मोहभंग! मयंक मिश्रा की नई कहानी- दूसरा भाग

0
1342

अवधेश प्रसाद के पास संपत्ति के नाम पर गांव में एक छोटा सा घर था और तीन खेत थे जो कि उन्होंने किराए पर दिए थे। उन्होंने तीनों खेत अपने एक एक बेटे के नाम पहले ही कर दिए थे, लेकिन उन्हें इसकी जानकारी नहीं दी थी।

अवधेश प्रसाद का फोन आने के कुछ दिनों बाद उनके तीनों बेटे गांव आ गए। अवधेश ने तीनों को एक साथ बैठा कर कहा, ‘मुझे खुशी है कि तुम तीनों आ गए। मैं कुछ जरूरी बात करना चाह रहा था। पिछले दिनों सरकार ने 500 और 1000  रुपये के नोट बंद करने की घोषणा की। इसके कुछ दिनों बाद तुम्हारी मां ने मुझे कुछ पैसे लाकर यह कहते हुए दिए कि यह पैसे उन्होंने कुछ सालों में जमा किए हैं। इन्हें बैंक में जमा करवा देना। मैंने जब पैसे गिने तो यह लगभग  1.24 लाख रुपये थे। मैं हैरान रह गया। लेकिन, तुम्हारी मां से कुछ नहीं कहा क्योंकि यह उन्होंने कई सालों में जमा किए थे। धीरे धीरे सारे पैसे बैंक में जमा करवा दिए। फिर एक दिन तुम्हारी मां ने ही मुझसे कहा कि यह पैसे तीनों बेटों में बांट देते हैं। हमारा गांव में कोई ज्यादा खर्चा तो है नहीं। उनकी मदद भी हो जाएगी।’

कमला भी अवधेश के पास बैठी सारी बातें सुन रही थीं और बीच बीच में भावुक हो रही थीं। अवधेश ने आगे कहा, ‘हमने तय किया था कि तीनों बेटों को 40-40 हजार रुपये दे देते हैं। सबसे पहले मैं देवेश के पास गया। उसके बाद मुझे सचिन के घर जाना था। फिर विकास के। चार सप्ताह में कई बार बैंक के चक्कर लगाने के बाद ही मैं देवेश के लिए 40 हजार रुपये इकट्ठा कर सका। इसी बीच सचिन का अचानक फोन आ गया। मुझे बहुत अच्छा लगा कि पहली बार उसने फोन कर हमें अपने घर बुलाया। मैं तीन-चार बार बैंक भी गया ताकि सचिन को भी 40 हजार रुपये दे दूं। लेकिन, मेरे पहुंचने से पहले ही बैंक में कैश खत्म हो जाता था। फिर यह सोचा कि अभी सचिन से मिल आते हैं। कुछ दिन बाद बैंक में भीड़ कम होने पर पैसे निकाल कर उसे देने के लिए दोबारा चला जाऊंगा। चेक-वेक काटना हमें आता नहीं है। लेकिन, वहां जाकर हमें पता चला कि सचिन ने हमें क्यों बुलाया था? बहुत ही दुख हुआ यह जानकर कि हमसे पैसे लेने के लिए हमें बुलाया गया और इतनी खातिरदारी की गई। शाबाश…! चलो सही समय पर हमारा अपने बेटों से मोहभंग हो गया है। अरे हमारा सब कुछ तुम लोगों का ही तो है।  पर…’

तीनों बेटे अपना सिर झुकाए बाबू जी की बात बहुत ध्यान से सुन रहे थे। इतना कहने के बाद अवधेश प्रसाद रुक गए। फिर कमला ने कहा, ‘तुम तीनों ही हमारे लाडले हो। हमनें कभी तुम तीनों में पक्षपात नहीं किया। हम चाहते तो यह पैसा बैंक में रहने देते। पर हमनें तुम तीनों के बारे में सोचा कि इन पैसों से तुम लोगों की कुछ मदद हो जाएगी। हम लोग कभी तुम तीनों पर न तो बोझ बने और न ही बनेंगे। जरूरत पडऩे पर ही थोड़े बहुत पैसे मांगे। यह सोच कर कि हमारे बेटे बूढ़े मां-बाप का सहारा होंगे। पर इस नोटबंदी ने हमें तुम तीनों का असली चेहरा दिखा दिया। हमें समझ आ गया कि हमनें तुम तीनों के बारे में जो सोचा था वह गलत था। हमारी आंखें खुल गई हैं। अब तो हमें यह भी यकीन हो गया है कि हमारे मरने पर तुम लोग अपने पैसों से हमारा क्रिया कर्म भी नहीं करोगे। इसलिए अब हमने यह तय किया है कि जो पैसे सचिन व विकास को देने थे वह बैंक में ही जमा रहेंगे ताकि हमारे मरने पर तुम लोग इन पैसों से हमारा क्रिया कर्म कर सको। इसके लिए भी हम तुम लोगों पर बोझ नहीं डालेंगे। अच्छा ही हुआ जो तुम सबसे मोहभंग हो गया। अब चैन से मर तो सकेंगे।’

इतना कह कर कमला चुप हो गई। काफी देर तक कमरे में सन्नाटा पसरा रहा। फिर कुछ देर बाद देवेश उठा और उसने पहले बाबू जी के पैर छुए और फिर मां के। उसने हाथ जोड़कर माफी मांगी। देवेश को माफी मांगता देख सचिन और विकास ने भी माफी मांगी। तीनों बेटों की आंखों में पछतावा तो झलक रहा था। लेकिन, वह कुछ क्षण के लिए ही था। कुछ देर बाद ही विकास सचिन को कोसने लगा कि उसकी वजह से उसे भी 40 हजार का नुकसान हो गया। इसके बाद सचिन व विकास ने देवेश से कहा कि उसे जो 40 हजार मिले हैं उसमें से वह उन दोनों को भी कुछ दे। अवधेश प्रसाद और कमला ने चाहे बाहर से तीनों बेटों को माफ कर दिया था, लेकिन उनकी आंखें खुल चुकी थीं। उन्हें समझ आ गया था कि उनके बेटे उनके पैसों से प्यार करते हैं, उनसे नहीं। अपने बेटों की असलियत उन्हें मालूम हो गई थी। देर से ही सही लेकिन इस सीख ने उनका भविष्य सुरक्षित कर दिया। इसके बाद उन्हें कभी अपने बेटों से पैसे मांगने की जरूरत नहीं पड़ी।

समाप्‍त

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here