चौंकाने वाली खबर है कि ग्वालियर में 28 और 29 सितंबर को हुई मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी की कार्यसमिति अपनी बैठक के दौरान भारतीय सेना की उपलब्धि को भुला बैठी। दरअसल 29 सितंबर को इस बैठक का समापन था और उस समय तक पाक अधिकृत कश्मीर में भारतीय सेना के सफल ‘सर्जिकल अटैक’की खबर पूरी दुनिया जान चुकी थी। लेकिन कार्यसमिति में किसी को इस बात की सुध नहीं आई कि जब इतने सारे लोग एक साथ बैठे हैं, तो भारतीय सेना की इस अभूतपूर्व उपलब्धि पर उसे बधाई का एक प्रस्ताव ही पारित कर दें। और चलो सेना की बात न भी करें तो यह तो भाजपा के ‘प्रतीक पुरुष’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कीमहान उपलब्धि थी। इस साहसिक कदम के लिए उनके ‘कुशल नेतृत्व’ को ही सामूहिक बधाई दे दी जाती पर ऐसा भी नहीं हुआ।
मजे की बात यह रही कि बैठक में शामिल कई नेताओं ने सोशल मीडिया पर अपने नाम से अलग अलग संदेश जरूर भेजे। लेकिन कार्यसमिति ने सामूहिक रूप से ऐसा कोई संदेश नहीं दिया।
पिछले लंबे समय से देखने में आ रहा है कि प्रदेश भाजपा की इस तरह की बैठकों में दो ही काम प्रमुखता से होते हैं। पहला काम, जो एक तरह से अघोषित एजेंडा की तरह सेट हो गया है वो ये कि इसमें आपस में ही ऐसी बयानबाजी होती है कि लगता है यह बैठक ‘संवाद’ के लिए नहीं ‘संग्राम’ के लिए बुलाई गई है। दूसरा महत्वपूर्ण काम इसमें प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व की प्रशंसा में कसीदे पढ़ने का होता है।
कई बार लगता है कि आखिर ऐसी बैठकों का औचित्य क्या है। इस बार बैठक से पहले प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमारसिंह चौहान ने कहा था कि ग्वालियर के मंच पर पार्टी कार्यकर्ता खुलकर अपने मन की बात कह सकेंगे। लेकिन ऐसा तो कुछ वहां दिखा नहीं। ले दे कर बालाघाट में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक की पुलिस द्वारा की गई पिटाई का मामला उठा और उस पर सरकार की खिंचाई की गई। इस खिंचाई के जवाब में सरकार की तरफ से जो जवाब आया वह भी चकरघिन्नी कर देने वाला है।
बैठक की जो खबरें बाहर आई हैं उनके अनुसार सरकार की तरफ से कहा गया कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए स्थानीय पुलिस का संघ पदाधिकारियों व प्रचारकों से परिचय कराया जाएगा। आखिर इसका क्या मतलब है? संघ तो समाज सेवा के काम करता है, उसका पुलिस से परिचय क्यों कराया जाना चाहिए?यह भी बड़ी अजीब बात है कि हमारी माननीय पुलिस चोरों, जेबकटों और उठाईगीरों तक के बारे में जानती है लेकिन वह ‘समाज सेवा’ का काम करने वालों को पहचानती तक नहीं।
और यह भी पता नहीं कि पुलिस से पहचान कराने का तरीका क्या होगा? क्या संघ के प्रचारकों की थानेदारों के सामने परेड कराई जाएगी? क्या थानों में उनके फोटो और परिचय दर्ज कराए जाएंगे? पुलिस से ऐसी जान पहचान संघ के कार्यों में किस तरह से सहयोगी होगी? क्या इससे संघ की कार्यप्रणाली और उसका मूल स्वरूप, जो कहता है कि स्वयंसेवकों को सत्ता प्रतिष्ठान के प्रति आकर्षित नहीं होना है, प्रभावित नहीं होगा? ये कौनसा तरीका है समस्या को हल करने का?
दूसरी बात कार्यसमिति की बैठकों में प्रदेश की समस्याओं को लेकर होने वाली बहस या चर्चा के बारे में है। वहां लोगों की मूल समस्याओं को लेकर कोई गंभीर बहस हुई हो ऐसा कम ही देखने में आया है। इस बार मुझे उम्मीद थी कि चूंकि यह बैठक प्रदेश के उत्तरी अंचल के प्रमुख केंद्र ग्वालियर में हो रही है इसलिए वहां चंबल इलाके के श्योपुर जिले में पिछले दिनों कुपोषण से हुई कई बच्चों की मौत जैसे मसले पर गंभीर चर्चा जरूर होगी। विपक्षी दल कांग्रेस ने इस मुद्दे को जोर शोर से उठाया है। शिशु मृत्यु दर और कुपोषण के मामले में मध्यप्रदेश पूरे देश में कुख्यात बना हुआ है। इसलिए भी लाजमी था कि सत्तारूढ़ दल की कार्यसमिति इस पर गंभीर विमर्श करती और अलग से कोई कार्ययोजना लेकर आती। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। उलटे जो राजनीतिक प्रस्ताव इस बैठक में पारित किया उसमें ‘स्वस्थ होता मध्यप्रदेश’ शीर्षक से प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं का गुणगान किया गया है।
कुपोषण के इतने बड़े मुद्दे पर इस प्रस्ताव में सिर्फ डेढ़ वाक्य लिखा गया है जो कहता है- ‘’मध्यप्रदेश में कुपोषण को दूर करने के लिए एक अभिनव अभियान शुरू किया गया है, प्रदेश में 25 जुलाई से ‘‘सुर्जने से सुपोषण अभियान’’ की शुरूआत की गई है।‘’
और इस शेखचिल्ली टाइप के ‘’सुर्जने से पोषण अभियान’’ के बारे में भी जान लीजिए। यह विभाग की मंत्री का अनोखा आइडिया है जिसमें उनका कहना है कि सुरजने की फली बच्चों के पोषण का बहुत बड़ा जरिया बन सकती है लिहाजा उसके पौधे लगाए जाएं। सरकार इसके लिए सुरजने के पौधे भी बांटेगी। यानी जब तक तक वो पौधे लगेंगे, बड़े होंगे, उनमें फली आएगी और वह फली बच्चों को बंटेगी, तब तक प्रदेश के बच्चे कुपोषण से मरने के लिए तैयार रहें।
इसीलिए मेरा कहना है कि जो कार्यसमिति इस तरह के ऊटपटांग प्रस्ताव पारित कर अपना दायित्व पूरा कर लेती हो, उसका होना क्या और न होना क्या… ऐसे आयोजनों पर लाखों रुपए खर्च करने के बजाय पार्टी इन बैठकों को बंद क्यों नहीं कर देती…?