भई हमारे यहां तो ‘कच्‍चे रसीद कट्टे’ खूब चल रहे हैं

30 जून की मध्‍यरात्रि, संसद के ऐतिहासिक सेंट्रल हॉल में, देश की नई एकीकृत कर प्रणाली (जीएसटी) को लांच करने से पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कहा- ‘’यह नई व्‍यवस्‍था देश को वर्टिकल दिशा में ले जाने का काम करेगी और अब वो कच्‍चा बिल, पक्‍का बिल, के सारे खेल खत्‍म हो जाएंगे…’’

चूंकि मैं निराशावादी नहीं हूं, इसलिए उम्‍मीद करता हूं कि प्रधानमंत्रीजी ने जो कहा है देश उसी दिशा में आगे बढ़ेगा। लेकिन जिस समय मैं यह आशावादी दृष्टिकोण अपनाता हूं उसी समय कुछ दृष्‍टांत मेरे सामने आकर खड़े हो जाते हैं और बलपूर्वक मजबूर करते हैं कि मैं ऐसे किसी दावे पर अव्‍वल तो यकीन ही न करूं और यदि ऐसा न हो सके तो उसे संदेह की नजर से तो जरूर देखूं।

आपको याद होगा, जब केंद्र में नई सरकार आई थी तो प्रधानमंत्री के तमाम मशहूर नारों में एक नारा यह भी था- ‘’न खाऊंगा, न खाने दूंगा।‘’ यह नारा बताता था कि देश को नए नेतृत्‍व के साथ जो सरकार मिली है उसके गवर्नेंस की शैली क्‍या होगी? पर आप पूरी ईमानदारी से, दिल पर हाथ रखकर बोलिए,न खाने दूंगा वाली बात क्‍या जमीन पर खरी उतर रही है?

हो सकता है नई दिल्‍ली के प्रशासनिक गलियारों में केंद्र सरकार ने इसे संभव कर दिखाया हो। चूंकि मैं दिल्‍ली में नहीं रहता इसलिए इस बारे में ठीक ठीक कह नहीं सकता। लेकिन मैं जिस भोपाल में रहता हूं, उस मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल में बैठकर, मैं नि:संकोच कह सकता हूं कि कम से कम मध्‍यप्रदेश में तो भाजपा के शीर्ष नेतृत्‍व का यह नैतिक उद्घोष धूल चाट रहा है।

आप किसी भी दिन का अखबार उठा लीजिए, इन ‘’न खाऊंगा न खाने दूंगा’’ वालों की जमात से जुड़ी कोई न कोई खबर आपको जरूर मिलेगी। और छोडि़ए पुरानी खबरों को, सबसे लेटेस्‍ट सतना नगर निगम के कमिश्‍नर एस.के.कथूरिया का मामला ही ले लीजिए। ग्‍वालियर चंबल इलाके में पत्रकारिता के दौरान मैंने डकैतों की दबंगई तो देखी थी, लेकिन कथूरिया का मामला अफसरों की डकैतई का और भी अधिक दबंग नमूना है।

पिछले दिनों मुझे वाट्सएप पर किसी ने एक ऑडियो क्लिप किसी भेजी। मैं आदतानुसार उस क्लिप की पुष्टि का कोई प्रमाण पत्र जारी न करते हुए, कहना चाहूंगा कि वह क्लिप भले ही 50 लाख की रिश्‍वत मांगने वाले निगम आयुक्‍त कथूरिया और इस मंगते अफसर को पकड़वाने वाले डॉ. राजकुमार अग्रवाल के बीच संवाद की न हो, लेकिन वो जो भी संवाद है वह प्रदेश में मोदी जी के उद्घोष की चड्डी उतार देने वाला है।

