लिख लें, शिवराज अगला चुनाव शराबबंदी पर ही लड़ेंगे

 

मध्‍यप्रदेश की राजनीतिक फिजाएं इन दिनों यूं ही ‘नशीली’ नहीं हो रही हैं। हालांकि राज्‍य के विधानसभा चुनाव अभी करीब दो साल दूर हैं, लेकिन सत्‍तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी पर अगला चुनाव भी अपनी झोली में डाल लेने का सुरूर अभी से चढ़ने लगा है। एक तरफ मुख्‍य विपक्षी दल कांग्रेस इस उलझन से उबर नहीं पा रहा है कि वह अगले चुनाव में किसका चेहरा और कौनसा मुद्दा लेकर जनता के बीच जाए, वहीं भाजपा को लगातार जीत दिलाते आ रहे शिवराजसिंह चौहान ने चुनावी गोटियां अभी से चलनी शुरू कर दी हैं।

वैसे भी पिछले 11 सालों में शिवराज प्रदेश की राजनीतिक चौंसर के माहिर खिलाड़ी बन गए हैं। वे अच्‍छी तरह जानते हैं कि कब कौनसा पांसा फेंकना सही होगा। और जब सारे मोहरे आपकी मुट्ठी में हों तो फिर बिसात की भी क्‍या बिसात जो आपके खिलाफ चली जाए। पिछले दिनों शिवराज ने जो दो दांव चले हैं उनकी काट निकाल कर लाना तो दूर कांग्रेस उसके बारे में सोचने की स्थिति में भी नहीं है।

शिवराज जानते हैं कि जनता की नब्‍ज को कहां और किस तरह पकड़ा जाए। इसलिए उन्‍होंने पहला धरतीपकड़ दांव नर्मदा सेवा यात्रा- नमामि देवि नर्मदे के रूप में चला है। नर्मदा इस प्रदेश की जीवन रेखा है और नर्मदा के नाम पर आप जो भी करेंगे वह हर लिहाज से आपके अनुकूल ही बैठेगा, क्‍योंकि इस मुद्दे पर विरोध की गुंजाइश बहुत कम है। शिवराज ने नर्मदा को सदानीरा बनाने, उसे प्रदूषण मुक्‍त करने और उसके किनारों को हराभरा बनाने के लिए जो मुहिम छेड़ी है उसका तोड़ कांग्रेस को ढूंढे नहीं मिल रहा। नर्मदा सेवा यात्रा के बहाने प्रदेश के ग्रामीण व शहरी दोनों इलाकों में भाजपा की संभावनाएं आस्‍था की लहरों पर सवार होकर आगे बढ़ेंगी।

शिवराज दूसरा बड़ा दांव शराब पर खेलने जा रहे हैं। इस साल की आबकारी नीति में एक प्रावधान यह किया गया है कि नर्मदा के किनारों पर पांच किलोमीटर के दायरे में शराब की कोई भी दुकान नहीं होगी। इसी तरह हाई वे पर भी शराब दुकानों को पांच सौ मीटर की दूरी से और अंदर सरकाया गया है। लेकिन ये सब फौरी फैसले हैं। असली मकसद चुनावी साल आते आते प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी लागू करना है और शिवराज उसे अपना सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने की राह पर ही आगे बढ़ रहे हैं।

दरअसल शिवराज ने अभी तक अपनी चुनावी रणनीति में ज्‍यादातर सामाजिक और भावना आधारित मुद्दों पर ही दांव लगाया है। अपना पहला चुनाव उन्‍होंने लाड़ली लक्ष्‍मी जैसी सामाजिक योजना को आगे रखकर लड़ा था। उसके बाद उन्‍होंने खेती को लाभ का धंधा बनाने का अभियान चलाया और अब अगले चुनाव में उनका सबसे ताकतवर हथियार होगा शराबबंदी। सरकार पिछले कुछ सालों से शराब की दुकानों को कम करने के अलग अलग उपाय करती रही है। संभवत: ये सारे उपाय शराब से होने वाली आय अचानक बंद होने के बाद पैदा होने वाले झटके को सहन करने की ताकत तैयार करने के लिए थे।

सरकार ने अपने आर्थिक ढांचे को आबकारी विभाग की आय कम होने के कारण पैदा होने वाला झटका सहन करने के लिए लगभग तैयार कर लिया है। वैसे भी एक लाख 60 हजार करोड़ से अधिक राशि के मध्‍यप्रदेश के सालाना बजट में शराब से हाने वाली आय का हिस्‍सा मात्र छ: साढ़े छ: हजार करोड़ ही है। संभवत: सरकार का अनुमान है कि इसी साल शुरू हो जाने वाले जीएसटी के कारण, कर ढांचे में होने वाले बदलाव से उसकी आय आने वाले वर्षों में इस घाटे को आसानी से सह लेगी।

सरकार के सामने मूल मुद्दा शराब से होने वाली आमदनी के खत्‍म होने का नहीं बल्कि शराब बंद होने से समाज में जाने वाले सकारात्‍मक संदेश और उस संदेश से उपजने वाली वोटों की फसल का है। शिवराज का गणित यह है कि शराबबंदी करके प्रदेश में ऐसा संदेश दिया जाए कि यह सरकार उस बहुत बड़ी सामाजिक बुराई पर प्रहार कर रही है जो कई परिवारों के बरबाद होने से लेकर कई लोगों की सेहत खराब होने का बड़ा कारण है।

वैसे भी शिवराज की नजर उन सारे कदमों पर ज्‍यादा ही सतर्क रहती है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उठाए जाते हैं। चाहे वह मेक इन इंडिया हो या डिजिटल इंडिया या फिर अभी ताजा ताजा कैशलेस इकॉनामी। बिहार में नीतीश कुमार ने शराबबंदी करके नरेंद्र मोदी को भी अपनी तारीफ करने के लिए मजबूर कर दिया है। इसका प्रमाण उस समय मिला जब हाल ही में गुरु गोविंदसिंह के 350 वें प्रकाशोत्‍सव के दौरान पटना पहुंचे नरेंद्र मोदी ने शराबबंदी को लेकर नीतीश की जमकर तारीफ की। जाहिर है मध्‍यप्रदेश में शराब की खपत को लेकर तंज कसते हुए इसे ‘मद्यप्रदेश’ कहने वाले नीतीश के मुकाबले शिवराज किसी भी मोर्चे पर कम नहीं पड़ना चाहेंगे। यही वजह है कि नरेंद्र मोदी के गुजरात और नीतीश के बिहार के बाद मध्‍यप्रदेश भी अब धीरे धीरे शराबबंदी की राह पर है।

राजनीति में वैसे भी नोट से ज्‍यादा अहमियत वोट की होती है। अब यदि शिवराज शराब से आने वाले नोटों की तुलना में, शराब को बंद कर उसके एवज में मिलने वाले वोटों को तवज्‍जो दे रहे हों तो इसमें बुराई भी क्‍या है?

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