मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा चुनाव 2018 के लिए शनिवार को अपना मेनीफेस्टो जारी कर दिया। पिछले कुछ चुनावों से पार्टी अपने मेनीफेस्टो को ‘संकल्प पत्र’ के नाम से जारी कर रही थी, लेकिन इस बार वह नाम बदलकर ‘दृष्टि पत्र’ कर दिया गया है। यह कहना मुश्किल है कि चुनाव के समय जनता के सामने किसी बात का ‘संकल्प’ लेकर जाना ज्यादा उचित है या ‘दृष्टि’ लेकर।
आप यदि शब्दों की खाल निकालना चाहे तो कह सकते हैं कि पिछले चुनावों में भाजपा ने जनता के सामने ‘संकल्प‘ किया था कि वह चुनावी वायदे की किताब में जो कह रही है, उसे पूरा करने के संकल्प के साथ कह रही है। लेकिन इस बार उसने अपनी कही हुई बात या वायदों को उसकी ‘दृष्टि’ बताया है। हो सकता है यह शब्द अंग्रेजी के विजन से लिया गया हो और अंग्रेजी के ही ‘विजन डाक्यूमेंट’ की तर्ज पर ‘दृष्टि पत्र’ नाम गढ़ा गया हो।
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ने कहा भी है कि उन्होंने मध्यप्रदेश को बीमारू से विकासशील बनाया, फिर विकसित किया और अब वे उसे समृद्ध प्रदेश बनाना चाहते हैं। उस लिहाज से देखें तो यह एक समय बीमारू कहे जाने वाले प्रदेश को समृद्ध प्रदेश बनाने का ‘विजन डाक्यूमेंट’ है। और चूंकि यह विजन डाक्यूमेंट है इसलिए इसमें बहुत सी बातों को आप ‘विजनरी’ भी मान सकते हैं।
वैसे मुझे इस दृष्टि पत्र में जो सबसे महत्वपूर्ण घोषणा लगी वह है प्रदेश के लघु और सीमांत किसानों को उनकी फसल का बोनस घर बैठे ही दे दिए जाने का वायदा। दरअसल इस बार प्रदेश के दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वी दलों ने खेती किसानी पर बहुत ज्यादा फोकस किया है। भाजपा से पहले अपना ‘वचन पत्र’ जारी कर चुकी कांग्रेस ने वायदा किया है कि वह यदि सत्ता में आई तो किसानों का दो लाख रुपए तक का कर्ज माफ करेगी।
कांग्रेस कर्ज माफी को अपने चुनाव अभियान में तुरुप के पत्ते की तरह इस्तेमाल कर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी हर सभा में यह बात दोहरा रहे हैं कि उनकी पार्टी का मुख्यमंत्री सरकार बनने के दस दिन के भीतर कर्ज माफ करेगा और यदि वह ऐसा नहीं कर पाया तो वह कुर्सी पर नहीं रह सकेगा। भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राहुल हर मंच से कर्ज माफी के मुद्दे पर घेर रहे हैं।
शायद यही कारण है कि पिछले कई सालों से लगातार खेती की 20 फीसदी विकास दर हासिल करने वाले मध्यप्रदेश में भाजपा ने किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य दिलाने की दिशा में नई पहल करते हुए यह वायदा कर डाला है कि छोटे या मझोले किसान अपनी फसल मंडी में बेचने के लिए लाएं या न लाएं, वे फसल को अपने उपयोग के लिए रखें या किसी और को बेच दें, लेकिन उस फसल पर दिया जाने वाला बोनस सीधे उनके खाते में जमा कर दिया जाएगा।
दृष्टि पत्र जारी किए जाने के दौरान मुख्यमंत्री का कहना था कि यह देखा गया है कि छोटे और सीमांत किसान विभिन्न कारणों से योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते। इसलिए उनका जो भी हक बनता है उसे अब सरकार सीधे उनके खाते में जमा करवा देगी। उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि जैसे किसी किसान के पास दो एकड़ जमीन है और वह 30 क्विंटल गेहूं पैदा करता है तो 265 रुपए प्रति क्विंटल के मान से 7950 रुपए हम सीधे उसके खाते में डलवा देंगे। इस घोषणा का लाभ पांच एकड़ तक की जमीन वाले किसानों को मिलेगा।
