हमारी ‘गोल्ड मेडलिस्ट’ बहू अनामिका- पारिवारिक कहानी

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मयंक मिश्रा

‘अरे आप लोग अभी भी तैयार नहीं हुए। बैंड बाजे वाले आ गए हैं। बारात निकलने का समय हो रहा है। थोड़ा जल्दी कीजिए आप लोग।’ सुनीता हड़बड़ाहट में तेजी से कभी किसी कमरे का दरवाजा खटखटा रही थीं तो कभी किसी का। गेस्ट हाउस में ठहरे सभी मेहमानों को उन्होंने 10 मिनट तक हॉल में एकत्र होने का अल्टीमेटम दे दिया था। अपने मंझले बेटे सुचेत की शादी को लेकर सुनीता बहुत ही उत्साहित थी। दिल्ली वाली बहन को जल्दी तैयार होने की हिदायत देकर वह जैसे ही कमरे से बाहर निकली उन्होंने अपने सामने सुचेत को खड़ा देखा। ‘कितना प्यारा लग रहा है तू…किसी की तुझे नजर न लग जाए’, सुनीता ने यह कहते हुए सुचेत के कान के पीछे हल्का सा काजल लगा दिया।

‘अब तो दूल्हा भी तैयार हो कर आ गया। आप लोग और कितना तैयार होंगे?’, सुनीता नीचे के हॉल से ही चिल्लाई। दूल्हे को हॉल में पहुंचता देख बैंड बाजे वालों ने भी अपना काम शुरू कर दिया। कुछ ही देर में सभी मेहमान हॉल में एकत्र हो गए। सहरा पहनाने की रसम के बाद सुचेत को घोड़े पर बैठाया गया और गेस्ट हाउस से सीधे सभी लोग बैंड बाजे के साथ नाचते हुए मंदिर तक गए। भगवान का आशीर्वाद लेने के बाद बारात ने उस होटल के लिए प्रस्थान किया जहां शादी होनी थी। कुछ ही देर में बारात होटल पहुंच गई। यहां बहुत ही धूमधाम से सुचेत और अनामिका की शादी हुई। शादी के बाद जब अनामिका अपने ससुराल आई तो सुनीता ने सभी परिचितों और रिश्तेदारों से अनामिका का परिचय कराते हुए कहा, ‘यह हमारी गोल्ड मेडलिस्ट बहू अनामिका है। पढ़ाई में ही नहीं हर काम में निपुण है।’

सुचेत और अनामिका सात-आठ सालों से एक दूसरे को जानते थे। दोनों ने एक साथ इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। इंजीनियरिंग के तीसरे सेमेस्टर में सुचेत और अनामिका के बीच की दोस्ती प्यार में बदल गई थी। दोनों ही पढ़ाई में बहुत होशियार थे और उन्होंने अपने प्यार का असर पढ़ाई पर नहीं होने दिया। अनामिका ने ग्रेजुएशन में गोल्ड मेडल हासिल किया और इसके बाद वह एमबीए करने के लिए वह लंदन चली गई। सुचेत ने इंजीनियरिंग करने के बाद एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी शुरू कर दी।

अनामिका जब एमबीए की पढ़ाई कर भारत लौटी तो उसे एक प्राइवेट कंपनी में बहुत ही अच्छे पैकेज पर नौकरी मिल गई। अनामिका का पैकेज सुचेत के पैकेज से काफी अधिक था। ऐसे में सुचेत के मन में असुरक्षा की भावना आने लगी कि कहीं अनामिका उसके हाथों से निकल न जाए। वह किसी भी कीमत पर अनामिका को खोना नहीं चाहता था। नौकरी की वजह से अनामिका की व्यस्तता भी बढ़ती गई। दोनों एक ही शहर में होते हुए भी सप्ताह में सिर्फ एक दिन कुछ ही घंटों के लिए मिल पाते थे। सुचेत ने अनामिका पर जल्दी शादी करने का दबाव बनाया और शर्त रखी कि शादी के बाद कुछ सालों तक वह नौकरी नहीं करेगी। शुरू में तो अनामिका इसके लिए बिलकुल तैयार नहीं हुई। लेकिन, धीरे धीरे वह सुचेत की बातों में आ गई और उसने उसकी शर्त मानते हुए शादी की हामी भर दी। इसके बाद सुचेत और अनामिका के परिवार वालों ने भी इस शादी को स्वीकृति दे दी और शादी की तारीख तय की।

