तो अब प्रकाश राज को भी ‘सम्‍मान’ लौटाने की सूझी

बच्‍चों को सुनाई जाने वाली पुरानी कहानी में तो बताया जाता रहा है कि जिन्‍न बोतल में बंद रहता है। गलती से उस बोतल का ढक्‍कन खोल दिए जाने के बाद वह बाहर आता है और मुसीबत का कारण बन जाता है। लेकिन कभी कभी मुझे लगता है कि यह जो ‘असहिष्‍णुता’ नाम का जिन्‍न है, वह हमेशा बोतल से बाहर ही रहता है। बोतल के भीतर रहना उसे पसंद नहीं और न ही उसे बोतल में बंद करने की कोशिशें होती हैं। ऐसा इसलिए है कि जब तक जिन्‍न बाहर रहेगा वह तांडव करता रहेगा और उसका तांडव कई लोगों के लिए अनुकूल अवसर लेकर आता है।

ताजा मामला दक्षिण भारत के फिल्‍म अभिनेता प्रकाश राज का है। प्रकाश राज बहुत अच्‍छे कलाकार हैं और उन्‍होंने दक्षिण की दर्जनों फिल्‍मों के अलावा हिन्‍दी की भी अनेक फिल्‍मों में काम किया है, जिनमें से कई तो बहुत चर्चित रही हैं। इन्‍हीं प्रकाश राज का एक बयान मंगलवार को अखबारों में छपा है जो बताता है कि इस बार असहिष्‍णुता का जिन्‍न प्रकाश राज के शरीर में उतर कर बोला है।

प्रकाश राज ने कर्नाटक की पत्रकार गौरी लंकेश की हत्‍या के ठंडे पड़ चुके मामले को फिर गरमाते और हवा देते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री इस मामले को लेकर कुछ नहीं बोल रहे। यदि उन्‍होंने (प्रधानमंत्री ने) इस मामले पर अपनी चुप्‍पी नहीं तोड़ी तो मैं (प्रकाश राज) अपने सारे अवार्ड लौटा दूंगा। उल्‍लेखनीय है कि प्रकाश राज को अभिनय के क्षेत्र में कई सारे अवार्ड मिल चुके हैं जिनमें राष्‍ट्रीय स्‍तर के अवार्ड भी शामिल हैं।

गौरी लंकेश मामले के प्रति अनुराग भाव दिखाते हुए, इस चरित्र अभिनेता ने कहा कि ‘’गौरी लंकेश को मारने वाले हो सकता है पकड़ लिए जाएं, या नहीं भी पकड़े जाएं, लेकिन एक ऐसी भीड़ है जो सोशल मीडिया पर गौरी के मर्डर का जश्‍न मना रही है। हम सभी को पता है कि ये कौन लोग हैं और ये किस विचारधारा से ताल्‍लुक रखते हैं।‘’

प्रकाश राज ने आगे कहा कि- ‘’इनमें से कुछ लोगों को पीएम मोदी खुद फॉलो करते हैं। यह मुझे डराता है। हमारा देश किस दिशा में जा रहा है?’’ प्रकाश ने ये बातें डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (डीवाईएफआई) के एक कार्यक्रम में कहीं और बातों बातों में वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी लपेटते हुए कह गए कि- ‘’पीएम तो मुझसे भी अच्‍छे एक्‍टर हैं।‘’

प्रकाश राज फिल्‍मों में ज्‍यादातर खलनायक की ही भूमिका अदा करते आए हैं और चरित्र अभिनेताओं की जमात में उनकी गिनती एक अच्‍छे कलाकार के रूप में होती है। कोई भी कलाकार, और कलाकार ही क्‍यों,देश का कोई भी नागरिक, उसे मिले अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के अधिकार के तहत यह हक रखता है कि वह बिना किसी भय के लोगों के सामने अपनी बात रख सके।

