अजीब पहेली है भाई यह कद के बढ़ने और घटने की

जब से मध्‍यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के परिणाम आए हैं और नई सरकार और नई विधानसभा के गठन की प्रक्रिया शुरू हुई है, मीडिया रिपोर्ट्स को देखकर ऐसा लगता है कि लोग कागज कलम लेकर नहीं बल्कि इंची टेप लेकर बैठे हैं। रोज एक नई खबर सुनने की मिलती है कि आज इसका कद बढ़ा तो उसका घटा।

हैरानी तब होती है जब एक दिन किसी का कद घट जाता और अगले ही दिन पता नहीं वह कौनसी कंपनी का हाईट ग्रो कैप्‍सूल लेता है कि उसका कद छत से टकराने लगता है। मुझे लगता है ये जो कंपनियां हाइट बढ़ाने वाली दवाएं बनाती हैं उन्‍हें ऐसे लोगों से जरूर सलाह मशविरा कर, रातोंरात कद में इजाफा हो जाने का राज जानने की कोशिश करनी चाहिए।

राज्‍य में चुनाव के नतीजे आ जाने के बाद जब मुख्‍यमंत्री पद को लेकर सस्‍पेंस चल रहा था तब बड़ी बहस चली थी कि किसका कद बड़ा है कमलनाथ का या ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया का। दोनों नेताओं के समर्थक अपने अपने हिसाब से अपने आका का कद नाप रहे थे। इन नेताओं का भौतिक कद कुछ भी रहा हो लेकिन अगले मुख्‍यमंत्री के नाम का ऐलान होने से ऐन पहले तक प्रदेश कांग्रेस मुख्‍यालय के सामने इनके कटआउट की ऊंचाई से इनके कद और प्रभाव को स्‍थापित करने की कोशिशें हो रही थीं।

अच्‍छा, ऐसा नहीं था कि कद की बात केवल नाथ और सिंधिया को लेकर ही हो रही हो। एक तीसरी ताकत भी इस दौरान बड़ी शिद्दत से मौजूद थी और कई लोगों का कहना था कि असल में सबसे बड़ा कद तो पूर्व मुख्‍यमंत्री दिग्विजयसिंह का है। वे राजा साब ही हैं जिन्‍होंने कांग्रेस की सरकार बनाने की व्‍यूह रचना की और उनके ही प्रयासों से आज पार्टी को पंद्रह साल बाद सत्‍ता का स्‍वाद चखने को मिल रहा है।

फिर जब मुख्‍यमंत्री के रूप में कमलनाथ के नाम का ऐलान हो गया तो कद नापने का पैमाना बदल गया। फिर कहा जाने लगा कि सबसे ज्‍यादा मंत्री जिस नेता के गुट के होंगे, कद तो उसका ही बड़ा माना जाएगा। खैर साहब, मंत्रियों के नाम भी आ गए, उसमें भी जब अपने अनुकूल बात फिट नहीं बैठी तो तर्क दिया गया कि मंत्री बनने से क्‍या होता है, असल ताकत तो मंत्रियों को मिलने वाले विभागों से तय होती है। और अब जब विभाग भी बंट गए हैं तो भी कद नापने का यह सिलसिला थमा नहीं है।

ऐसा नहीं है कि कद की नपाई तुलाई केवल कांग्रेस में ही हो रही हो। सत्‍ता से बाहर हुई भाजपा में भी यह कदा-कदी जारी है। सिर्फ एक फर्क है। कांग्रेस में जहां एक से अधिक नेताओं के कद को लेकर कन्‍फ्यूजन था वहीं भाजपा में थोड़ी सुविधा है। वहां बात केवल एक ही नेता के कद को लेकर हो रही है और वे हैं पूर्व मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान।

चुनाव हारने के बाद भाजपा में कोई भी डेवलपमेंट हो रहा हो, पहले यह सूंघने की कोशिश होती है कि इससे शिवराज का कद बढ़ा या घटा। भाजपा में लोगों को अपने कद की उतनी चिंता नहीं है जितनी चिंता उन्‍हें इस बात की है कि शिवराज के कद का क्‍या हो रहा है? और जो बात कही नहीं जा रही पर बड़ी शिद्दत से महसूस की या कराई जा रही है वो ये कि कुछ भी हो शिवराज का कद बढ़ता हुआ नजर नहीं आना चाहिए।

