अस्‍पताल में कई बार समझ ही नहीं आता कि हंसें या रोएं

एक पखवाड़ा मौत के साथ-8

ममता की रीढ़ की हड्डी के पानी का पहला सैम्‍पल खराब हो जाने की खबर मिलने के बाद भोपाल से दूसरा सैम्‍पल भेजा गया। हमारे पास उसकी रिपोर्ट का इंतजार करने के अलावा कोई चारा ही नहीं था। उधर आइसोलेशन रूम में ममता पर क्‍या गुजर रही थी हमें कुछ पता नहीं था, क्‍योंकि हमारी भाषा में वह बेहोश थी और डॉक्‍टरों की भाषा में उसकी बॉडी को ‘पेरेलाइज्‍ड’ करके रखा गया था।

हम लोग नीचे बैठे पूरे दिन बस कयास लगाते रहते। कभी उपचार पद्धति पर बात होती तो कभी हम लोग अस्‍पताल की स्थितियों पर खीजते। इसके अलावा हम कर भी क्‍या सकते थे। NIMHNS की रिपोर्ट में क्‍या हो सकता है, इसके बारे में हमने एक परिचित डॉक्‍टर से पूछा, उनका कहना था कि यदि सीएसएफ की रिपोर्ट में रेबीज की एंटीबॉडी मिलीं तो समझिएगा कि पेशेंट को रेबीज कन्‍फर्म है।

डॉक्‍टर की इस राय को सुनते ही मुझे हमीदिया अस्‍पताल फिर याद आ गया। जिस दिन हम ममता को बंसल अस्‍पताल से हमीदिया अस्‍पताल लेकर गए थे, और जब वहां उसे भरती कराने की मशक्‍कत कर रहे थे, उसी दौरान वहां के डॉक्‍टरों के बीच होने वाली बातचीत भी दहला देने वाली थी। उसे सुनने के बाद यकीन नहीं हुआ था कि क्‍या कोई डॉक्‍टर ऐसा भी कह सकता है?

हुआ यूं था कि सीएमओ ममता को भरती करने की संभावनाए टटोल रहे थे और उनके सामने बैठा जूनियर डॉक्‍टर रेबीज के बारे में हमें लगातार प्रवचन दे रहा था। उसने बात बात में कहा कि यह बीमारी तो ऐसी है जिसका दुनिया में कोई टेस्‍ट ही नहीं है। हम घबरा गए, इसी बीच सीएमओ ने उससे पूछा- ‘’तो फिर पता कैसे चलता है कि रेबीज कन्‍फर्म है?’’

उस डॉक्‍टर ने भावशून्‍य चेहरे के साथ जवाब दिया- ‘’इसका पता तो ऑटोप्‍सी से ही चलता है।‘’ आप सोच सकते हैं यह जवाब सुनकर हम पर क्‍या गुजरी होगी। जिन लोगों को ऑटोप्‍सी का मतलब नहीं मालूम उनके लिए बताना जरूरी है कि ऑटोप्‍सी का मतलब है शव परीक्षण,आम बोलचाल की भाषा में पोस्‍टमार्टम। यानी वह डॉक्‍टर उस समय तक जीते जागते हमारे परिजन के बारे में कह रहा था कि उसकी बीमारी का पता तो उसकी मौत के बाद ही चल सकेगा।

तो हम लोग अपने पेशेंट की उस रिपोर्ट का इंतजार कर रहे थे, जिसमें उसकी उस बीमारी का जिक्र होना था, जो शहर के सबसे बड़े सरकारी अस्‍पताल के डॉक्‍टर के मुताबिक तभी पता चलती है जब मरीज की मौत हो चुकी हो। वह मौत जिसके तय होने का ऐलान पहले ही किया जा चुका है। कहने का मतलब यह कि सबकुछ करने और कदम कदम पर पैसा पानी की तरह बहाने के बावजूद हमें चारों तरफ से निराशा ही हाथ लग रही थी, दिलासा देने वाला कोई नहीं था।

इस पूरे एपीसोड में बस एक शख्‍स ऐसा था जो लगातार हमें ठीक से सारी बातें समझा रहा था। हालांकि पेशेंट के बच सकने की संभावना तो उन्‍होंने भी शुरू से ही नकार दी थी। उस शख्‍स का नाम है डॉ. अनिल गुप्‍ता। वही डॉ. गुप्‍ता जिन्‍होंने अपने अक्षय अस्‍पताल में ममता को देखने के बाद सबसे पहले यह सवाल पूछा था कि क्‍या इन्‍हें कभी किसी जानवर या कीड़े ने काटा है? उन्‍होंने ही सबसे पहले रेबीज जैसी किसी बीमारी की आशंका जताई थी।

