कभी कभी तो फिदा हो जाने का मन करता है इस नस्ल पर। क्या फितरती दिमाग पाया है कि अच्छे अच्छे पढ़े लिखे तुर्रम खां भी पानी भरते नजर आएं। और ऐसे शातिर जुगाड़बाजों को अपनी हरकतें अंजाम देने के लिए जब मध्यप्रदेश जैसी उर्वरा भूमि मिल जाए फिर तो कहना ही क्या… सच में सब कुछ ‘अजब-गजब’ ही होता है…
पिछले दो दिनों के दौरान दो बड़ी ही शानदार खबरों ने मन मोह लिया। दोनों खबरें हमारे अपेक्षाकृत कम पढ़े लिखे, लेकिन ‘अनुभवी’ प्रदेश की कीर्ति पताका को दिगदिगंत में फैलाने वाली हैं। शुक्रवार को खबर आई थी कि राज्य में एक ‘श्मशान घोटाला’ हुआ है। अब भ्रष्टाचार का यह नवाचारित क्षेत्र तो किसी ने नहीं सोचा होगा। कल्पना भी नहीं की जा सकती कि श्मशान में भी कोई घोटाला हो सकता है।
श्मशान को लेकर अब तक सिर्फ ‘श्मशान वैराग्य’ के बारे में ही सुना था, जहां जाकर व्यक्ति को थोड़ी देर के लिए ही सही, सारे माया-मोह और सांसारिक बंधन निस्सार नजर आने लगते हैं। व्यक्ति सामने जलती अपने प्रियजन की चिता में मानो अपना अक्स देखने लगता है और मन ही मन सोचने लगता है कि जब एक दिन उसे भी इसी तरह राख हो जाना है, तो फिर धन, संपदा और वैभव के लिए ये सारी मारामारी किसलिए?
लेकिन अपने प्रियजन को फूंक डालने के बाद जैसे ही वह श्मशान की बाउंड्री से बाहर आता है, वैसे ही सारे सांसारिक मायामोह उस पर हावी हो जाते हैं। पर अपने मध्यप्रदेश के भाई लोगों ने तो एक नए ‘क्रांतिकारी आइडिये’ से श्मशान के अंदर और बाहर की यह मानसिक दुविधा भी लगभग खत्म कर दी है। अपने गुना जिले के शूरवीरों ने श्मशान को ही घोटाले का केंद्र बना डाला है।
खबरें कहती हैं कि मप्र में लगातार आ रही घपलों घोटालों की खबरों के बीच गुना जिले से एक अनोखा श्मशान घोटाले का मामला सामने आया है। यहां श्मशान बनाने के नाम पर करोड़ों की राशि निकाल ली गई, लेकिन श्मशान या तो बने नहीं और यदि बने भी तो आधे-अधूरे। प्रशासन ने जब संबंधित सरपंचों, अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर करने की धमकी दी तो रातों-रात श्मशान बन गए।
सूत्रों के अनुसार 15 करोड़ रुपए के घोटाले के सुराग मिल रहे हैं। 1100 गांवों में 700 मुक्तिधाम सिर्फ कागजों पर बने। कायदे से, हर गांव में श्मशान बनाने के लिए 3.5 से 4 लाख रुपए दिए गए थे। मामला सामने आने के बाद 3 पंचायत सचिव सस्पेंड हो चुके हैं और 44 सरपंचों को पद से हटाने का नोटिस दे दिया गया है।
इन गांवों में यह घोटाला सामने आने से पहले एक और समस्या थी कि गांव के दबंग, दूसरी जाति के लोगों को अपने श्मशान में शव जलाने की अनुमति नहीं देते थे। नए श्मशान बनाने की मुहिम चलाई ही इस उम्मीद के साथ गई थी कि उनके बनने से यह समस्या दूर होगी,लेकिन नए घोटाले ने इस ‘उम्मीद’ पर भी पानी फेर दिया है।