शादी के लिए सुचेत को बहुत मुश्किल से 10 दिनों की ही छुट्टी मिली थी। ऐेसे में शादी के दो दिन बाद ही सुचेत और अनामिका घूमने के लिए गोवा चले गए। गोवा से आने के तीन-चार दिन बाद सुनीता ने घर के ड्राइंग रूम में परिवार के सभी सदस्यों को एकत्र किया। उसने सभी से कहा, ‘घर में किसी तरह का कलह न हो इसलिए उसने कुछ नियम बनाए हैं जिससे सभी के हिस्से में कुछ न कुछ काम आ जाए। छोटी बहू अनामिका के जिम्मे परिवार के सभी सदस्यों के लिए नाश्ता बनाना होगा। जबकि रात को खाना बनाने की जिम्मेदारी बड़ी बहू सुमन की होगी। दिन में खाना मैं और अनामिका मिल कर बनाएंगे। जो किचन में जब काम करेगा उस समय के बरतन भी वही धोएगा। अभी अनामिका इस घर में नई नई आई है। इसलिए उसे कुछ दिन कोई काम नहीं करना होगा। यह नियम अगले महीने की पहली तारीख से लागू होगा।’

दरअसल सुमन सरकारी स्कूल में गणित की अध्यापिका थी और स्कूल घर से दूर होने के कारण उन्हें सुबह 6 बजे ही घर से निकलना पड़ता था। वह शाम को 4 बजे के बाद घर लौटती थीं। सुचेत की शादी होने तक परिवार के सभी सदस्यों के लिए नाश्ता और दोपहर का खाना सुनीता बनाती थी। परिवार में सुनीता के पति विक्रम और दो बेटों व बहुओं के अलावा छोटा बेटा कुणाल भी था जो कि बीकॉम कर रहा था। सभी ने सुनीता को कई बार समझाया कि घर में खाना बनाने के लिए किसी को रख लें। लेकिन, उनकी जिद थी कि वह किचन में किसी भी बाहर वाले को नहीं आने देंगी। यही वजह थी कि तबियत ठीक न होते हुए भी सुनीता किचन में हमेशा लगी रहती। सिर्फ रात को उसे आराम मिलता था जब किचन की जिम्मेदारी सुमन संभालती थी।

अनामिका ने किसी के सामने तो कुछ नहीं बोला। लेकिन, अपने कमरे में आते ही वह सुचेत पर चिल्लाई। ‘सुचेत, यह सब क्या है? तुम मुझे यहां अपनी फैमिली के लिए खाना बनवाने के लिए लाए हो? हाउ कैन यू एक्सपैक्‍ट दिस फ्रॉम मी? मैंने अपने घर में कभी खाना नहीं बनाया। और मैं यहां इतने सारे लोगों के लिए ब्रेक फास्ट बनाऊंगी? आई कैन नेवर डू दिस। तुम भूल रहे हो कि आई एम ए गोल्ड मेडलिस्ट। इतनी पढ़ाई मैंने किचन में ब्रेकफास्ट बनाने या बरतन धोने के लिए नहीं की। मैं कल ही जा रही हूं इंटरव्यू देने। मैं नौकरी करूंगी और मैं अब तुम्हारी किसी बात में नहीं आऊंगी।’

‘चिल बेबी। शांत हो जाओ। मेरे होते हुए तुम क्यों परेशान हो रही हो। मैं करूंगा न मां से बात। तुम्हें किचन में जाने की कोई जरूरत नहीं होगी।’ सुचेत ने अनामिका से हंसते हुए कहा। अनामिका भी सुचेत की यह बात सुनकर शांत हो गई। सुचेत ने अनामिका को तो शांत करवा दिया। लेकिन, मां से बात करने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। अगले महीने की पहली तारीख भी आ गई। सुनीता सुबह आठ बजे से किचन के सामने रखी कुर्सी पर बैठकर अनामिका के आने का इंतजार करती रही। कुणाल भी कालेज जाने के लिए तैयार हो गया था और वह डाइनिंग टेबल पर बैठकर नाश्ते का इंतजार कर रहा था। लेकिन, न तो नाश्ते का कोई अता पता था और न ही अनामिका का। सुनीता ने अनामिका को कई बार आवाज भी लगाई। लेकिन, वह नहीं आई।

