आज जरा तीन साल पीछे चलते हैं। बात अगस्त 2014 की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शपथ लिए हुए सिर्फ ढाई महीने ही हुए थे और वे प्रधानमंत्री के तौर पर पहली बार लेह लद्दाख की यात्रा पर गए थे। वहां उनके दो प्रमुख कार्यक्रम थे। लेह में उन्होंने 12 अगस्त 2014 को श्रीनगर लेह ट्रांसमिशन लाइन की आधारशिला रखी थी। उसी दिन दूसरे कार्यक्रम में मोदी ने कारगिल में चुटक पनबिजलीघर राष्ट्र को समर्पित किया था।
इन दोनों कार्यक्रमों में ताजा ताजा बने प्रधानमंत्री के भाषण के कुछ अंश बहुत महत्वपूर्ण थे। लेह के भाषण में उन्होंने कहा था- ‘’मैं जो प्रकाश की बात करता हूं अंधेरा दूर करने की बात करता हूं मैं जानता हूं, कई वर्षों से हमारा देश भ्रष्टाचार के कारण परेशान है, देश में रुपयों की कमी नहीं है, चाहे दिल्ली में बैठी हुई सरकार हो चाहे राज्यों में, देश की जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ गुस्से में है और मैं देशवासियों को हिन्दु्स्तान के एक कोने में लद्दाख की चोटियों से आज विश्वास दिलाता हूं कि हम भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ेगें।‘’
जबकि कारगिल के भाषण में उन्होंने वह मशहूर उक्ति कही थी जो आगे चलकर इस सरकार का ताकतवर मुहावरा बन गई। वहां उन्होंने नारा दिया था- न खाऊंगा, न खाने दूंगा। मोदी ने कहा था- भाइयो एवं बहनो, विकास तो करना है। … इस देश को आगे बढ़ने के लिए पैसों की कमी नहीं है। … देश के नागरिकों के पसीने में खोट नहीं है। … पैसों में भी खोट नहीं है, उसके बाद भी हमारा देश वहीं का वहीं न जाने कहां ठप्प हो गया है। सामान्य मानव की जिन्दगी में बदलाव क्यों नहीं आता, उसका एक महत्वपूर्ण कारण है, भ्रष्टाचार ने हमें तबाह करके रखा है। आप मुझे बताइए भाइयो एवं बहनो, भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहिए या नहीं चाहिए? हिंदुस्तान के हर कोने से भ्रष्टाचार जाना चाहिए कि नहीं जाना चाहिए? भाइयो एवं बहनो, मैंने बीड़ा उठाया है। मेरा तो मंत्र है न खाऊंगा न खाने दूंगा।‘’
उन भाषणों के करीब तीन साल बाद, आज जब देश दीवाली मना रहा है तब प्रधानमंत्री की ये बातें एक घटना को लेकर याद आईं। यह घटना हमारे अपने मध्यप्रदेश से भी जुड़ी है। दो दिन पहले राजधानी भोपाल के एक अंग्रेजी अखबार ने खबर छापी जो भ्रष्टाचार से पीडि़त एक उद्यमी की पीड़ा को बयान करती है। उस खबर का शीर्षक ही यही है-Are we supposed to bribe? (क्या हमें रिश्वत देना पड़ेगी?)