डॉ. गुप्‍ता रोज सुबह शाम मुझे फोन करके पूछते रहे कि अब मरीज की हालत कैसी है? उन्‍होंने मुझे और ममता के देवर को घर बुलाकर मेडिकल प्रोफेशन की गोल्‍डन बुक कही जाने वाली एक किताब में से पढ़कर रेबीज के बारे में सारी ताजा जानकारियां दीं और बताया कि दुनिया में इक्‍का दुक्‍का केसेस ही ऐसे रिपोर्ट हुए हैं जिनकी रेबीज होने के बाद जान बच सकी है। वरना तो दुनिया में इसका न तो कोई कन्‍फर्मेटरी टेस्‍ट है और न कोई इलाज।

हमारे मामले को देखते हुए डॉ. गुप्‍ता ने सलाह दी कि परिवार के जो जो लोग पिछले दो तीन माह में ममता के ‘क्‍लोज कॉन्‍टेक्‍ट‘ में रहे हैं उन सभी को एहतियातन रेबीज के इंजेक्‍शन लगवा लेने चाहिए। हालांकि ऐसा कहीं रिपोर्ट नहीं हुआ है कि एक दूसरे को छूने से यह बीमारी फैलती है, लेकिन यदि कोई मरीज के लार या खून के संपर्क में आता है तो माना जाना चाहिए कि उसमें यह बीमारी होने की पूरी आशंका है।

कई अस्‍पतालों के डॉक्‍टर चूंकि परिवार के लोगों को रेबीज को लेकर पर्याप्‍त डरा चुके थे और ममता की हालत भी हम लोग देख ही रहे थे,लिहाजा आनन फानन में उन सारे लोगों को रेबीज के इंजेक्‍शन लगवाने का इंतजाम किया गया जो पिछले दो तीन माह से ममता के संपर्क में थे। यह बात अलग है कि हमें डॉक्‍टरों के बीच से ही परस्‍पर विरोधी मत सुनने को मिल रहे थे।

जब से बंसल अस्‍पताल के डॉक्‍टरों ने हमें यह बताया था कि खुद मरीज ने मंजूर किया है कि दो ढाई महीने पहले उसे एक कुत्‍ते ने खरोंचा था, हम यह तलाशने में लग गए थे कि घटना कब और कैसे हुई होगी। ऐसा इसलिए भी था क्‍योंकि ममता ने कभी अपने पति या परिवार के अन्‍य जिम्‍मेदार सदस्‍यों से इसका जिक्र नहीं किया था।

किसी ने बताया कि दो ढाई महीने पहले ममता ऑफिस जा रही थी तो रास्‍ते में एक कुत्‍ते ने उसकी उंगली पर पंजे से खरोंच लिया था। अब कुछ डॉक्‍टरों का कहना था कि इतनी सी खरोंच से कुछ नहीं होता। जबकि कुछ कह रहे थे कि आपको क्‍या पता कि जिस पंजे से कुत्‍ते ने खरोंचा उसने उस पंजे को घटना से पहले चाटा नहीं होगा। रेबीज के विषाणु कुत्‍ते की लार में होते हैं और कुत्‍ते अकसर अपने अंगों को चाटते रहते हैं, इसलिए इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि उस कुत्‍ते की लार भी पंजे पर लगी हो।

जितने मुंह उतनी बातों के जरिए होने वाली इन सारी कयासबाजियों पर उस समय विराम लग गया जब NIMHNS बेंगलुरू से ममता की रीढ़ की हड्डी के पानी यानी सीएसएफ की जांच रिपोर्ट आई। इसमें जांच का निष्‍कर्ष मेडिकल भाषा में लिखा गया था और उसका मतलब डॉक्‍टरों ने हमें बताया कि सीएसएफ में रेबीज होने के संकेत मिले हैं। यानी ममता को रेबीज है। यह सुनते ही सारे चेहरे जैसे मुर्दा हो गए।

कल पढ़ें- लेकिन इस रिपोर्ट में NIMHNS ने एक पेंच भी छोड़ दिया था, क्‍या था वह पेंच?

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