एक के डेढ़ करोड़ फॉलोअर और दूसरा गुमनाम?

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आशुतोष नाडकर

एक के फेसबुक पर डेढ़ करोड़ फॉलोअर्स हैं, तो दूसरा शायद ये भी नहीं जानता कि फेसबुक क्या है? एक को क़ुरान ही नहीं वेद-पुराण, बाईबल जैसी सभी पाक किताबें पेज नंबर और पैराग्राफ के साथ कंठस्थ है, तो दूसरे को शायद इतना भाषा ज्ञान भी नहीं कि इन किताबों को पढ़ सके। एक टेलीविजन और इंटरनेट के माध्यम से पूरे विश्व में शांति का संदेश देने का दावा करता है, तो दूसरे को दुनिया तो क्या उसके शहर में भी लोग ठीक से नहीं जानते। पहले की तकरीरें सुनकर कुछ सिरफिरे जेहाद के नाम पर रमज़ान के पाक महीने में लोगों के गले रेत देते हैं। वहीं दूसरा एक ऐसा काम कर जाता है जो दुनिया में हर धर्म को मानने वाले यहाँ तक कि नास्तिकों के लिये भी एक मिसाल है।

शायद आप समझ गये हों कि मैं किन दो लोगों के बारे में बात कर रहा हूँ। जी हाँ, पहला शक्स वही है जिसे दुनिया डॉक्टर जाकिर नाइक के नाम से जानती है, जिनके टेलीविजन चैनल का नाम ही ‘पीस’ यानि की शांति का टीवी है। दूसरा नाम है याकूब बी का। अगर आप इन दिनों अखबार नहीं पढ़ सके हैं, तो बेशक कह सकते हैं कि ये याकूब बी कौन है…? कल तक मैं भी इस नाम से पूरी तरह से नावाक़िफ़ था, लेकिन अख़बार की सुर्खियों से याकूब बी के बारे में पता चला तो विश्वास हो गया कि धर्म और इंसानियत की इससे बेहतर मिसाल शायद ही कहीं देखने मिले। एक बुजुर्ग, जिसे उसके बड़े बेटे ने घर से निकाल दिया और उसकी मौत के बाद दूसरे बेटे ने ये कहकर मुखाग्नि देने से इंकार कर दिया कि वह किसी अन्य धर्म को अपना चुका है, लिहाजा दाह कर्म करने की उसे इजाजत नहीं है। ऐसे में याकूब बी, जिन्होंने पहले भी इस बेसहारा बुजुर्ग को सहारा दिया था, वे ही इस बार भी आगे आईं और बुजुर्ग की चिता को मुखाग्नि दी। मेरा विश्वास है कि याकूब बी ने जो किया है वह हम सबके लिये एक ऐसा संदेश है जो डॉ. जाकिर तो क्या किसी भी धर्म का कोई भी उपदेशक नहीं दे सका।

पीस टीवी के माध्यम से जाकिर नाइक के उपदेशों को मैं भी लंबे समय से सुनता रहा हूँ। डॉ. नाइक की बातें कितनी जायज़ या नाजायज़ है इसकी चर्चा मैं यहाँ करना मुनासिब़ नहीं समझता, क्योंकि एनआईए इसकी जाँच कर ही रही है। इस बात से भी इत्तेफ़ाक रखा जा सकता है कि शांति का उपदेश देने वाले किसी शख्‍स की बात सुनकर भी यदि कुछ लोग आतंक फैलाने पर आमादा हों तो भला इसमें शांति उपदेशक का क्या कूसूर है?

लेकिन ये सवाल जरूर उठता है कि शांति का संदेश देने वाले नाइक के मुरीद इस कदर बर्बर कैसे हो सकते हैं और याकूब बी जैसी साधारण समझी जानी वाले महिला इतना मजबूत संदेश कैसे दे सकती है? शायद इसलिये क्योंकि याकूब बी जैसे लोग बोलने के बजाय करने में यकीन रखते हैं। ताज्जुब है कि कुऱान, हदीस, वेद, पुराण, गीता, बाईबिल जैसी पवित्र पुस्तकों के ज्ञाता समझे जाने वाले भी इन ग्रंथों में छुपे प्रेम और भाईचारे के पैगाम को अपने फॉलोअर्स तक नहीं पहुँचा पाते। शायद इसी स्थिति को लेकर कबीर सदियों पहले ही लिख गये थे –

पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया ने कोय।

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।

जरा सोचिये, क्या कोई धर्म किसी बेटे को अपने पिता का अंतिम संस्कार करने से रोक सकता है..? मजहबी किताबें इस बारे में क्या कहती हैं ये तो मुझे मालूम नहीं, लेकिन मुझे विश्वास है किसी भी मज़हब में अपने पिता का अंतिम संस्कार करने पर रोक नहीं हो सकती। फिर क्यों मरने वाले बुजुर्ग का पुत्र, धर्म का मर्म ही समझ नहीं पाया?

सवाल केवल डॉ. नाइक या याकूब बी का नहीं है। समाज में ऐसे सैकड़ों लोग हैं। कुछ याकूब बी जैसे खामोश रहकर असाधारण काम कर रहे हैं तो कुछ ज्ञान से ओतप्रोत उपदेशक (खासकर मजहबी ज्ञान) अपने ढंग से धर्म परोस रहे हैं। इनमें दाढ़ी-टोपी लगाने वालों से लेकर गेरुआ धारण करने वाले और नृत्य-संगीत के माध्यम से लोगों को प्रेम का संदेश देने वाले भी शामिल हैं। एक ओर फिल्मी गानों पर नाच-गाकर ईश्वर को पाने का दावा करने वाली राधे माँ भी मौजूद हैं, तो दूसरी ओर समोसे-चटनी खिलाकर समस्याओं का समाधान करने वाले निर्मल बाबा भी मिल जाते हैं। लगभग हर शहर में भागवत कथाओं में भारी भीड़ उमड़ती देखी जा सकती है। धर्म और प्रेम का संदेश देने का ये सबका अपना-अपना तरीका है। इन तरीकों पर ऐतराज करूं इतनी मेरी औकात नहीं है, लेकिन अपने गुरु से प्रेम और शांति का संदेश पाने वाले ये भक्त विवाद की स्थिति में किस तरह से गदर काटते हैं ये बात भी किसी से छुपी नहीं है।

ऐसे में विनम्र प्रश्न ये है कि हमें उपदेशकों की ज्यादा जरूरत है या याकूब बी जैसे इंसानों की..? पूछते हुए डर भी लग रहा है कि किसी बंधु की भावनाऐं आहत न हो जाएं, क्योंकि इन दिनों हमारे देश में और कुछ हो न हो भावनाएं बेहद जल्दी आहत हो जाती हैं। अगर किसी की भावनाएं आहत हुई हों तो दोनों हाथ जोड़कर माफी मांगता हूँ।

4 COMMENTS

  1. sir ….शानदार व्यूज , और धर्मान्ध लोगो के लिए लेशन ।। लेकिन इस पर कोई P K फ़िल्म पार्ट 2 बना सकने की हिम्मत कर सके …और एक साथ सभी धर्मो में छिपी खामिया सामने आये । क्या भारतीय संविधान इसकी इजाज़त देता है ।। जहा सबके अलग अलग पर्सनल लॉ है ।। यह भी एक यक्ष प्रश्न है ।।

  2. आशुतोष जी,
    आपने याक़ूब बी और ज़ाकिर चाचा पीस टीवी वाले की अच्ची तुलना की है।

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