पता नहीं मेरे हरे भरे मध्यप्रदेश को इन दिनों क्या हो गया है? कई दिनों से यहां हरी भरी खबरों के बजाय सूखी, रेगिस्तानी खबरें ही पैदा हो रही हैं। राजनीति तो प्रदेश में पहले भी होती रही है, प्रदेश ने एक से एक अक्खड़ या बदमिजाज अफसरों को भी झेला है, लेकिन इन दिनों राजनीति से लेकर प्रशासन तक में जो कुछ हो रहा है वह हैरान कर देने वाला है।
नर्मदा नदी को बारहों महीने लबालब रखने और उसे प्रदूषण मुक्त बनाने के इरादे से मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने जब से नर्मदा सेवा यात्रा निकाली है, तभी से नर्मदा सहित प्रदेश की अनेक नदियों में होने वाली रेत की अवैध खुदाई का मुद्दा भी मीडिया में छाया हुआ है। खबरों के इस चौतरफा हमले से निजात पाने के लिए सरकार ने नर्मदा में होने वाली रेत की खुदाई पर फिलहाल पूरी तरह रोक लगा दी है। इसके अलावा अन्य नदियों में मशीनों से खुदाई भी प्रतिबंधित कर दी गई है। पर इसके बावजूद रेत और अवैध खुदाई का भूत सरकार का पीछा नहीं छोड़ रहा।
इसी बीच गुरुवार को मीडिया में आई एक खबर ने तो सभी को चौंका दिया। खबर कहती है कि मुख्यमंत्री ने नर्मदा सेवा यात्रा के अगले चरण के रूप में होने वाले पौधरोपण को लेकर जिला कलेक्टरों की मीटिंग बुलाई। इसमें सरकार ने प्रदेश में दो जुलाई को साढ़े छह करोड़ पौधे लगाने का टारगेट तय करते हुए कलेक्टरों से अलग अलग पूछा कि कौन कितने पौधे लगाने की जिम्मेदारी ले रहा है।
इसी वार्तालाप के दौरान मुख्यमंत्री ने कथित तौर पर कहा कि पौधरोपण के लिए समाज के सभी वर्गों की मदद ली जाए। बात करते करते वे यह भी कह गए कि नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर को भी न्योता दिया जाए। वे नर्मदा बचाने की बात करती हैं तो पौधे भी लगाएं। खबरें कहती है कि सीएम की इस ‘सलाह’ पर बड़वानी के ‘तेजस्वी’ कलेक्टर तेजस्वी नायक ने पलटकर जवाब दिया कि हमने रेत खनन करते उनकी जेसीबी पकड़ी है, उन्हें क्यों बुलाएं?
बस, उसके बाद से ही मामले पर विवाद खड़ा हो गया है। मेधा पाटकर ने तेजस्वी नायक को चुनौती दी है कि या तो वे 24 घंटे में इस बात को साबित करें कि मेरी कोई जेसीबी रेत खुदाई करते प्रशासन ने पकड़ी है, अन्यथा अपने कथन के लिए माफी मांगें। यदि कलेक्टर ऐसा नहीं करते तो मानहानि प्रकरण का सामना करने के लिए तैयार रहें।
मैं यह मानकर चल रहा हूं कि खबरों में यदि यह किस्सा आग की तरह छपा है तो घटनास्थल (बैठक स्थल) पर धुंआ तो जरूर मौजूद रहा होगा। इसलिए इस पर बात करना जरूरी है। मेधा पाटकर से आप सहमत या असहमत हो सकते हैं। इसी तरह उनके आंदोलन से आपका समर्थन या विरोध भी हो सकता है। लेकिन इतने सालों से नर्मदा को लेकर आंदोलन करने वाली मेधा पाटकर जेसीबी खरीदकर नर्मदा से रेत की अवैध खुदाई करेंगी यह बात गले नहीं उतरती। मेधा ने इतने सालों में सरकारों या सत्ता प्रतिष्ठानों का विरोध तो अपने खाते में जरूर जमा किया है, लेकिन मुख्यमंत्री की मौजूदगी में उन पर जो कथित आरोप लगाया गया है, वैसी अप्रतिष्ठा संभवत: उन्होंने कभी नहीं कमाई।
यही कारण था कि मैंने पत्रकार के रूप में नर्मदा आंदोलन को कवर करने वाले और बाद में उससे सक्रिय रूप से जुड़ने वाले राकेश दीवान से मजाक में पूछा कि अब तक तो शैतान ही रेत की खुदाई कर रहे थे क्या अब ये साधु भी नर्मदा को खोदने लगे? राकेश दीवान ने उसी अंदाज में एक ठहाके के साथ जवाब दिया- ‘’हमारा तो आरोप है कि बड़वानी कलेक्टर और मेधा पाटकर की सांठगांठ है। यही वजह है कि कलेक्टर केवल उनकी जेसीबी जब्त करते हैं, उन्हें रेत के अवैध उत्खनन में गिरफ्तार नहीं करते…’’
दरअसल मेधा पाटकर ने खुद नर्मदा में अवैध उत्खनन को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में याचिका लगा रखी है। ट्रिब्यूनल ने उनके आरोपों की जांच के लिए अलग से दो वकीलों का दल भेजा था, जिसने लौटकर बताया कि मेधा ने जो ब्योरा दिया है वह तो बहुत कम है, हकीकत तो उससे कई गुना अधिक है। इस पर ट्रिब्यूनल ने बड़वानी सहित कई जिलों के कलेक्टरों को फटकार भी लगाई थी। अब वे ही कलेक्टर कह रहे हैं कि मेधा की जेसीबी नर्मदा में अवैध खुदाई कर रही है।
यह पूरा मामला प्रदेश में राजनीति और प्रशासन के हलकेपन को उजागर करने वाला है। कैसे कोई कलेक्टर इस तरह से किसी के बारे में ऐसी हलकी टिप्पणी कर सकता है और कैसे कोई राजनीतिक सत्ता इस तरह की टिप्पणियों पर अप्रतिक्रियात्मक रवैया धारण कर सकती है। यह कोई हंसी ठट्ठा करने का मामला नहीं है।
मेरे हिसाब से जो खबर इस शीर्षक के साथ बनी कि ‘’मेधा पाटकर की जेसीबी रेत खनन करते जब्त की गई’’ वह खबर इस शीर्षक के साथ बननी चाहिए थी कि ‘’मुख्यमंत्री ने निम्नस्तरीय टिप्पणी के लिए कलेक्टर को फटकारा।‘’ बैठक में कलेक्टर को कड़े शब्दों में बताया जाना चाहिए था कि यदि आप पूरी जिम्मेदारी से कह रहे हैं कि वह जेसीबी मेधा पाटकर की थी तो उन पर कानूनी कार्रवाई करिए या फिर अपने शब्द वापस लीजिए।
सार्वजनिक जीवन में आंदोलन, प्रदर्शन और विरोध तो चलते ही रहते हैं लेकिन इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि आप किसी के भी माथे पर यूं कलंक का टीका लगा दें।