देश में किसानों की कर्ज माफी का ‘झुनझुना’ कई सालों से बजाया जा रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि चुनाव के दिनों में यह ‘डमरू’ या ‘नगाड़े’ की तरह बजने लगता है और चुनाव बीत जाने के बाद यह फिर ‘झुनझुने’ में तब्दील हो जाता है। लेकिन इसका बजना कभी रुका नहीं। पता नहीं किसान इस झुनझने को लोरी समझ लेते हैं या फिर ‘पाइड पाइपर ऑफ हेमलिन’ की मशहूर कथा की तर्ज पर, झुनझुना बजाने वाले के पीछे चल देते हैं। बात कोई भी हो, इस झुनझुने की आवाज में कुछ तो जादू जरूर है।
लेकिन ऐसा पहली बार देखने में आ रहा है कि अब ‘झुनझुना’ सुनने वालों ने उसकी असलियत को या तो जान लिया है या फिर वे उस ‘झुनझुने’ से कोई और आवाज सुनना चाहते हैं। इसीलिए सरकारों को अपने ‘झुनझुने’ की आवाज में बदलाव करना पड़ रहा है। उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र में यह आवाज बदल चुकी है, पंजाब में बदलने के संकेत हैं, लेकिन हमारे मध्यप्रदेश में किसानों को अभी भी यह समझाने की कोशिश हो रही है कि जो आवाज वे सुन रहे हैं, वही दुनिया का सर्वश्रेष्ठ अथवा अलौकिक संगीत है, इससे बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता। यह ‘अनहद नाद’ ही उन्हें आय दुगुनी करने वाले ‘मोक्ष’ के रास्ते पर ले जाएगा।
वैसे भारत के राजनीतिक व आर्थिक ढांचे में कर्ज देना सरकारों का ‘फर्ज’ और कर्ज लेना किसानों का ‘मर्ज’ है। सरकारें बहेलिये की तरह कर्ज के दाने डालकर किसानों को अपने जाल में फंसाती हैं और फिर ‘कर्ज माफी के चाकू’ की झलक दिखाकर, उस जाल को काटने का झांसा देते हुए, हर बार किसानों से वोट झटक लेती है। कर्ज माफी सत्तू की वो हंडिया है जो मृग मरीचिका की तरह किसान के सामने हमेशा लटकी रहती है और किसान इस ‘अस्तित्वहीन’ हंडिया को देखकर बस भविष्य के सपने ही बुनता रह जाता है। ऐसे सपने जो कभी सच नहीं होते।
कर्ज माफी का यह ‘नगाड़ा’ बजाए जाने का सबसे ताजा प्रसंग उत्तरप्रदेश चुनाव में उपस्थित हुआ था, जब स्वयं प्रधानमंत्री ने चुनावी सभाओं में वादा किया था कि उत्तरप्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद पहली ही कैबिनेट में किसानों की कर्ज माफी का प्रस्ताव पारित कर दिया जाएगा। नरेंद्र मोदी ने खुद गारंटी ली थी कि वे यह काम करवा कर देंगे। और वादे के मुताबिक उत्तरप्रदेश की योगी सरकार ने कर्ज माफी का ऐलान कर दिया।
जब उत्तरप्रदेश के नतीजे आ रहे थे और भाजपा की सरकर बनती दिख रही थी, तभी से यह बहस चलने लगी थी कि नई सरकार की सबसे बड़ी चुनौती कर्ज माफी ही है। और यह चुनौती केवल उत्तरप्रदेश के लिए नहीं बल्कि पहले सारे भाजपा शासित राज्यों के लिए होगी और उसके बाद भारत सरकार के लिए। वैसा ही हो रहा है।
उत्तरप्रदेश के बाद अब मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्यों में मांग उठने लगी है कि भाजपा यदि कर्ज माफी को किसानों के हित का कदम या समय की मांग के लिहाज से देखती है तो फिर यह फैसला केवल उत्तरप्रदेश तक ही सीमित क्यों रहे, उसे बाकी राज्यों में भी लागू किया जाए।
