अरे उसको मत सताओ रे… वो अपना कृषि मंत्री है रे…

पाठक कई बार गुस्‍सा हो जाते हैं… इतना गुस्‍सा होते हैं कि लगता है उनके हाथ में बंदूक हो तो अभी गोली मार दें… सरकारें इसीलिए जनता के हाथ में बंदूक नहीं देती… पुलिस और सीआरपीएफ के हाथ में देती है,क्‍योंकि उन्‍हें पता होता है गोली कब चलाना है… किस पर चलाना है। जिस पर चलाना होती है वे उसी पर चलाते हैं… जब चलाना होती है, तभी चलाते हैं… लोगों या पाठकों का क्‍या भरोसा, उनमें विवेक तो होता नहीं… उनको तो बस ठांय करने से काम है…

लेकिन कलेक्‍टर साहब, एसपी साहब, एडीएम साहब, एसडीएम साहब, डिप्‍टी साहब… ये सारे साहब विवेकशील होते हैं, गोली चलाने के अपने विवेकाधीन कोटे का इस्‍तेमाल तभी करते हैं जब उन्‍हें लगता है कि कांटा जरूरत से ज्‍यादा धंसता जा रहा है… उनकी शिक्षा कांटे से कांटा निकालने वाले फार्मूले से नहीं होती, वे कांटे को कांटे से नहीं निकालते, सीधे गोली से निकालते हैं… उनके यहां समस्‍या का समाधान ऐसे ही होता है…

खैर, मैं बता रहा था कि पाठक कई बार गुस्‍सा हो जाते हैं। शुक्रवार को ऐसे ही एक गुस्‍साए हुए पाठक का फोन आया। लगता था वे अपने गुस्‍से की अंगीठी के पूरे अंगारे ही मुझ पर उडेल देना चाहते हैं। कई बार हम लोग समझ नहीं पाते कि पाठक आखिर हमें क्‍या क्‍या समझ लेते हैं। उनका गुस्‍सा कृषि मंत्री पर फूटा हुआ था। उन्‍होंने छूटते ही पूछा आपके कृषि मंत्री का ‘संतुलन’ तो ठीक है ना?

मैं थोड़ी देर सम्‍माननीय पाठक की बात सुनता रहा फिर मैंने पूछा आखिर हुआ क्‍या है? उन्‍होंने कहा- ‘’पहले तो वे पूरे किसान आंदोलन में समस्‍या को सुलझाने के लिए कहीं नजर नहीं आए और अब सरेआम मंच पर अपनी ही पार्टी के सांसद से तू-तू, मैं-मैं करने में लगे हैं। आखिर मंत्री की कोई गरिमा होती है या नहीं… ऐसा कब तक चलेगा, आप लोग भी कुछ नहीं लिखते, सबके सब चारणगिरी में लगे हैं…’’

मैंने कहा, ऐसा नहीं है, हम लोगों को जहां लगता है, हम जनता की आवाज को आवाज जरूर देते हैं। लेकिन आप जिन नेताजी का जिक्र कर रहे हैं, क्‍या उनके बारे में जानते भी हैं कि वे कौन हैं…क्‍या हैं…

पाठक ने उलटे सवाल दागा- क्‍या हैं?

मैंने कहा- तो सुनिए, वे 1971 से राजनीति‍ में सक्रिय हैं। 1978-80 में बालाघाट जिला सहकारी बैंक और भूमि विकास बैंक में संचालक थे। भाजपा के जिला उपाध्‍यक्ष रहे। 1984 से 1993 लगातार तीन बार विधायक चुने गए। 1998 और 2004 में सांसद बने। संसद में रक्षा, ऊर्जा, रेल आदि के अलावा कृषि संबंधी स्‍थायी समिति के सदस्‍य रहे हैं। प्रदेश भाजपा के उपाध्‍यक्ष, अल्‍पसंख्‍यक मोर्चा व सहकारिता प्रकोष्‍ठ के प्रभारी रहे हैं। और किसानों से उनके रिश्‍ते का सबसे बड़ा सबूत यह है कि वे प्रदेश भाजपा किसान मोर्चा के अध्‍यक्ष रह चुके हैं,उनसे ज्‍यादा किसानों के बारे में कौन जान सकता है? वे खुद खेती करते हैं और मछली पालते हैं।

लेकिन लगता है पाठक महोदय पूरी तैयारी से थे।

– सीनियर हैं तो क्‍या खुद को सरकार समझने लगेंगे?

– क्‍यों उन्‍होंने कब खुद को सरकार समझा?

– खुद पढ़ लीजिए, अखबारों में छपा है, बालाघाट की घटना पर उन्‍होंने खुद कहा है कि ये मेरा नहीं सरकार का अपमान है…

– हां तो क्‍या हुआ, वे सरकार के बड़े मंत्री हैं, उनका अपमान सरकार का भी अपमान माना जाएगा…

– यानी आप भी मिले हुए हैं…

– इसमें मिलने जैसी क्‍या बात है, शिव के राज में गौरीशंकर का अपमान, शिव का ही अपमान हुआ ना

– देखिए मजाक छोडि़ए, आप ऐसे लोगों के बारे में कुछ लिखिए जो किसानों को कर्ज में डुबोकर मार देना चाहते हैं… मंत्री कह रहा है कि किसान खुदकुशी कर रहा है तो हम क्‍या कर सकते हैं? यह कोई जवाब हुआ भला? यह है सरकार की संवेदनशीलता?

– अरे आप उनके कहे पर मत जाइए, खुद मुख्‍यमंत्री ने जब कहा है कि किसान की उपज का सरकार उचित मूल्‍य दिलाएगी, तो फिर जरूर दिलाएगी। याद रखिए- चंद्र टलै, सूरज टलै, टलै न शिव का कौल…

– भाई साहब, आप करते रहिए ये शेरो शायरी, यहां किसान रोज खुदकुशी कर रहा है, उधर सरकार को मसखरी सूझ रही है और आपको शायरी, इस देश का कुछ नहीं हो सकता…

और पाठक सरकार ने गुस्‍से में फोन काट दिया। मैं उन्‍हें बताना चाहता था कि सरकारें इस तरह नहीं चला करतीं। सरकार कोई किसान नहीं है कि खबरों का कर्ज चढ़ जाए तो खुदकुशी कर ले। सरकार आखिर सरकार होती है, वह कभी किसी की कर्जदार नहीं होती, न जनता की, न कानून की, न संविधान की… और मीडिया की कर्जदार होने का तो सवाल ही नहीं उठता। उलटे मीडिया ही अमूमन सरकार का कर्जदार होता है…

पता नहीं पाठक इतने सेंटी क्‍यों हो जाते हैं। खबरों और ‘गिरेबान में’ टाइप कॉलमों को इतना सीरियसली नहीं लेना चाहिए। इससे विचार का कब्‍ज हो जाता है। बिसेन साहब के मुंह से कुछ निकल भी गया होगा तो क्‍या उनकी जान ले लें… पाठक सरकार ने यदि गुस्‍से में फोन नहीं काटा होता तो मैं उनसे जरूर कहता-

अरे उसके पीछे मत पड़ो रे, उसे मत सताओ, वो अपने प्रदेश का कृषि मंत्री है रे…  

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