कविता ने ही शांति की बात की और उसी ने युद्ध की

14 फरवरी को पुलवामा की घटना से शुरू हुए प्रचंड तनाव से लेकर 28 फरवरी तक, यानी जब मैं यह कॉलम लिख रहा हूं तब तक मीडिया और सोशल मीडिया में आने वाली नकारात्‍मक सामग्री पर मैंने काफी बात की है। लेकिन इन नकारात्‍मक सुरों के बीच कुछ सुर ऐसे भी हैं जिनका जिक्र होना और जिन्‍हें दर्ज किया जाना उतना ही जरूरी है।
 
पता नहीं आपने ध्‍यान दिया या नहीं, लेकिन यह बात नोटिस की जानी चाहिए थी कि भारतीय सेना ने इतनी बड़ी कार्रवाई करने की सूचना देने के लिए भी कविता को माध्‍यम बनाया था। 26 फरवरी को रक्षा मंत्रालय में भारतीय सेना संबंधी मामले देखने वाले अतिरिक्‍त महानिदेशक (जनसंपर्क) ने इस बारे में किए गए अपने पहले ट्वीट के लिए महान कवि रामधारीसिंह दिनकर की कविता को माध्‍यम बनाया था। उन्‍होंने लिखा-
 
‘क्षमाशील हो रिपु-समक्ष तुम
हुए विनीत जितना ही,
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की,
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की।’ 
 
इसके बाद सैन्‍य प्रवक्‍ता की ओर से उसी दिन एक और ट्वीट किया गया
 
आज सिन्धु ने विष उगला है,
लहरों का यौवन मचला है।
आज ह्रदय में और सिन्धु में,
साथ उठा है ज्वार,
तूफानों की ओर घुमा दो,
नाविक निज पतवार।
 
इसके बाद 27 फरवरी को मंत्रालय की ओर से एक और कविता ट्वीट की गई
 
माथे तिलक लगाती हमको,वीर प्रसूता मातायें,
वीर शिवा, राणा, सुभाष की, भरी पड़ी हैं गाथायें।
सरहद है महफूज हमारी, अपने वीर जवानों से,
लिखते है इतिहास नया नित, जो अपने बलिदानों से।।
 
ऐसा नहीं है कि भारतीय सेना की ताजा सर्जिकल स्‍ट्राइक को लेकर सिर्फ सैन्‍य प्रवक्‍ता ही कविता में बात कर रहे थे। सोशल मीडिया पर ऐसे ट्वीट का जवाब देने वाले भी उसी अंदाज में जवाब दे रहे थे। जैसे 26 फरवरी के पहले ट्वीट के जवाब में कवि दिनकर को ही कोट करते हुए बात को इन पंक्तियों के साथ आगे बढ़ाया गया-
पिछले तीन दिनों में आए तमाम उतार चढ़ाव के बाद, सोशल मीडिया के एक धड़े में इस बात पर भी बहस होने लगी कि जंग चाहिए या शांति, सिर चाहिए या संवाद। उसी सिलसिले में गुरुवार को भोपाल के सामाजिक कार्यकर्ता सचिन जैन ने एक कविता ट्वीट की-
 
एक आदमी, एक कुटुंब, एक बस्ती
हमेशा बीचों बीच होते हैं धरती के,
मज़हब की, सत्ता की, पहचान की
जमीन की और हिंसा की सियासत
एक लकीर खींचना शुरु करती है
तब धरती पर सरहद बन जाती है
और ये पहुँच जाते हैं हाशिये पर,
बस फ़िर एक स्थाई खतरा जंग का
आकर बस जाता है उनके जीवन में
 
सचिन जैन की इस कविता के पोस्‍ट होने से पहले मुझे एक मित्र ने चर्चित कवि श्रीकांत वर्मा की एक कविता भेजी। ‘कलिंग’ शीर्षक से लिखी गई यह कविता कहती है-
 
केवल अशोक लौट रहा है
और सब कलिंग का पता पूछ रहे हैं
केवल अशोक सिर झुकाए हुए है
और सब विजेता की तरह चल रहे हैं
केवल अशोक के कानों में चीख  गूँज रही है
और सब हँसते-हँसते दोहरे हो रहे हैं
केवल अशोक ने शस्त्र रख दिए हैं
केवल अशोक लड़ रहा था।
 
सोशल मीडिया पर जब यह सब चल रहा था तभी खबर आई कि पाकिस्‍तान ने पकड़े गए भारतीय फायटर पायलट अभिनंदन वर्धमान को रिहा करने का फैसला किया है। इस खबर के बाद बहस इस बात पर शुरू हो गई क्या अब भारत भी इस ‘उदारता’ का वैसा ही कुछ जवाब देकर पाकिस्‍तान की ओर से की गई बातचीत की पेशकश को मंजूर करेगा?
 
शाम आते आते इस पर भी भारत का रुख बहुत कुछ स्‍पष्‍ट हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कार्यक्रम में कहा- ‘’अभी-अभी एक पायलट प्रोजेक्ट हुआ है, अब रियल करना है।‘’ शाम को ही तीनों सेनाओं की संयुक्‍त प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में साफ तौर पर कहा गया कि हमारी लड़ाई आतंक के खिलाफ है, पाकिस्‍तान जब तक आतंकियों को सपोर्ट करता रहेगा हम उनके जितने भी ट्रेनिंग कैम्‍प हैं उन्‍हें टारगेट करने के लिए तैयार हैं।
 
रही सही कसर भाजपा के प्रवक्‍ता संबित पात्रा ने एक टीवी पैनल चर्चा में पीयूष मिश्रा की यह कविता सुनाकर कर दी-
 
आरम्भ है प्रचण्ड बोल मस्तकों के झुण्ड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो,
आन बान शान या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो !!!
मन करे सो प्राण दे, जो मन करे सो प्राण ले
वही तो एक सर्वशक्तिमान है,
विश्व की पुकार है ये भगवत का सार है कि
युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है !!!

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