कहां खो गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकार?

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अतुल तारे

फर्ज कीजिए, कोई एक पढ़ा लिखा शातिर (नाम और चेहरा आप ही तय कर लें) अगर यह ट्वीट करता कि भारत को हम हिंदू राष्ट्र बनने नहीं देंगे। उसके टुकड़े-टुकड़े कर देंगे। तब सोशल मीडिया के ट्विटर मैनेजर क्या करते? क्या इस ट्वीट को विलोपित करते? क्या ट्वीट करने वाले का खाता निलम्बित करते? प्रश्न का उत्तर सोचने के लिए एक सेकंड लगाने की भी आवश्यकता नहीं है, उत्तर है नहीं।

हां, अगर कोई देश भक्त इस ट्वीट  की कड़े शब्दों में आलोचना करता तो देश भर में एक बौद्धिक दीवालियापन दिखाती एक बहस शुरू हो जाती और अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता के पैरोकार गला फाड़ रहे होते। बहस से निष्कर्ष निकाले जाते देखिए किसी ने भारत के टुकड़े की बात कही भी है वह इसे हिन्दू राष्ट्र के रूप में देखना नहीं चाहता तो यह उसका विचार है और इस विचार का भी आदर होना चाहिए। पर आज सारे अभियक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकार हमेशा की तरह गायब है।

यह प्रश्न इसलिए कि शिक्षाविद्, भारत नीति प्रतिष्ठान से जुड़े वरिष्ठ कार्यकर्ता प्रो. राकेश सिन्हा ने एक ट्वीट किया है। ट्वीट किया है हम पाकिस्तान नहीं, इस्लामिक पाकिस्तान को तहस-नहस करेंगे। इसमें क्या आपत्तिजनक है? इसमें असंसदीय भाषा कहां हैं? क्या पाकिस्तान का आधिकारिक नाम इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान नहीं है? क्या पाकिस्तान की पहचान इस्लाम से नहीं जुड़ी है? क्या पाकिस्तान का जन्म ही द्विराष्ट्रवाद की बुनियाद पर नहीं हुआ था?

ऐसे में अगर कोई विचारक यह कहता है कि इस्लामिक पाकिस्तान को तहस-नहस किया जाना चाहिए। तो इसका सीधा-सीधा तात्पर्य यह है कि वह पाकिस्तान में ऐसी विचारधारा नहीं चाहता जो उसे इस्लाम से जोड़ती हो। यह तो स्वयं पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने ही कही थी, फिर इसमें ट्विटर के प्रबंधकों को क्या परेशानी है?

सोशल मीडिया तो है ही वैचारिक बहस का  सशक्त माध्यम जो प्रो. सिन्हा से सहमत नहीं थे वे फिर अपने  विचार रखते। ट्वीट को हटाने की एक तरफा कार्रवाई क्या दर्शाती है? इतना ही नहीं श्री सिन्हा का ट्वीटर खाता भी बंद कर दिया गया। अत: अब यह प्रश्न नहीं है, सीधा स्पष्ट आरोप है कि सोशल मीडिया को संचालित करने वाला रिमोट आज की तारीख में अभारतीय विचारकों के हाथों में है।

प्रो. राकेश सिन्हा के इन आरोपों में दम है कि प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तरह ही सोशल मीडिया को भी धन उपलब्ध  कराने वाली ताकतें भारत विरोधी हैं। सोशल मीडिया हो या प्रचार तंत्र का कोई भी माध्यम भारतीय दृष्टि, भारतीय विचारधारा, भारतीय संस्कृति को निकृष्ट से निकृष्ट शब्दों में गाली देने के आज के लोकप्रिय माध्यम हैं।

जो भारत के टुकड़े की बात करेगा, जो भारत में विधर्मियों की पैरोकारी करेगा, जो कश्मीर में पत्थर फेंकने वालों की वकालत करेगा, जो याकूब मैनन की फांसी पर रोएगा, जो कश्मीर में जान की बाजी लगा रहे सैनिकों को कठघरे में खड़ा करेगा, जो नक्सलवादियों के पक्ष में तर्क देगा और इससे भी बढ़कर जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को गाली देगा, देश का, दुनिया का तथाकथित बुद्धिजीवी समाज उसे हाथों हाथ लेगा। वह पुरस्कारों से नवाजा जाएगा। उसके लिए कसीदे पढ़े जाएंगे।

मीडिया के क्षेत्र में राष्ट्रीय विचार की हत्या के लिए सुपारी लेकर काम कर रहे क्षेत्र कितने सशक्त हैं, राकेश सिन्हा का प्रसंग उसका एक नवीनतम उदाहरण है। यह साधारण विषय नहीं है। यह दर्शाता है कि वैचारिक रूप से भी जनमत की जमीन से भी लगभग बेदखल हो चुके येअराष्ट्रीय विचारधारा के पैरोकार अपनी आखिरी लड़ाई लड़ने के लिए सारे शस्त्र आजमाने को तैयार हैं।

अत: श्री सिन्हा का यह कथन प्रासंगिक ही है कि यह विचारों पर हमला है। अत: नव साम्राज्यवादी मंचों के बरक्स हमें भी स्वदेशी सोशल मीडिया बनाना होगा। कारण कि विचारों की यह लड़ाई आने वाले दशक में आरपार की होना तय है। अत: प्रचार तंत्र के जितने भी साधन है, मंच है, उन पर राष्ट्रीय विचारों की दमदार उपस्थिति के लिए तंत्र की दृष्टि से भी और विचारों की दृष्टि से भी साधन सम्पन्न होना आज की महती आवश्यकता है।

ट्विटर प्रबंधकों की राकेश सिन्हा के ट्विटर खाते पर की गई कार्रवाई व्यक्तिगत राकेश सिन्हा पर  की गई कार्रवाई नहीं है। यह एक सुनियोजित सुविचारित कार्रवाई है। अत: इसका प्रतिकार भी सुविचारित योजनाबद्ध ही होना चाहिए।
 

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