लेकिन ऐसा लग रहा है कि कुछ लोग इस तरह की घटनाओं का अन्‍यथा फायदा उठाने में लगे हुए हैं। आप किसी की हत्‍या का विरोध करें इसमें कोई बुराई नहीं है, मानव वध किसी भी सूरत में स्‍वीकार्य नहीं है। लेकिन उसकी एक कानूनी प्रक्रिया है। पता नहीं क्‍यों कर्नाटक में 30 अगस्‍त 2015 को हुई कन्‍नड़ साहित्‍यकार एमएम कलबुर्गी की हत्‍या के बाद एक चलन सा चल पड़ा है कि कोई भी घटना हो तो विरोधस्‍वरूप अपना पुरस्‍कार लौटाने की घोषणा कर दो।

जाहिर है, जिस तरह अपना मुंह खोलने और बोलने का अधिकार सभी को है, उसी तरह यह अधिकार भी सभी को है कि वह खुद को प्राप्‍त पुरस्‍कार को सम्‍मान के साथ अपने घर में रखे या उसे लौटा दे। अभी तक तो ऐसा हुआ नहीं है, लेकिन आने वाले दिनों में विरोधस्‍वरूप यह भी हो सकता है कि ऐसे ‘सम्‍मानित’लोग अपना सम्‍मान व्‍यक्तिगत या सामूहिक रूप से किसी नाले में फेंकने पर भी आमादा हो जाएं।

मेरा मानना है कि गौरी लंकेश मामले पर विरोध के साथ ही ज्‍यादा दबाव इस बात पर बनना चाहिए कि उसके हत्‍यारे जल्‍द से जल्‍द पकड़े जाएं। वे कौन लोग हैं और उन्‍होंने यह हत्‍या क्‍यों की, इसका कारण देश के सामने आए और बाद में उन्‍हें सख्‍त से सख्‍त सजा मिले। लेकिन यह काम न तो मैं कर सकता हूं और न ही प्रकाश राज। अंतत: जो भी होगा कानून और संविधान के तहत ही होगा। फिर क्‍या बात है कि कानून और कानून का राज बनाए रखने वाली व्‍यवस्‍था (जो इस समय कर्नाटक सरकार है) के खिलाफ वैसा दबाव नहीं बनाया जा रहा? क्‍या यह घटनाओं के प्रति भेदभावपूर्ण व्‍यवहार का उदाहरण नहीं है?

ऐसा ही भेदभावपूर्ण रवैया त्रिपुरा में हाल ही में टीवी पत्रकार शांतनु भौमिक की सरेआम की गई हत्‍या के दौरान देखने को मिला है। आश्‍चर्य होता है कि गौरी लंकेश या कलबुर्गी के मामले में तो साहित्‍याकरों,कलाकारों व संस्‍कृतिकर्मियों के जमावड़े एकजुट होकर विरोध जताते हैं, पुरस्‍कार और सम्‍मान लौटाने की धमकियां दी जाती हैं, लेकिन शांतनु के मामले में ऐसा कुछ नहीं होता।

गौरी लंकेश की हत्‍या किन कारणों से हुई और किसने की, वे वास्‍तविक कारण और असली अपराधी अभी उजागर होने बाकी हैं। लेकिन शांतनु को तो सरेआम उस समय मारा गया जब वह विशुद्ध पत्रकारीय दायित्‍व का निर्वाह कर रहा था। क्‍या विरोध का स्‍तर अब यह देख कर तय किया जाने लगा है कि जिस इलाके में इस तरह का अपराध हुआ है वहां किसकी सरकार है?

निश्चित रूप से यह भी असहिष्‍णुता का ही दूसरा रूप है। जब आप खुद के बुद्धिजीवी या कलाकार होने का दावा करते हुए, या उसका फायदा उठाते हुए, या उसकी आड़ लेते हुए, इस तरह विरोध व्‍यक्‍त करने में पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं, तो आप समाज में असहिष्‍णुता को खत्‍म करने का नहीं बल्कि उसे बढ़ावा देने या उकसाने का ही काम कर रहे होते हैं। फिर आपमें और उन हत्‍यारों में फर्क ही क्‍या रह जाता है।

आपके सम्‍मान लौटाने से अपराधियों का पता चलता हो या वे पकड़े जाते हों या फिर उन्‍हें सजा मिलने की गारंटी हो तो जरूर ऐसा करिए, लेकिन अपनी ‘राजनीति’ करने के लिए ऐसा करने का हक समाज ने आपको नहीं दिया है और न ही वह सम्‍मान आपको इस काम के लिए मिला है।

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