यह खबर सुप्रीम एयरलाइंस नाम की एक वायुसेवा कंपनी से जुड़ी है। इस सुप्रीम एयरलाइंस की कहानी यह है कि उसने अमेरिका से करोड़ों की लागत का एक हवाई जहाज खरीदा। 22 मई 2017 को यह हवाई जहाज अमेरिका से भारत लाया गया। जमा कराए गए दस्तावेजों के आधार पर इस हवाई जहाज का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट 14 जून 2017 को जारी किया गया। उसके बाद इस हवाई जहाज को उड़ान भरने की अनुमति देने वाला ‘सर्टिफिकेट ऑफ एयरवर्दीनेस’ जारी करने संबंधी आवेदन तीन महीने से भी अधिक समय से नागरिक उड्डयन महानिदेशक कार्यालय (डीजीसीए) के भोपाल, दिल्ली और मुंबई दफ्तरों के बीच टल्ले खा रहा है।
सर्टिफिकेट न मिलने के कारण कंपनी अपना यह विमान जयपुर में यूं ही खड़ा रखने को मजबूर है और इसके कारण उसे 135 दिनों में करीब साढ़े पांच करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है। अब थक हारकर कंपनी के अध्यक्ष और सीईओ अमित अग्रवाल ने 7 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नागरिक उड्डयन मंत्री ए.गजपति राजू सहित अन्य नेताओं व अफसरों को पत्र लिखकर पूछा है कि क्या उन्हें‘सर्टिफिकेट ऑफ एयरवर्दीनेस’ प्राप्त करने के लिए अफसरों को रिश्वत देनी होगी?
इस मामले में एक दिलचस्प बात और है। यह जिस कंपनी का मामला है उस कंपनी में लोकसभा की अध्यक्ष और इंदौर की सांसद सुमित्रा महाजन के पुत्र मिलिन्द महाजन कंट्री मैनेजर के रूप में काम करते हैं। जरूरी प्रमाण पत्र पाने के लिए मिलिन्द की ओर से भी प्रयास किए गए लेकिन वे सफल नहीं हुए। खुद मिलिन्द ने मीडिया से कहा कि हमने अपनी ओर से भरसक कोशिश की है पर डीजीसीए के अधिकारी अपना अडि़यल रवैया छोड़ने को ही तैयार नहीं हैं। इसके कारण कपंनी को करोड़ों रुपए का घाटा उठाना पड़ रहा है।
कंपनी के सीईओ अमित अग्रवाल का कहना है कि डीजीसीए के अफसरों ने फाइल लटका रखी है। हो सकता है उन्हें रिश्वत चाहिए हो। हमने प्रधानमंत्री को भी इसकी शिकायत की है, क्योंकि हमारे ऐसे छह विमान और भारत आने वाले हैं। वर्तमान में जयपुर में खड़े विमान के लिए हमें चार लाख रुपए प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान करना पड़ रहा है। इतना बड़ा घाटा हम कैसे उठा सकते हैं।
खबर छापने वाले अखबार ने इस मामले पर डीजीसीए के निदेशक बीएस भुल्लर का बयान भी छापा है। भुल्लर का कहना है कि सुप्रीम एयरलाइंस की शिकायत आने के बाद हमने उनके तमाम कागजात देखे हैं। कंपनी के स्तर पर कई कमियां पाई गई हैं। उन्होंने समय पर दस्तावेज भी जमा नहीं करवाए हैं। हमने उनसे उस अधिकारी का नाम भी पूछा है जिसने उनसे रिश्वत मांगी है।
अब आप ही बताइए कितना मासूम सिस्टम है हमारा। जिस बात की शिकायत प्रधानमंत्री को की गई है उसके बारे में अफसर कह रहा है कि हमने कंपनी से उस आदमी का नाम पूछा है जिसने रिश्वत मांगी है। हर कोई जानता है कि यह कोई फिल्मी ड्रामा नहीं है और न ही यहां सलीम जावेद टाइप डॉयलागबाजी चल रही है जिसमें दीवार फिल्म के अमिताभ बच्चन अपने छोटे भाई शशिकपूर से पूछ रहे हों कि जाओ पहले उस आदमी का साइन लेकर आओ जिसने मेरे हाथ पर लिख दिया था कि मेरा बाप चोर है।
यहां तो सिस्टम ही माईबाप है और उस सिस्टम से जूझने वाला बच्चा बच्चा जानता है कि ये माईबाप चोर ही नहीं सरेआम डकैती डालने वाले डकैत हैं। इसीलिए मैंने कहा कि प्रधानमंत्री जी को ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ वाले अपने दावे को एक बार अच्छी तरह चैक करवा लेना चाहिए।
वैसे आप सबको दीवाली मुबारक…!!!