वास्तव में अब देश को मोदी जी और डोभाल जी की जरूरत नहीं रही। सोशल मीडिया पर ही कई धुरंधर हैं, जो युद्ध नीति, कूटनीति, राजनीति, राष्ट्रनीति, सैन्य संचालन आदि सभी मामलों के जानकार, अनुभवी और विशेषज्ञ हैं।
ये वही लोग हैं जो लाहौर में एक हमला होने पर पाकिस्तान से सहानुभूति जताने के लिए अपना प्रोफ़ाइल फोटो काला कर रहे थे, और फिर बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद पाकिस्तान के उकसाने पर भारतीय सेना के समर्थन में भी प्रोफ़ाइल फोटो बदल रहे थे। ये वही लोग हैं, जो आज पकिस्तान को गालियां देते हैं और कल भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच के टिकट खरीदने के लिए लाइन में खड़े रहते हैं या सोशल मीडिया पर लाइव स्कोर बताते रहते हैं। ये वही लोग हैं, जो 2 रुपये बचाने के लिए चीनी सामान खरीदते हैं, लेकिन सरकार को सिखाते हैं कि चीन भारत के बाज़ार को निगल रहा है। ये वही लोग हैं, जो सरदेसाई और बरखा को रोज़ सुबह गालियां देते हैं, लेकिन रोज़ शाम को उन्हीं के चैनल देखकर उनकी टीआरपी भी बढ़ाते हैं। ये वही लोग हैं, जो अंडरवर्ल्ड के पैसों से बनी फ़िल्में देखने के लिए हर वीकेंड पर मल्टीप्लेक्स के बाहर कतार लगाते हैं और सोशल मीडिया पर सरकार से पूछते हैं कि सरकार दाऊद को खत्म क्यों नहीं कर रही है। ये वही लोग हैं जो किंगफिशर की बीयर खूब शौक से खरीदकर पीते हैं और फिर ये सवाल भी पूछते हैं कि सरकार माल्या को भारत कब लाएगी। ये वही लोग हैं, जो एक दिन गृहमंत्री को कोसते हैं, फिर अगले दिन पैलेट गन चलाने के लिए तारीफ़ भी करते हैं। और ये वही लोग हैं, जो दिन-रात मीडिया चैनलों की निंदा करते हैं, लेकिन उन्हीं चैनलों द्वारा सेट किए जाने वाले एजेंडा का भी रोज शिकार बनते हैं।
अपनी सुख-सुविधाओं में एक कतरा भी कटौती नहीं करना चाहते, 50 पैसे टैक्स बढ़ जाए तो छाती पीटने लगते हैं और ऐसे लोग आज युद्ध की भाषा बोल रहे हैं! पहले अपने कम्फर्ट ज़ोन से तो बाहर निकलिए, उसके बाद युद्ध के उपदेश दीजिए। खुद को राष्ट्रवादी बताने वाले लोग सबसे ज्यादा कन्फ्यूज दिखते हैं। मैंने वामपंथियों को कभी अपनी विचारधारा और एजेंडा के बारे में कन्फ्यूज नहीं देखा, मैंने भारत-विरोधियों को कभी अपनी विचारधारा और एजेंडा के बारे में कन्फ्यूज नहीं देखा, लेकिन राष्ट्रवादी टोली मुझे वैचारिक धरातल पर सबसे ज्यादा कन्फ्यूज दिखती है क्योंकि बुद्धि और विवेक को परे रखकर हर बात में भावनाओं के अनुसार बहते रहते हैं। एक दिन का उफान होता है, दूसरे दिन सब भूल जाते हैं।
मेरा सुझाव है कि इस कन्फ्यूजन से बाहर निकलिए। मुझे नहीं पता कितने लोग मीडिया चैनलों और प्रचलित अख़बारों की खबरों के अलावा कुछ पढ़ते हैं। मुझे नहीं पता सोशल मीडिया पर भावनाओं का उबाल सिर्फ एक-दूसरे की पोस्ट पढ़कर ही उफनता है या उसके पीछे कोई ठोस अध्ययन, संबंधित मामलों की समझ आदि भी है या नहीं। मुझे नहीं पता मीडिया में शोर सुनकर यहां चिल्ला रहे कितने लोगों को याद है कि कुछ ही दिनों पहले वायुसेना का जो विमान अंडमान जाते समय लापता हो गया, उसमें कितने सैनिक थे? मैंने संकेत दे दिया है, बाकी आप समझदार हैं।
जब कोई हम पर हमला करने आता है, तो बेशक पहला समझदारी का काम उस पर जवाबी हमला करना ही होता है। भारतीय सेना ने वो किया है, तभी चारों आतंकियों को मार गिराया गया। लेकिन जब सामने वाला हमला करके जा चुका है, और अब आपको जवाब देना है, तो वह ठंडे दिमाग से, सोच-समझकर और योजना बनाकर ही दिया जाना चाहिए, न कि उकसावे में आकर। पाकिस्तान ने हमला करके आपको उकसा दिया है, इसलिए ये ज़रूरी नहीं कि भारतीय सेना तुरन्त अपने टैंक और मिसाइलें लेकर पाकिस्तान में घुस जाए। मुझे कोई शक नहीं कि जिस दिन भारतीय सेना उचित समझेगी, उस दिन ये काम भी अवश्य हो जाएगा, लेकिन अभी नहीं हो रहा है, इससे स्पष्ट है कि सेना के पास शायद उससे बेहतर कोई तरीका मौजूद है।