क्‍या जिगरा है बंदे का यार…! ऑडियो क्लिप में वो सामने वाले की एक दो लाख की पेशकश को भीख समझते हुए, सीधे 50 लाख का नजराना मांग रहा है। वो भी इस धमकी के साथ कि पैसे की व्‍यवस्‍था कर लो वरना मकान टूटने से कोई नहीं बचा सकता। उसकी पहुंच और पकड़ का आलम यह है कि सौदे के दौरान वह डॉक्‍टर को मुफ्त में एक नेक सलाह भी दे रहा है कि इस नजराने के गिलोटिन से बचने के लिए किसी और के पास जाने की जरूरत नहीं है। यहां तक कि भोपाल में मंत्री के पास जाने से भी कुछ नहीं होगा। जो कुछ होगा यहीं होगा और मेरे हाथों ही होगा।

सरकार के हाथों सम्‍मानित यह बंदा अपनी करतूत से, जाने अनजाने कई पोलें खोलता है और कई चर्चाओं पर सत्‍यता की मुहर ठोकता है। मसलन मैं इसी कॉलम में मध्‍यप्रदेश में काम करवाने के एवज में लिए जाने वाले दस प्रतिशत के दस्‍तूर का कई बार जिक्र कर चुका हूं। सतना में जिस अवैध मकान को तोड़ने से रोकने के लिए यह सौदेबाजी हुई, उसकी कीमत भी करीब पांच करोड़ बताई गई है। इसीलिए रिश्‍वत भी 50 लाख की मांगी गई… यानी वही ‘सिर्फ’दस प्रतिशत का दस्‍तूर…

इस ऑडियो को सुनें तो दोनों पात्रों के बीच होने वाले संवाद में आपको कई नैतिक और आधुनिक प्रबंधन के गुर भी छिपे हुए दिखाई देंगे। मसलन जब मामला एक दो लाख रुपए में सुलटाने की पेशकश होती है तो सामने से एक उच्‍च नैतिक सलाह पटकी जाती है- आप ये माइंड सेट बदलिए, थोड़ा ऊपर उठिए… आडियो में मंत्री का जिक्र तो बहुत ही चौंकाने वाला है। वो कहता है- आप भोपाल चले जाएं, मंत्री से फोन करवा दें तो भी कुछ नहीं होने वाला,होगा तो वही जो मैं चाहूंगा।

और दबंगई का आलम देखिए। लोकायुक्‍त की कार्रवाई के बाद जब कमिश्‍नर को पकड़वाने वाले डॉक्‍टर दंपति नगर निगम दफ्तर में जाते हैं तो वहां के कर्मचारी उनका इस बात के लिए घेराव कर लेते हैं कि उन्‍हें चोर और भ्रष्‍ट कैसे कहा गया? वे चाहते हैं कि डॉक्‍टर दंपति ऐसे निकृष्‍ट संबोधन के लिए उनसे माफी मांगे…

और यहीं मुझे मोदीजी याद आ जाते हैं। पहले तो इस सवाल के साथ कि ‘’न खाऊंगा, न खाने दूंगा’’ का उनका नारा क्‍या सिर्फ उन्‍हीं तक सीमित है या भाजपा की अन्‍य सरकारों का भी इससे कोई लेना देना है? और जब खाने पीने की बातें यूं सरेआम हो रही हों, तो यह बात कैसे गले उतरेगी कि कोई खाता नहीं होगा। वरना उस अफसर की क्‍या दम जो यह कहे कि मंत्री से भी फोन करवा लीजिए कुछ नहीं होगा… यानी विभाग का मंत्री तक इन लोगों के सामने कोई मायने नहीं रखता। तो फिर ये सारे कबरबिज्‍जू किसके दम पर इस तरह लोगों का मांस नोचने पर तुले हैं…

सच तो यह है कि, वहां मोदी जी कच्‍चे रसीद कट्टे बंद करने की बात कर रहे हैं और हमारे यहां, ‘कच्‍चे रसीद कट्टे और कच्‍ची जेबें खूब फलफूल रही हैं…

 

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