वैसे उत्तरप्रदेश की घोषणा के बाद तक भी कर्ज माफी को लेकर अन्य राज्यों में ज्यादा हलचल नहीं हुई थी। बदनामी का यह ठीकरा तो मध्यप्रदेश के माथे आया, जहां किसान आंदोलन इतना हिंसक और उग्र हो गया कि बाकी राज्यों के भी हाथपैर फूल गए। यही वजह है कि महाराष्ट्र ने छोटे किसानों को दस हजार रुपए की सहायता देने जैसा फार्मूला निकाला तो उत्तरप्रदेश की सरकार कर्ज लेकर और खर्चे में कटौती कर इसके लिए इंतजाम करने की जुगत भिड़ा रही है।
मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन लाख अपनी पीपनी अलग बजाते रहें कि कर्ज माफी का सवाल ही नहीं उठता, लेकिन यदि पड़ोसी राज्यों ने इसे किसी भी रूप में संभव कर दिखाया तो मध्यप्रदेश के लिए इस भंवर से निकलना आसान नहीं होगा। सरकार यह कहकर बच नहीं सकेगी कि हम तो ‘शून्य प्रतिशत’ की ब्याज दर पर कर्ज दे रहे हैं और मूलधन में भी दस प्रतिशत की रियायत दी जा रही है। यानी एक लाख ले जाओ और 90 हजार लौटाओ।
यदि पड़ोस में कर्ज माफ हो गया तो ये सारे झुनझुने पत्थर के हो जाएंगे। अगले साल चुनाव सिर पर है, ऐसे में आप कोई राजनीतिक जोखिम मोल लेने की स्थिति में भी नहीं रहेंगे। यानी आज नहीं तो कल मध्यप्रदेश सरकार को भी उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र की तर्ज पर कर्ज माफी की दिशा में कुछ न कुछ तो करना ही होगा।
इस मसले में सबसे ज्यादा हैरानी वाली बात केंद्र सरकार का रवैया है। जब से कर्ज माफी का हल्ला मचा है,केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली का यह ‘पल्ला झाड़ू’ बयान कई बार आ चुका है कि कर्ज माफी को लेकर राज्य सरकारें केंद्र के भरोसे न रहें। वे कर्ज माफ करना चाहें तो करें लेकिन इसका बोझ उन्हें खुद उठाना होगा।
मेरी हैसियत तो नहीं है, लेकिन फिर भी यदि कोई अनुमति दे तो एक सवाल मैं जरूर पूछना चाहूंगा कि वह ‘कर्ज माफी’ जिसे खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की वाजिब जरूरत मानते हुए, उत्तरप्रदेश में सबसे बड़ा मुद्दा बनाया था। उस मुद्दे से एक पार्टी के तौर पर भारतीय जनता पार्टी सहमत है या नहीं? और यदि सहमत है तो उसके नेतृत्व वाली केंद्र सरकार यह कैसे कह सकती है कि आपके किसान हैं आप जानो…
क्या ‘जय जवान, जय किसान’ का राष्ट्रीय नारा भी विखंडित होकर अब मध्यप्रदेश का किसान…, महाराष्ट्र का किसान…, उत्तरप्रदेश का किसान… जैसे नारों में तब्दील होगा? देश का अनाज भंडार तो पूरे देश के किसान मिलकर भरते हैं। क्या आप गेहूं के बोरे से कोई दाना उठाकर यह बता सकते हैं कि यह फलां राज्य का या फलां किसान का है?
कर्ज माफी किसी भी स्थिति में समस्या का समाधान नहीं है बल्कि गलत नीतियाँ देश में असंतोष और अराजकता बढ़ा रही है।।देश का भला सोचने वालों की जरूरत है नकि वोट बैंक तलाश करने वालों की।