कुछ देर इंतजार करने के बाद सुनीता सुचेत के कमरे के बाहर पहुंची और दरवाजा खटखटाया। सुचेत ने दरवाजा खोला और मां को कमरे में आने के लिए कहा। सुचेत को भी यह याद नहीं था कि उस दिन महीने की पहली तारीख है। सुनीता ने देखा कि अनामिका बेड पर आराम से लेटकर अपने मोबाइल फोन पर फेसबुक देख रही है और उनके कमरे में आने के बाद भी वह न तो उठी और न ही उसने सुनीता की तरफ देखा।

‘यह सब क्या है सुचेत? कम से कम तुम्हें तो याद होना चाहिए था कि आज महीने की पहली तारीख है और आज से अनामिका को सुबह नाश्ता बनाना है। कुणाल कब से नाश्ते का इंतजार कर रहा है।’, सुनीता ने गुस्से से सुचेत से कहा। ‘मां, मैंने आपसे कितनी बार कहा है कि किसी खाना बनाने वाले को रख लो। उसके पैसे मैं दे दूंगा। अनामिका को किचन में कोई इंटरेस्ट नहीं है और इंफैक्ट उसे कुछ बनाना आता भी नहीं है। और वैसे भी वह बहुत पढ़ी लिखी है। गोल्ड मेडलिस्ट है। शादी के पहले इतनी बड़ी कंपनी में काम करती थी। उससे नाश्ता बनवाना या बरतन धुलवाना क्या अच्छा लगेगा? ‘, सुचेत ने धीरे से मां को देखते हुए कहा।

‘वाह बेटा। क्या खूब कहा तूने। तू तो अभी से बीवी का गुलाम हो गया। क्या तेरी भाभी सुमन पढ़ी लिखी नहीं है? क्या वह नौकरी नहीं करती है?  उसने भी तो एमएससी में टॉप किया था। उसने तो कभी ऐसा नहीं कहा। और तेरी मां क्या पढ़ी लिखी नहीं है? अनामिका को खाना बनाना नहीं आता तो क्या सीख नहीं सकती। मैं हू्ं न सिखाने के लिए। और यह तो तुझे पता ही है कि मेरे जीते जी इस किचन में कोई बाहर का व्यक्ति आकर खाना नहीं बना सकता है।’, सुनीता की आवाज में गुस्सा था। सुनीता के कमरे में आने के बाद भी अनामिका अपने मोबाइल पर फेसबुक देखती रही। यह देखकर सुनीता का गुस्सा और बढ़ गया, लेकिन उन्होंने उस समय अनामिका को एक शब्द भी नहीं कहा।

सुनीता गुस्से में कमरे से बाहर आ गई। उसने देखा कि कुणाल बिना नाश्ता किए ही जा चुका था। कुछ देर बाद बड़ा बेटा अजय और सुचेत भी नाश्ता किए बिना ऑफिस चले गए। बाद में सुनीता ने अपने लिए और पति के लिए नाश्ता बनाया। लेकिन, अनामिका के लिए कुछ नहीं बनाया। अनामिका काफी देर तक इंतजार करती रही कि शायद कोई उसे नाश्ता करने के लिए बुलाएगा। लेकिन, जब 12 बजे तक किसी ने नहीं बुलाया तो उसने परेशान होकर सुचेत को फोन किया। ‘सुचेत तुम्हारी फैमिली तो मुझे भूखा मार डालेगी। 12 बज चुके हैं और अभी तक न तो किसी ने मुझे चाय दी है और न ही ब्रेकफास्ट। पता नहीं लंच भी देंगे या नहीं। आई एम रियली फेड अप। मैंने इस घर में नहीं रहना। बहुत हो गया। तुम आज ही कोई नया घर देखो। हम अलग घर में रहेंगे। एंड आई एम रियली सीरियस।’, अनामिका बहुत ही अक्रामक स्वर में बोली।

सुचेत ने घर आने के बाद अनामिका को बहुत समझाया। लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रही। आखिरकार अनामिका की जिद के आगे सुचेत को झुकना पड़ा और उन्होंने अलग तीन कमरे का फ्लैट किराए पर ले लिया। सुचेत को अपना घर छोड़ते हुए दुख तो हो रहा था। लेकिन, वह बेबस था। शुरू में तो कुछ दिन अनामिका और सुचेत परिवार के सदस्यों से मिलने के लिए नियमित रूप से आते रहे। लेकिन, धीरे धीरे उनका आना कम होता गया। फिर कभी कभी अकेले सुचेत ही आते जाते घर आ जाता था। अनामिका ने पहले दिन से ही घर में खाना बनाने और घर के अन्य कामों के लिए मेड रख ली थी।

