काबिल’ और ‘रईस’ के ‘दंगल’ में उलझा गणतंत्र

इस बार गणतंत्र दिवस पर कुछ शब्‍दों ने देश के सामाजिक और आर्थिक हालात को लेकर ऐसा कोलाज बनाया कि मैं चौंक गया। कुछ न कहते हुए भी इन शब्‍दों ने वर्तमान से लेकर भविष्‍य तक, देश के बारे में सब कुछ कह डाला…!! क्‍या अजीब संयोग था कि एक तरफ देश 68 वां गणतंत्र दिवस मना रहा था और दूसरी तरफ बहस चल रही थी- ‘काबिल या रईस?

यूं तो इस बहस को ऋतिक रोशन की फिल्‍म ‘काबिल’ और शाहरुख खान की फिल्‍म ‘रईस’ के ही संदर्भ में देखा गया। तमाम राजनीतिक व गैर राजनीतिक धींगामस्‍ती भी इन फिल्‍मों, इनमें काम करने वाले कलाकारों और उन कलाकारों के धर्म या संप्रदाय के इर्दगिर्द सिमटी रही। लेकिन मुझे लगा कि जाने-अनजाने इन दोनों शब्‍दों ने भारतीय गणतंत्र के बारे में बहुत जरूरी सवाल खड़े कर दिए हैं।

आजादी के 70 साल और गणतंत्र के 67 साल बाद यदि हम विकास की तमाम धाराओं और राजनीतिक वायदा बाजार की कलाबाजियों के बावजूद वास्‍तविकता देखें, तो पाएंगे कि ये दोनों शब्‍द केवल इस समय की चर्चित फिल्‍मों के नाम नहीं बल्कि इस देश की बुनियादी समस्‍याओं के सूत्र हैं। ये न रितिक की फिल्‍म है न शाहरुख की, बल्कि ये दो ऐसे प्रश्‍न हैं जो देश के वर्तमान और भविष्‍य के माथे पर चिपके हुए हैं। ऐसा लगता है कि इन शब्‍दों के माध्‍यम से खुद समय हमसे प्रश्‍न कर रहा है- काबिल या रईस?’

चूंकि मैंने ये दोनों फिल्‍में नहीं देखी हैं इसलिए मैं उनका विश्‍लेषण करने की स्थिति में नहीं हूं, न ही यह कहने की स्थिति में हूं कि जिन संदर्भों में मैं इन फिल्‍मों के शीर्षकों को इस्‍तेमाल कर रहा हूं, उन संदर्भों पर ये फिल्‍में कितनी खरी उतरती हैं। लेकिन आज देश के सामने यह मुद्दा जरूर है कि हमें काबिल समाज चाहिये या रईस? हमें काबिल देश चाहिये या रईस? हमारे युवाओं का लक्ष्‍य क्‍या हो- काबिल बनना या रईस बनना?

निश्चित तौर पर रईस बनना कोई बुरी बात नहीं है। लेकिन रईस बनने का तरीका क्‍या हो? यह रईसी नाकाबिलियत की उपज हो या काबिलियत की? एक काबिल राष्‍ट्र तो रईस हो सकता है, लेकिन क्‍या हम दावे के साथ कह सकते हैं कि एक रईस राष्‍ट्र, काबिल भी होता है? कुछ लोग रईस हैं इसलिये वे काबिलियत के प्रमाण पत्र खरीद रहे हैं और कुछ लोग इसलिए रईस बनना चाहते हैं ताकि समाज उन्‍हें उनकी रईसी की बदौलत काबिल भी मानने लगे। यह कोयल के घोसलों में कौवों के अण्‍डे सेये जाने का समय है।

ऐसा नहीं है कि यह छद्म संसार केवल रईसी के इर्दगिर्द बुना जा रहा हो। चिता इस बात की है कि यह छद्म तानाबाना काबिलियत के इर्दगिर्द भी बुना जा रहा है। काबिल होने के नाम पर काबिलियत का आवरण ओढ़े लोग ओहदेदारी कर रहे हैं। कुछ लोग खुद को रईस बताकर समाज को गुमराह कर रहे हैं तो कुछ खुद को काबिल बताकर। लेकिन उनकी काबिलियत भी वैसा ही छलावा है जैसा कुछ लोगों की रईसी। छद्म काबिलियत या छद्म रईसी के नाम पर राज करने वालों की संख्‍या बढ़ती जा रही है।

इस बार 26 जनवरी को जब कॉलम लिखने के काम से छुट्टी मिली तो मैंने बहुत दिनों से पेंडिंग पड़ा काम निपटाया और ‘दंगल’ फिल्‍म देख डाली। जिस छविसंकुल (सिनेप्‍लेक्‍स) में हम फिल्‍म देखने गए थे, वहां भी इन नामों का खेल देखकर मैं हैरत में पड़ गया। हमारे एक तरफ काबिल था, दूसरी तरफ रईसऔर बीच में दंगल। ऐसा लगा मानो यह घटना भी देश की वर्तमान स्थिति को ही चित्रित कर रही है।

क्‍या आपको भी ऐसा नहीं लगता कि देश में एक तरफ काबिल हैं, दूसरी तरफ रईस है और बीच में है वो पीढ़ी जो इन दोनों के बीच होने वाले दंगल में अपना भविष्‍य खोज रही है। उसे काबिल या रईस बनाने वाले कोच भी दो तरह के हैं। एक कोच परंपरागत तरीके से इस पीढ़ी को तैयार कर उसके जरिये गोल्‍ड मैडल की आस लगाये बैठा है तो दूसरा पुराने तौर तरीकों को खारिज कर इंटरनैशनल हथकंडों के जरिये खिलाड़ी के गोल्‍ड मैडल से ज्‍यादा अपनी दुकान चमकाने में लगा है।

मशहूर फिल्‍म समीक्षक और लेखक जयप्रकाश चौकसे ने एक बार लिखा था कि जिस समय जवाहरलाल नेहरू राजनीति में समाजवाद का सपना देख रहे थे, उसी समय फिल्‍मी दुनिया में राजकपूर उस समाजवादी सपने को रुपहले परदे पर उतारने की कोशिश कर रहे थे। चूंकि मुझे फिल्‍में देखने का ज्‍यादा अवसर नहीं मिलता इसलिये मैं दावे के साथ नहीं कह सकता कि आज के राजनीतिक नेतृत्‍व और फिल्‍मी दुनिया में इस तरह के वैचारिक तालमेल की क्‍या स्थिति है,लेकिन काबिल, रईस और दंगल की यह त्रिवेणी मुझे सोचने पर मजबूर जरूर करती है। आप क्‍या कहते हैं…?

2 COMMENTS

  1. Apki bat se 100% sahmat hu parantu burai ke khilaf chalne ki himmat nahi karta or na hi leadership kRna chahta hai. Jab tak gunde, chor, frust logo ko chun kar neta banayege tab tak badlao nahi ho sakta…..
    Aaj IITian, IIM,and imandar logo ko desh ki leadership lena padegi nahi to kukar, leptop, fridge, TV, anaj bata jayege, chahe school me teacher, hospital me doctor, road par damar, nal me pani na ho.

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