कुछ लोगों को लगता है कि भारत सरकार सो रही है या सिर्फ कड़ी निंदा के बयान दे रही है। गृहमंत्री ने अपनी रूस और अमेरिका की यात्रा कल रद्द कर दी। क्या आपको लगता है कि सरकार ने सिर्फ कड़ी निंदा वाले बयान देने के लिए यात्रा रद्द की है? अजीत डोभाल ने अपनी पूरी ज़िंदगी ऐसे ही उच्च-स्तरीय मिशन और सीक्रेट ऑपरेशन पूरे करने में बिताई है। जो आदमी जासूस बनकर 6 साल लाहौर में अंडरकवर एजेंट रहा है, क्या आपको लगता है कि इस मामले की समझ आप में उससे ज्यादा है? ये कॉमन सेन्स की बात है कि उच्च-स्तर पर प्लानिंग हो रही होगी, हर विकल्प पर विचार हो रहा होगा, और हर मोर्चे पर हमले की रणनीति बन रही होगी। ये भी कॉमन सेन्स की बात है कि इसकी जानकारी न किसी सरकारी बयान में दी जाएगी, न सोशल मीडिया पर पोस्ट और ट्वीट में। अपनी भावनाओं को अपने विवेक और बुद्धि पर हावी मत होने दीजिए। ये जरूरी नहीं है कि कश्मीर के जवाब में हमला कश्मीर वाली सीमा से ही हो। हमला अफगानिस्तान की तरफ से भी हो सकता है, हमला बलूचिस्तान से भी हो सकता है, हमला चीन के इकोनॉमिक कॉरिडोर की तरफ भी हो सकता है। इसलिए जिस मामले की समझ जिन लोगों को हमसे ज्यादा है, उनको उनका काम उनके ढंग से करने दीजिए। उनको पता है क्या परिणाम चाहिए और वो कैसे मिलेगा। उनको ये भी पता है कि आप सिर्फ एक दिन चिल्लाएंगे और दूसरे दिन भूल जाएंगे क्योंकि सबसे सरल काम यही है।
जो लोग टीवी पर क्रिकेट देखते समय घर बैठे-बैठे चिल्लाते रहते हैं कि कप्तान को कौन-सा फील्डर कहां खड़ा करवाना चाहिए और किस बॉलर को पहला ओवर देना चाहिए, वो जरा ये समझें कि कप्तान में क्रिकेट की समझ आपसे ज्यादा है और मैदान की परिस्थिति को भी वह आपसे बेहतर समझता है क्योंकि वह मैदान में खड़ा है और आप घर में बैठे हैं। अगर उसको कप्तान मानते हैं, तो उसको निर्णय लेने दीजिए और उसके निर्णय पर भरोसा कीजिए। आपसे ज्यादा कन्फ्यूज लोग दुनिया में कोई दूसरे नहीं हैं क्योंकि आप किसी विषय में पूरी जानकारी नहीं लेना चाहते और न किसी बात को शुरू करने पर आखिरी तक ले जाना चाहते हैं। आप में और मीडिया चैनलों में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है, दोनों को ही अपना समय काटने के लिए रोज एक नया मुद्दा चाहिए होता है। बेहतर है कि दूसरों को आईना दिखाने की कोशिश करने वाले एक बार खुद भी आईना देखें।
जितने लोग जापान और वियतनाम और इज़राइल जैसे देशों के उदाहरण देते रहते हैं, वे उपदेशक का चोला उतारें और जरा यह भी देखें कि वहां की सफलताओं में जनता की कितनी बड़ी भूमिका और योगदान रहा है। फिर भारत में खुद से उसकी तुलना करें। कोई देश सिर्फ सरकार के भरोसे इजरायल और जापान नहीं बन जाता, वह तब इजराइल और जापान बनता है, जब लोग अपने देश के लिए त्याग करने को तैयार होते हैं, जब लोग अपने देश के लिए कष्ट उठाने को तैयार होते हैं, जब लोग अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलकर देश के लिए कुछ करते हैं। पहले वह काम कीजिए और भारत में वैसा माहौल बनाने में कुछ योगदान दीजिए, उसके बाद ही समस्या जड़ से मिटेगी, वरना पाकिस्तान को आप चाहे पूरा साफ़ कर दीजिए, पर समस्या कहीं और से सिर उठाती रहेगी क्योंकि समस्या की जड़ बाहर नहीं है, भीतर ही है।
मेरी बातें अक्सर ही कड़वी लगती हैं क्योंकि मैं लहर देखकर नहीं बहता और न किसी को खुश करने के लिए लिखता हूं। मुझे अफ़सोस तब नहीं होता, जब लोग मेरी बातों से असहमत होते हैं, बल्कि अफ़सोस तब होता है, जब आगे चलकर मेरी बातें और चेतावनियां सही साबित होती हैं। मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं कि भारत की सबसे बड़ी कमजोरी राष्ट्रवादियों का कन्फ्यूजन और अस्थिरता ही है। जिस दिन यह ठीक हो जाएगा, उस दिन सारे समीकरण बदल जाएंगे।
सादर!
जय हिन्द !!
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यह पोस्ट हमने श्री उमेश शर्मा की फेसबुक वॉल से ली है।