शिवराज के कद को लेकर सबसे पहले बात उस समय उठी जब उन्‍होंने चुनाव के तत्‍काल बाद ऐलान किया कि वे ‘आभार यात्रा’ निकालेंगे। शिवराज वैसे भी भाजपा के यात्रावीरों में शुमार हैं। मुख्‍यमंत्री रहते हुए उन्‍होंने जाने कितनी तरह की यात्राएं निकाली थीं। तो जैसे ही उन्‍होंने आभार यात्रा का ऐलान किया, भाई लोगों के आंख-कान-नाक सब खड़े हो गए। खुसफुस होने लगी कि इस यात्रा से तो इस आदमी का कद बढ़ जाएगा।

फिर पता नहीं क्‍या हुआ कि शिवराज की वह यात्रा शुरू नहीं हो पाई। ऐसा न हो पाने पर भाजपा के भीतर ही एक अदृश्‍य आनंद लहर देखी गई। मीडिया में खबरें नमूदार हुईं की पार्टी आलाकमान ने शिवराज को यात्रा निकालने से रोक दिया। भाई लोग प्रसन्‍न हुए, मन ही मन कहा- बड़े चले थे यात्रा निकाल कर अपना कद बढ़ाने, हाईकमान ने धागा ही काट दिया।

अगला मुद्दा बना नेता प्रतिपक्ष के चयन का। पार्टी की हार के बाद शिवराज से जब मीडिया ने पूछा कि क्‍या वे नेता प्रतिपक्ष होंगे, तो उन्‍होंने मजाकिया लहजे में जवाब दिया था- नेता तो हम हैं ही… लेकिन बाद में उन्‍होंने कह दिया था कि वे नेता प्रतिपक्ष नहीं बनना चाहते। कद नापने वालों ने इसे फिर अपने फेवर वाली बात बताते हुए कहा, देखा शिवराज नेता प्रतिपक्ष नहीं बन पाए… पक्‍का उनका कद घट गया है…

इसी बीच चर्चा चलने लगी कि शिवराज खुद भले ही न बन रहे हों लेकिन वे अपने किसी पट्ठे को नेता प्रतिपक्ष बनवाना चाहते हैं। कहा गया कि वे भूपेंद्रसिंह का नाम आगे बढ़ा रहे हैं। लेकिन ऐन वक्‍त पर मीडिया में जो खबरें नुमायां हुईं उनमें मुख्‍य मुकाबला दो पूर्व मंत्रियों नरोत्‍तम मिश्रा और गोपाल भार्गव के बीच पाया गया, भूपेंद्रसिंह का कहीं नाम ही नहीं था। मिश्रा और भार्गव में से भी बाजी अंतत: भार्गव के हाथ लगी।

अब खबरें कहती हैं कि चूंकि शिवराज नहीं चाहते थे कि नरोत्‍तम मिश्रा नेता प्रतिपक्ष बनें, इसलिए उन्‍होंने भार्गव के नाम को आगे बढ़ाया और उन्‍हें नेता प्रतिपक्ष बनवा दिया। और मीडिया रिपोर्ट्स ही ये भी कह रही हैं कि भाजपा आलाकमान की इच्‍छा और अमित शाह से नजदीकी के बावजूद नरोत्‍तम को यह पद नहीं मिल सका।

अब मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि इस घटनाक्रम में किसका कद बढ़ा और किसका घटा। यदि नरोत्‍तम अमित शाह के नजदीक थे और यदि भाजपा आलाकमान उन्‍हें नेता प्रतिपक्ष बनाना चाहती थी तो क्‍या अमित शाह का कद इतना कम हो गया है, या उनके इतने दुर्दिन आ गए हैं कि वे किसी को नेता प्रतिपक्ष बनवाने की अपनी सड़ी सी इच्‍छा भी पूरी न करवा सकें।

और मीडिया रिपोर्ट्स की ही मानें तो यदि आलाकमान की इच्‍छा के विपरीत शिवराजसिंह अपनी गोलबंदी में कामयाब होकर नरोत्‍तम के मुंह से निवाला छीन गोपाल भार्गव के मुंह में डालने में कामयाब हो गए हैं तो उनका कद घटा हुआ माना जाए या बढ़ा हुआ?

इसीलिए मैंने कहा- अजीब पहेली है यह कदों के घटने और बढ़ने की… इसे सुलझाना कम से कम मेरे बस की बात तो नहीं, आप सुलझा सकते हों तो बताइएगा…

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