धीरे धीरे वक्त बीतता गया। सुचेत को परिवार से अलग हुए दो साल बीत गए थे। अनामिका ने भी एक कंपनी में नौकरी करना शुरू कर दिया था। एक दिन सुबह 9 बजे सुचेत रोज की तरह ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था। तभी उसके मोबाइल पर बड़े भाई अजय का फोन आया। उन्होंने बहुत ही घबराई हुई आवाज में कहा कि कुणाल का सीरियस एक्सीडेंट हो गया है और वह फटाफट अस्पताल पहुंच जाए। सुचेत हड़बड़ाहट में बिना अनामिका को कुछ बताए अस्पताल पहुंच गया। लेकिन, उसके पहुंचने के कुछ देर बाद ही कुणाल ने दम तोड़ दिया। सुचेत और अजय ने मां-बाप को किसी तरह संभाला। सुनीता का तो रो रो कर बुरा हाल था वह कई बार बेहोश भी हो गई थी। सबसे छोटा होने के कारण सुनीता का कुणाल से लगाव बहुत ज्यादा था। उसके चले जाने के बाद वह अंदर से टूट गई थीं।

सुचेत ने अनामिका को जब यह खबर देने के लिए फोन किया वह किसी मीटिंग में व्यस्त थी। उसने बिना कुछ सुने ही फोन काट दिया। थोड़ी देर बाद सुचेत ने उसे वाट्स एप पर मैसेज भेजा। लेकिन, मैसेज पढऩे के बाद भी अनामिका ने न तो कोई जबाव दिया और न ही फोन किया। घर में दूर दूर से मेहमान आ चुके थे। लेकिन, अनामिका का कोई पता नहीं था। जब भी सुचेत उसे फोन करता वह फोट काट देती थी। शाम को सात बजे के बाद अनामिका ने सुचेत को फोन किया और कहा कि जरूरी मीटिंग में व्यस्त होने के कारण वह बात नहीं कर सकीं। सुचेत ने उसे तुरंत मां के घर आने को कहा। लेकिन, अनामिका ने साफ मना कर दिया कि वह बहुत थकी हुई है और वह घर जा रही है। अनामिका की यह बात सुनकर वह आवाक रह गया। लेकिन, चाह कर भी अनामिका को कुछ न कह सका। बड़ी बहू सुमन ने अकेले ही सब कुछ संभाला। अगले दिन कुणाल के अंतिम संस्कार से कुछ देर पहले अनामिका घर आई और सुचेत के बहुत समझाने के बाद मां के पास गई और उन्हें गले लगाकर रोने का नाटक करने लगी। थोड़ी देर में वह सुचेत को किनारे पर ले गई और साफ कह दिया कि उससे यह सब नहीं होगा। वह ऑफिस जा रही है क्योंकि उसकी जरूरी मीटिंग है।

इसके बाद अनामिका रोज 10-15 मिनट के लिए शक्ल दिखाने घर आ जाती थी। कुणाल की तेरहवीं की रस्म के लिए अनामिका ने सफेद रंग की नई साड़ी खरीदी। सुचेत भी बहुत हैरान था कि आखिरकार अनामिका को तेरहवीं के लिए नई साड़ी खरीदने की जरूरत क्यों पड़ी? तेहरवीं के दौरान शोकसभा में पहुंच कर अनामिका ने एक बच्चे को अपना फोन दिया और उससे उसकी फोटो खींचने को कहा। थोड़ी ही देर में उसने सफेद साड़ी पहने हुए अपनी फोटो को फेसबुक पर अपलोड कर दिया और सुचेत और सुमन को टैग करते हुए स्टेटस लिखा ‘फीलिंग सैड…. विद सुचेत एंड सुमन। मिसिंग यू माय डियर कुणाल। आई लॉस्ट माई ब्रदर इन लॉ इन ए रोड एक्सीडेंट। आरआईपी।’ इसके बाद वह शोकसभा में बैठे हुए लगातार अपने मोबाइल फोन पर चिपकी रही। हर थोड़ी देर बाद अपनी इस पोस्ट पर आने वाले कमेंट को देखती रही। सुचेत ने जब यह सब देखा तो उसे बहुत दुख हुआ। लेकिन, इसके बाद भी उसने अनामिका से कुछ नहीं कहा।