यानी मध्यप्रदेश की चुनावी जंग में कांग्रेस और भाजपा दोनों ने किसानों पर बड़ा दांव खेला है। कांग्रेस ने जहां कर्ज माफी का पत्ता फेंका है तो भाजपा ने सीधे बोनस का। अब यह किसानों पर है कि वे कर्ज माफ करने वाली पार्टी को चुनते हैं या बिना अनाज को बेचे सीधे उनके खाते में बोनस की राशि डलवाने का वादा करने वाली भाजपा को।
किसानों को लेकर हुई इस पैंतरेबाजी पर बात करते समय इसका गणित जानना भी बहुत जरूरी है। मध्यप्रदेश के कृषि एवं कृषि कल्याण विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी में छोटे और सीमांत किसानों की संख्या वर्ष 2005-06 की कृषि गणना के हिसाब से 53 लाख 47 हजार बताई गई है। निश्चित रूप से पिछले 12 सालों में इसमें परिवर्तन हुआ होगा। अब यदि मोटे तौर पर यह संख्या 55 लाख भी मानी जाए तो यह जानना जरूरी है कि भाजपा और कांग्रेस किसानों को आखिर कितनी राशि की सौगात देने जा रहे हैं।
कांग्रेस के प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी के अनुसार उनकी पार्टी के वचन पत्र के दायरे में आने वाले किसानों के कर्ज की राशि लगभग 94 हजार करोड़ होती है जिसे सरकार में आते ही माफ कर दिया जाएगा। भाजपा ने हालांकि ऐसा कोई आंकड़ा नहीं दिया है लेकिन यदि मुख्यमंत्री द्वारा ऊपर दिए गए उदाहरण को ही आधार माना जाए तो 55 लाख किसानों को 7950 के मान से 4372.5 करोड़ रुपए देना होंगे। यदि साल में दो फसलों को आधार बनाया जाए तो माना जा सकता है कि सरकार को इसकी दुगुनी यानी 8745 करोड़ की राशि योजना पर खर्च करनी होगी। यह नितांत मोटा अनुमान है और रकबे एवं उत्पादन की स्थिति में इसमें परिवर्तन हो सकता है।
लेकिन यह सौदा इतना सस्ता नहीं होगा। ऐसा इसलिए कि राज्य के वर्ष 2018-19 के बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा था कि ‘’गेहूं तथा धान उत्पादक किसानों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से कृषक समृद्धि योजना प्रारंभ की जा रही है। योजना के अंतर्गत लगभग नौ लाख किसानों को प्रति क्विंटल रुपए 200 के मान से प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाएगी। योजना हेतु वर्ष 2018-19 के बजट में 3650 करोड़ रुपए का प्रावधान है।‘’
अब इस बात को ध्यान में रखकर गणना करें तो जब 9 लाख किसानों के लिए 3650 करोड़ चाहिए थे तो 55 लाख के लिए यह राशि 22305 करोड़ से ज्यादा चाहिए होगी। जाहिर है यह राशि कांग्रेस के वायदे की तुलना में प्रदेश की आर्थिक सेहत पर कम भार डालेगी।
लेकिन मेरा सवाल सिर्फ यह है कि मध्यप्रदेश का कुल वार्षिक बजट अभी 1.86 लाख करोड़ रुपए है और उस पर करीब इतना ही कर्ज है। ऐसे में चाहे कांग्रेस की घोषणा के मुताबिक 94 हजार करोड़ की राशि हो या भाजपा की घोषणा के मुताबिक लगभग 23000 करोड़ की (दोनों अनुमानित), इस अतिरिक्त भार को प्रदेश कितना सह पाएगा। और इस पैसे का इंतजाम कहां से होगा?