आप यदि इस श्मशान घोटाले का ब्योरा सुनकर चौंक रहे हों तो थोड़ा रुक जाइए। अपनी धड़कनों को जरा सामान्य हो जाने दीजिए। क्योंकि हो सकता है अगले घोटाले का ब्योरा सुनकर आपके दिल की धड़कन ही बंद हो जाए। आपकी धड़कनों के सामान्य होने तक हम एक ‘भ्रष्ट ब्रेक’ ले लेते हैं…
ब्रेक के बाद अब दूसरी कथा सुनिए। ‘कथा’ शब्द पर जिन लोगों को आपत्ति है, उनके लिए यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि मामला भले ही घोटाले या भ्रष्टाचार का हो, लेकिन चूंकि यह पूजा पाठ से जुड़ा है, इसलिए मैंने ‘कथा’ जैसे पवित्र शब्द का इस्तेमाल किया। रविवार को इस दूसरी खबर से मन ‘कीर्तन कीर्तन’ हो गया। ऐसा लगा मानो मोक्ष का मार्ग मिल गया हो…
हुआ यूं है कि पिछले दिनों नर्मदा नदी को सदानीरा एवं प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए निकाली गई ‘नमामि देवी नर्मदे, नर्मदा सेवा यात्रा’ से एक ‘आरती घोटाले’ की बू आ रही है। यात्रा के दौरान नर्मदा के घाटों पर नियमित रूप से सुबह शाम आरती का आयोजन रखा गया था। अब पता चला है कि ऐसी प्रत्येक आरती पर करीब 59 हजार रुपए का खर्च आया है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि आरती से जुड़ी अन्य गतिविधियों आदि का खर्च इसमें शामिल नहीं है।
खरगोन के महिमाराम भार्गव ने सूचना के अधिकार के तहत जो जानकारी हासिल की है, उसमें चार मार्च को नर्मदा मैया के महेश्वर घाट पर हुई आरती का खर्च 58,650 रुपये बताया गया है। जानकारी के मुताबिक जनपद पंचायत महेश्वर ने इस आरती का भुगतान इंदौर की एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी को किया।
आरती के दौरान शामिल होने वाले विशिष्टजनों के ठहरने, खाने, टेंट, वाहन सहित अन्य मदों पर खर्च हुई राशि इससे अलग है। नर्मदा यात्रा 148 दिन चली। अब यदि ऊपर बताए गए हिसाब से प्रतिदिन का आरती खर्च 1,17,300 रुपये होता है तो148 दिनों का खर्च हुआ एक करोड़ 74 लाख 6400 रुपए।
यदि यह तर्क भी मान लिया जाए कि इतना अधिक खर्च सिर्फ उन्हीं स्थानों पर हुआ जहां वीवीआईपी लोग आरती में शामिल थे, तो भी ऐसी कम से कम 50 आरतियां हुईं। यानी 29 लाख रुपए से अधिक खर्च हुए। जबकि आधिकारिक तौर पर एक अन्य जानकारी में बताया गया है कि आरती का पूरा प्रकल्प साध्वी प्रज्ञा भारती और उनकी मंडली ने संभाल रखा था जिन्होंने उसका एक पैसा नहीं लिया।
इस मामले में मुझ मूढ़मति का हमेशा की तरह एक प्रश्न है कि जब साध्वी जी ने पैसा नहीं लिया तो फिर उस पैसे से किसकी ‘आरती’ उतारी गई। आरती के बाद होने वाली पुष्पांजलि की तर्ज पर वह ‘नोटांजलि’ किसके चरणों में अर्पित हुई? हो सकता है ये सारी खबरें मनगढ़ंत हो लेकिन सच जानने की जिज्ञासा तो होती ही है ना… सच क्या है, कोई बताएगा?
चलिए आप भी सत्य की खोज करते हुए प्रदेश के इस नवाचारित भ्रष्टाचार पाठ्क्रम के और अध्यायों का पता लगाइए… मैं थोड़ा भगवद्भक्ति की ओर प्रवृत्त होता हूं…
न जानामि योगं, जपं, नैव पूजां, नतोहं सदा, सर्वदा शंभु तुभ्यं…