कुणाल के जाने के बाद सुनीता अकसर बीमार रहने लगी। उसने किचन का काम करना भी छोड़ दिया था। सुमन ने अपनी सास की सेवा भी की और नौकरी करते हुए पूरा घर संभाला। लेकिन, अनामिका एक भी दिन न तो सुनीता का हाल चाल लेने आई और न ही उसने घर में आकर किसी तरह का कोई काम किया। वक्त बीतता गया और शादी के लगभग चार साल बाद अनामिका ने बेटी को जन्म दिया। इस दौरान अनामिका ने अपनी मां को अपने पास बुला लिया था। लेकिन, कुछ दिनों के बाद उसकी मां भी यह कहते हुए अपने घर लौट गईं कि वह अनामिका के पापा को अकेला ज्यादा दिन नहीं छोड़ सकती हैं। उनके बिना उन्हें दिक्कत हो रही है।

अनामिका के लिए अकेले बच्चे का पालन पोषण करना आसान नहीं था। उसे चिंता इस बात की भी हो रही थी कि दो महीने बाद जब छुट्टी खत्म होने पर वह नौकरी ज्वाइन करेगी तब उसकी बेटी कैसे संभलेगी? अनामिका की मां ने भी स्पष्ट कर दिया था कि वह अपना घर छोड़कर नहीं आएंगी। बच्चे के साथ तो अनामिका को दिक्कत हो ही रही थी, घर के कामकाज के लिए रखी मेड भी इसी समय छुट्टी पर चली गई थी। अनामिका ने सुचेत से कहा कि वह अपनी मां को कुछ दिनों के लिए यहां बुला ले। लेकिन, सुचेत ने यह कहते हुए साफ मना कर दिया कि जब मां को उसकी जरूरत थी तो वह उन्हें सहारा तक देने नहीं गई। ऐसे में वह किस मुंह से मां को यहां आने के लिए कहे? अनामिका ने सुचेत को कई दलीलें भी दीं। लेकिन, सुचेत तैयार नहीं हुआ। दोनों के बीच इस बात को लेकर रोज झगड़ा भी होने लगा।

बच्ची के साथ अनामिका घर में ही बंध गई थी। वह न तो शॉपिंग करने बाजार जा पाती थी और न ही अपनी फ्रेंड्स के साथ आउटिंग पर। सुचेत ऑफिस के लिए सुबह घर से निकलता था और देर शाम को लौटता था। अकेले ही वह किसी तरह से घर का सारा काम करती थी और बच्ची को भी संभालती थी। समय न मिल पाने के कारण उसका फेसबुक और वाट्स एप भी छूट गया था। फेसबुक पर वह इतना एक्टिव थी कि हर आधे घंटे में कुछ न कुछ पोस्ट करती थी। उसके फेसबुक फ्रेंड्स भी हैरान थे कि अनामिका को क्या हो गया है? अनामिका को लगा कि उसे बच्ची की देखभाल के लिए फुल टाइम मेड रख लेनी चाहिए। लेकिन, सुचेत इसके लिए भी तैयार नहीं हुआ। सुचेत ने अनामिका पर नौकरी से इस्तीफा देने के लिए दबाव बनाया। लेकिन, अनामिका इसके लिए भी तैयार नहीं थी।

अनामिका बहुत परेशान रहने लगी। उसे बार बार अपने सास ससुर के घर से अलग होने की गलती का पछतावा होता था। उसे लगता था कि अगर वह उनके साथ रहती तो न तो उसकी आजादी छिनती और न ही उसे बच्ची को अकेले पालने में दिक्कत आती। घर में सबके साथ रहकर बच्ची की भी अच्छी तरह से देखभाल हो जाती। वह रोज यही सोचती थी कि वहां तो सब मिलजुल कर काम करते हैं। उसके जिम्मे तो सिर्फ नाश्ता बनाना ही था। और यहां अकेले ही उसे मेड न आने पर सारा काम करना पड़ता है। उसे लग गया कि उसका अलग होने का फैसला बिलकुल गलत था।

