अजय बोकिल
कोरोना की मार ने ही सही, इस देश में नेताओं राजनीतिक दुराग्रहों को मानवता के कालीन के नीचे सरकाने पर मजबूर कर दिया है। इसका ताजा उदाहरण मप्र के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान द्वारा कोरोना को पराजित करने मप्र में केरल माॅडल लागू करने का ऐलान है। यूं कोई दवा या दर्द से लड़ने का तरीका किसी की बपौती नहीं होता। लेकिन केरल राज्य ने अपनी कुशल रणनीति और जमीनी अमल की वजह से कोरोना से होने वाली मौतों को 3 के आंकड़े पर रोक दिया है। यह कोई सामान्य बात नहीं है।
शिवराज का केरल माॅडल अपनाने की बात करना इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि केरल में उन वामपंथियों की सरकार है, जो राष्ट्रवादियों के दुश्मन नंबर वन हैं। फिलहाल देश में कोरोना फाइट के तीन माॅडल चर्चा में हैं। पहला केरल का कासरगोड माॅडल, दूसरा राजस्थान का भीलवाड़ा माॅडल और तीसरा उत्तर प्रदेश का आगरा माॅडल। इनमें से केरल में माकपा, राजस्थान में कांग्रेस और यूपी में भाजपा की सरकारें हैं। इसके बावजूद शिवराज अगर केरल माॅडल की बात कर रहे हैं तो इसका अर्थ यही है कि जन स्वास्थ्य रक्षा को लेकर उनका लक्ष्य और नीयत बहुत साफ है।
वैचारिक तलवारबाजी से हटकर उनकी चिंता अपने राज्य के लोगों की जान बचाने की है, फिर चाहे इसके लिए कोई भी माॅडल क्यों न अपनाना पड़े। आखिर महामारी से पार पाना आज की पहली प्राथमिकता और जरूरत है। गौरतलब है कि शिवराजसिंह चौहान ने गुरुवार को फेसबुक के माध्यम से प्रदेश की जनता से संवाद के दौरान कोरोना और उससे जूझने की राज्य सरकार की तैयारी और क्रियान्वयन पर चर्चा की थी। इसी दौरान उन्होंने कहा कि हम राज्य के कुछ हिस्सों में ‘केरल माॅडल’ लागू करेंगे। क्योंकि मप्र के इंदौर व भोपाल सहित चार शहर कोरोना हाॅटस्पाॅट बने हुए हैं। लिहाजा इस प्रकोप पर अंकुश लगाने के लिए और ज्यादा प्रभावी रणनीति और अमल जरूरी है।
राज्य में कोरोना के खिलाफ लड़ाई पूरी ताकत से लड़ी जा रही है। जिसमें कई कर्मवीरों ने अपने प्राणों की आहुति भी दी है। बावजूद इसके राज्य में कोरोना से मौतों की संख्या बढ़ती जा रही है। दरअसल हमेंं इस लड़ाई को उस मुकाम तक ले जाने की जरूरत है, जहां कोरोना वाॅर में कोई ‘मध्यप्रदेश माॅडल’ भी नजीर बने। लेकिन इसके पहले यह जानना जरूरी है कि देश में कोरोना युद्ध में आजमाए गए ये तीन माॅडल दरअसल हैं क्या और इनका व्यावहारिक परिणाम क्या है।
जिस ‘केरल माॅडल’ की बात मुख्यमंत्री शिवराज ने की, उसका लुब्बो लुआब यही है कि समय रहते कोरोना जैसी वैश्विक महामारी की गंभीरता का अंदाजा लगाना, तदनुसार उसकी रोकथाम के समावेशी, प्रभावी और एकजुट उपाय करना। ये इसलिए भी अहम है कि जब देश में कोरोना का प्रकोप बढ़ने लगा था तब कोरोना पीडि़त राज्यों की सूची में केरल दूसरे नंबर पर था। लेकिन 15 दिनों में ही स्थिति बदल गई और अब वह मौतों की संख्या की दृष्टि से पहले 20 राज्यों में भी नहीं है।
ऐसा कैसे हुआ? कोई चमत्कार या कोई संजीवनी बूटी? वो भी बिना ज्यादा हो-हल्ले के। संक्षेप में कहें तो यह केरल माॅडल भी वास्तव में ‘सप्तपदी’ है। पहला- विदेशों से, खासकर खाड़ी देशों से आए संक्रमित लोगों के सीधे और परोक्ष रूप से संपर्क में आए लोगों का पूरी तरह से आइसोलेशन, दूसरा- सभी संक्रमितों को घरों में क्वारेंटाइन कर संक्रमितों के संपर्क में आए लोगों का स्थानीय डाटा तैयार करना, तीसरा- संक्रमितों के घरों के बाहर कड़ा पुलिस पहरा, साथ में समझाइश भी। ऐसे लोगों की निगरानी के लिए ड्रोन का इस्तेमाल।
चौथा- लोगों में हाथ धोने की आदत डालने सरकार द्वारा ‘ब्रेक द चेन’ कैंपेन की शुरुआत, सार्वजनिक स्थानों पर वाॅश बेसिन लगवाना। पांचवा- केरल के सभी हवाई अडडों को जिला अस्पतालों की कार्य सेना से जोड़ना। छठा- ब्लड बैंक में वायरस संक्रमण को रोकने रक्त दान करने वालों की कई बार स्क्रीनिंग तथा सातवां- सड़क मार्ग से राज्य में आने वाले लोगों की डाॅक्टरों द्वारा जांच और उन्हें एहतियाती उपाय समझाना।
