अब प्रतिपक्ष भी भाजपा खुद ही तैयार करे

अतुल तारे

सम्पूर्ण देश दिल्ली नहीं है, यह एक सच है। पर यह भी अर्ध या अर्ध से कुछ अधिक सच जरुर है कि दिल्ली देश की भावनाओं का एक ‘लिटमस टेस्ट’ है। दिल्ली महानगर के स्थानीय निकाय के चुनावी नतीजे फिर एक बार यह प्रमाणित कर रहे हैं कि देश में प्रधानमंत्री मोदी के प्रति एक जबरदस्त उत्साह के साथ विश्वास कायम ही नहीं है अपितु और बढ़ रहा है। प्रश्न किया जा सकता है और किया जाना चाहिए कि एक महानगर के स्थानीय निकाय के चुनाव परिणामों को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से जोड़ना कहां तक ठीक है? क्या ये चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के कामकाज को लेकर हो रहे थे?

बेशक नहीं। पर देश इस समय असाधारण दौर में है। वे एक जननायक, महानायक के रूप में स्थापित है और आज देश की राजनीति उसी महानायक के प्रति अपना सम्पूर्ण विश्वास प्रगट कर रही है। स्वाधीन भारत के अब तक के इतिहास में ऐसा अभूतपूर्व जन समर्थन किसी को प्राप्त नहीं हुआ है और इसलिए यह जनादेश भले ही महानगर पालिकाओं के लिए हैं पर जनादेश का नैतिक भार 7 एकात्मता मार्ग (प्रधानमंत्री निवास) भी महसूस कर रहा है।

प्रसंगवंश, पहले चर्चा सिर्फ स्थानीय निकाय के चुनावी नतीजे की।

राजधानी दिल्ली के तीनों निगमों पर विगत 10 वर्ष से भाजपा कायम है। लिखने की आवश्यकता नहीं कि इन 10 सालों में भाजपा शासित निगम ऐसा कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर पाई है कि उनकी पीठ थपथपाई जा सके। भाजपा ने इसका खमियाजा विधानसभा चुनाव में भुगता भी। यही कारण रहा है पार्टी ने अपने सभी मौजूदा पार्षदों के टिकिट काटे। जाहिर है, एंटी इनकमबैंसी का खतरा था। पर जो आम आदमी पार्टी विधानसभा की 70 में 67 सीटें जीत गई निकायों में 67 वार्ड नहीं जीत पाई। कांग्रेस फिर तीसरे स्थान पर।

जाहिर है जहां जनता ने केजरीवाल की अराजक राजनीति को सिरे से खारिज किया वहीं वह कांग्रेस को अभी भी बख्शने के मूड में कतई नहीं है। लेकिन भाजपा के स्थानीय नेताओं से नाउम्मीद रहने के बावजूद वह प्रधानमंत्री मोदी के प्रति अपना समर्थन व्यक्त कर रही है। इन अर्थों में यह जनादेश असाधारण है। लगभग एक माह पहले उत्तरप्रदेश में भी यही जनादेश था कि प्रदेश मोदी के साथ है। यही नहीं पूर्वोत्तर के सीमावर्ती राज्य हों या देश के अलग-अलग हिस्सों से मिल रहे रुझान साफ दर्शा रहे हैं कि वर्तमान राजनीतिक परिवेश में मोदी के प्रति एक असामान्य असाधारण एवं कहीं-कहीं अपरिभाषित भी ऐसा विश्वास है जिसके आगे राजनीतिक पंडित भी स्तब्ध हैं।

प्रश्न उठता है कि ऐसा क्या है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में। उत्तर है देश को लंबे समय बाद ऐसा नेतृत्व मिला है जिसकी प्रामाणिकता, परिश्रम एवं निष्ठा पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं है। उत्तर है कि प्रधानमंत्री मोदी उस पार्टी के कार्यकर्ता हैं जिसका अधिष्ठान ‘राष्‍ट्र सर्वोपरि’ है। उत्तर है, भाजपा के पीछे उन हजारों, लाखों, करोड़ों कार्यकर्ताओं एवं जन सामान्य का विश्वास जो भाजपा के सदस्य नहीं हैं, पर यह मानते हैं कि देश के लिए आज भाजपा आवश्यक है। उत्तर है, कि आज भाजपा को उनका भी समर्थन प्राप्त है जो परंपरागत रूप से भाजपा के साथ नहीं रहे हैं।

तात्पर्य केन्द्र से लेकर स्थानीय निकाय तक भाजपा का बढ़ता कद विपक्ष को अस्तित्वहीन कर रहा है। यद्यपि यह स्थिति विपक्ष की अपने कर्मों के कारण है, पर देश के भविष्य के लिए और स्वयं भाजपा के भी दीर्घकालीन हितों के लिए यह परिदृश्य अच्छा नहीं है।

वातावरण जिस दिशा की ओर है, आने वाले समय में यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि राजनीतिक मानचित्र पर विपक्ष को कहां ढूंढें यह भी एक प्रश्न होगा। ऐसे में भाजपा संगठन का दायित्व अत्यंत गंभीर हो जाता है। लोकतंत्र इस देश की घुट्टी में है, संस्कारों में है। इतिहास में ऐसे कई प्रसंग आते हैं कि देश के महान राजाओं ने अपने राजतंत्र में ही आंतरिक विपक्ष की एक ऐसी स्वस्थ रचना की थी जो राजा को समय-समय पर सचेत करता था।

भाजपा नेतृत्व को चाहिए कि वह संगठन स्तर पर एवं अपने आंतरिक स्तर पर ही सत्ता पर पैनी नजर रखने के लिए एक तंत्र राजधानी से लेकर पंचायत तक विकसित करें जो राज सत्ता पर अंकुश का कार्य करे। अगर वह ऐसा करने में सफल होती है और वह हो सकती है। कारण उसी के पास ऐसे तपस्वी कार्यकर्ता हैं जो सत्ता से विलग रहने का सहज साहस दिखा सकते हैं। देश को आज देश के भविष्य के लिए एक विपक्ष की भी आवश्यकता है, कारण कांग्रेस तेजी से धीमी मौत की ओर अग्रसर है, ऐसे में यह भार भी भाजपा को ही लेना होगा।

शुभकामनाएं

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