री भास्कर राव को सीएम पद की शपथ दिलवा दी थी। उधर रामाराव इलाज के लिए अमेरिका गए हुए थे। इधर ये खेल हो गया। तब देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। एक हफ्ते बाद स्वदेश लौटे रामाराव ने इस ‘अन्याय’ के खिलाफ जबर्दस्त आंदोलन छेड़ दिया। उसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह को रामलाल को पद से हटाना पड़ा और रामाराव दोबारा सीएम बने। राउत ने स्व.रामलाल के इस कृत्य को ‘निर्लज्जता’ की संज्ञा दी है। यह बात अलग है कि रामलाल ने जिसके दबाव में यह ‘निर्लज्जता’ दिखाई, उसी कांग्रेस के समर्थन से शिवसेना आज सत्ता में है।
ठाकरे के सामने संकट यह है कि जहां एक तरफ राज्य कोरोना के कहर से जूझ रहा है, वहीं दूसरी तरफ उनके सीएम पद पर अनिश्चितता की तलवार लटकी है। यदि राज्यपाल ने विधान परिषद में उन्हें नामजद नहीं किया तो महा विकास आघाडी में झगड़े शुरू हो सकते हैं, क्योंकि ठाकरे के नाम पर ही वहां सहमति बनी थी। इससे ठाकरे सरकार को गिराने के सपने देख रही भाजपा के मन की होगी। हालांकि शिवसेना को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी कोरोना संकट के चलते महाराष्ट्र में कोई नया राजनीतिक बवाल होते देखना नहीं चाहेंगे और राज्यपाल भी संवैधानिक मर्यादाओं में ही काम करेंगे। लेकिन यह उम्मीद कितनी भोली है, यह जल्द पता चलेगा और जो होगा वह भी असाधारण होगा।
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