यह भी उल्लेखनीय है केरल में मप्र की तुलना में बहुत बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीय आते-जाते हैं। दूसरे, देश में कोरोना का पहला मामला सामने के आने के पहले यानी 26 जनवरी को ही केरल में कोरोना कंट्रोल रूम की स्थापना हो गई थी। कोरोना टेस्ट में भी केरल काफी आगे है। उसने कोरोना कांटेक्ट और आइसोलेशन पर निगरानी के लिए 18 समितियां बनाईं। साथ ही मुख्यमंत्री पी. विजयन ने गरीबों के लिए सस्ते भोजन व 20 हजार करोड़ के पैकेज की घोषणा की। हालांकि ऐसे पैकेज बाद में दूसरे कुछ राज्यों ने भी घोषित किए हैं।
अब राजस्थान का भीलवाड़ा माॅडल। इसके तहत राज्य के भीलवाड़ा शहर में कोरोना प्रकोप के शुरुआत में ही पूरे शहर की स्क्रीनिंग शुरू कर दी गई। सख्ती से लाॅक डाउन पर अमल और 3 अप्रैल को महाकर्फ्यू लगाया। घर- घर सर्वे कर के आंकड़े जुटाए। बहुत बड़े पैमाने पर लोगों की स्क्रीनिंग। 18 हजार से अधिक लोगों को आइसोलेशन में रख कर टेस्टिंग। डेडिकेटेड स्क्रीनिंग और टेस्टिंग सेंटर बनाया। होम क्वारेंटीन लोगों की निरंतर माॅनिटरिंग। जिससे कोरोना फैलने पर अंकुश।
आगरा माॅडल में शहर को तीन जोन में बांटा गया। डब्ल्यूएचओ की गाइड लाइन के मुतािबक क्रमश: बफर, कंटेनमेट तथा हाॅट स्पाॅट जोन बनाए। शहर में तकरीबन 38 एपीसेंटर चिह्नित कर 10 को पूरी तरह बंद किया गया। 1248 टीमों ने करीब साढ़े 9 लाख लोगों का सर्वे व 1.6 लाख घरों की स्क्रीनिंग की। शहर के स्मार्ट सिटी सेंटर को कोरोना वाॅर रूम में तब्दील किया। इस अभियान में प्रशासन के साथ प्राइवेट हेल्थ वर्कर की भी सेवाएं ली गईं। इस आगरा माॅडल की डब्ल्यूएचओ ने भी सराहना की। साथ में तकनीकी सपोर्ट भी दिया। आगरा माॅडल इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि देश में सबसे ज्यादा विदेशी पर्यटक इसी शहर में आते हैं। बताया जाता है कि आगरा में कोरोना का अब कोई क्रिटिकल केस नहीं है।
तीनो माॅडलों में एक समानता है, वो ये कि पहले समस्या की गंभीरता को समझकर व्यवस्थित प्लान बनाना और उस पर पूरी संजीदगी के साथ युद्ध स्तर पर अमल। इन माॅडलों को राज्य में अन्य स्थानों पर भी लागू करने की कोशिश। इसका नतीजा वो ताजा (23 अप्रैल तक) आंकड़े हैं कि केरल में कोरोना के 447 मरीज और 3 मौतें, राजस्थान में 1964 मरीज और 27 मौतें, उत्तर प्रदेश में 1510 मरीज और 21 मौतें। वैसे यूपी में योगी सरकार के काम के तरीके पर विवाद हो सकता है, लेकिन 23 करोड़ आबादी वाले राज्य में कोरोना से 21 मौतें तुलनात्मक रूप से बहुत कम हैं और इसे सरकार की सफलता माना जाना चाहिए।
अब मप्र पर निगाह डालें तो करीब 8 करोड़ आबादी वाले अपने राज्य में अब तक 1699 कोरोना पाॅजिटिव मिले हैं तथा 81 मौतें हो चुकी हैं। जबकि इसे कम होना चाहिए था। अभी भी हमारे यहां टेस्टिंग की गति बहुत धीमी है। कोरोना प्रभावित गरीबों के राशन पानी का इंतजाम और पुख्ता और व्यापक बनाने की जरूरत है। हो सकता है कि इसका एक कारण अपेक्षित संख्या में टेस्टिंग न होना, राज्य में कोरोना के समांतर राजनीतिक उथल-पुथल के चलते सरकार का देरी से फाॅर्म में आना, चार दिन पहले तक कोरोना वाॅर की सारी जिम्मेदारी मुख्यमंत्री के सिर होना, अधिकारियों में समुचित समन्वय न होना, जानकार लोगों से परामर्श न लेना आदि हो।
लेकिन अब इस कोरोना युद्ध में शिवराज के साथ मंत्रियों के रूप में ‘पंच प्यारे’ भी शामिल हो गए हैं। पर शिवराज की सोच का सकारात्मक एंगल यह है कि वो कोरोना की लड़ाई को राजनीतिक लक्ष्मण रेखाओंं से परे जाकर लड़ने की इच्छाशक्ति दिखा रहे हैं। यह बड़े दिल और बड़ी सोच का परिचायक है। उनके सामने भीलवाड़ाा और आगरा माॅडल भी थे। लेकिन पार्टी के भीतर आलोचना का खतरा उठाकर भी उन्होंने अगर केरल माॅडल पर काम करने का संकल्प दिखाया है तो इसे संवेदनशील और हर अच्छे काम को स्वीकार करने की मानसिकता के रूप में देखा जाना चाहिए। और यह सभी के लिए अनुकरणीय भी है। मुमकिन है इसी संकल्प और इच्छाशक्ति के परिणामस्वरूप कोरोना विजय का मप्र का कोई अपना माॅडल भी आकार ले ले।
(लेखक की फेसबुक वॉल से साभार)