एक दिन उसने सुचेत से कहा, ‘मैं सोच रही हूं कि क्यों न हम लोग मम्मी जी-पापा जी के घर वापस चले जाएं। मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है। एक बार तुम प्लीज मम्मी जी से बात करो न। वह जैसा कहेंगी मैं वैसा ही करूंगी। सबके लिए नाश्ता बनाऊंगी।’ अनामिका की यह बात सुनकर सुचेत भावुक हो गया और वह रोने लगा। अपने घर वापस जाने की बात सुनकर उसे खुशी तो थी, लेकिन उसके मन में डर भी था कि पता नहीं मां उन्हें वापस आने देंगी या नहीं? सुचेत बहुत हिम्मत करके अपनी मां से बात करने घर गया तो उसके मन का डर सही निकला। सुनीता ने साफ मना कर दिया और कहा, ‘बेटा अब तुम लोगों को हमारी जरूरत है। इसलिए तुम यहां आना चाहते हो। जब हम लोगों को तुम दोनों की जरूरत थी तो तुम हमें छोड़कर चले गए थे।’  सुचेत को भी अपनी गल्ती का अहसास था। इसलिए उसने भी मां को ज्यादा समझाया नहीं और वह मायूस होकर घर आ गया। घर आकर उसने अनामिका को जब मां की बात बताई तो वह रोने लगी। वह पछतावे की आग में जल रही थी जिससे उसे ठीक से नींद भी नहीं आती थी।

सुनीता ने सुचेत को मना तो कर दिया लेकिन अंदर से वह बहुत दुखी थीं। उनके मन में रात भर उधेड़बुन चलती रही। बड़े बेटे का कोई बच्चा नहीं था। ऐसे में उन्हें लगता था कि अगर उनती पोती घर में आती है तो बच्ची की किलकारियों से घर गूंज उठेगा। एक तरफ जहां वह अनामिका को उसकी गलती का अहसास कराना चाहती थी, वहीं उसे अपने बेटे व पोती का भी मोह था। आखिरकार उसने सुबह उठते ही सुचेत को फोन किया और कहा, ‘बेटा यह तेरा अपना घर है। इस घर में आने के लिए भला तुझे मां से क्या इजाजत लेनी पड़ेगी? जब तेरा मन करता है यहां आ जा। लेकिन, हां अनामिका से कह देना कि चाहे जो हो नाश्ता तो उसे ही बनाना पड़ेगा।’

मां की बात सुनकर सुचेत खुशी से उछल पड़ा। अनामिका भी बहुत खुश थी। तीन दिन बाद वे अपना सामान लेकर वापस आ गए। अनामिका और सुचेत ने सभी से माफी मांगी। मां ने अनामिका को गले लगाते हुए कहा, ‘बहू मैं तेरी सास नहीं, मां हूं। तुमने घर छोडऩे का फैसला लेने में बहुत जल्दी कर दी थी। अरे कुछ दिन साथ रहती तो पता चलता कि मैं कैसी हूं?’। सुनीता की बात सुनकर अनामिका फूट फूट कर रोने लगी और बार बार उनके पैर छूकर माफी मांगती रही। इसके बाद अनामिका का स्वभाव बदल गया। वह रोज सुबह जल्दी उठती थी और सभी के लिए नाश्ता भी बनाती। फेसबुक और वाट्स एप का इस्तेमाल कभी कभी करती थी। उसका स्वभाव बदला तो घर में उसके प्रति परिवार के अन्य सदस्यों का रुख भी बदल गया। अनामिका खुश रहने लगी और उसकी बेटी कब तीन साल की हो गई उसे पता ही नहीं चला। उसे परिवार में सबसे साथ मिलजुल कर रहने का महत्व समझ आ चुका था।

1 COMMENT

  1. वाह शुक्रिया अदा। एक बैठक में पढी जाने को विवश करती है। कलेवर व फ्लेवर में सानी नहीं ? रखती है। मयंक जी प्रयास कामयाब रहा है। हम इसको जीवन की मूलधारणा को व्यक्त करने की श्रेणी में रखेंगे जो अंतर्मन को झकझोरने की क्षमता रखती है,, , आरके शर्मा विक्रमा अलफा न्यूज इंडिया वैब न्यूज चैनल
    9872886540 wts aps http://www.alphanewsindia.com [email protected]

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