चलता है नेट जैसे घोंघे की पीठ पर बैठा राकेट

समाज इन दिनों ऐसी खबरों को लेकर गंभीर चिंता में है कि पढ़ने लिखने वाले बच्‍चे अच्‍छे नतीजों के दबाव में बड़ी संख्‍या में आत्‍महत्‍या कर रहे हैं। लेकिन आने वाले दिनों में यदि आपको ऐसी खबरें भी सुनने को मिलें कि, फलां आदमी ने इंटरनेट की धीमी स्‍पीड से परेशान होकर या बार बार कॉल ड्रॉप होने से खीज कर आत्‍महत्‍या कर ली, तो ताज्‍जुब मत करिएगा।

आज मोबाइल और इंटरनेट ने हमारे रोजमर्रा के जीवन में जैसी और जितनी घुसपैठ कर ली है, उसके चलते इनके बिना एक पल भी जीना दुश्‍वार है। लेकिन जिंदगी का अहम हिस्‍सा बन चुकीं इन सुविधाओं की हालत इतनी खस्‍ता होती जा रही है कि पूछिए मत। टेलीकॉम कंपनियां उपभोक्‍ताओं से अनाप-शनाप पैसा तो वसूल कर रही हैं, पर उन्‍हें बुनियादी सुविधाएं तक मुहैया नहीं करा पा रही हैं। दावे वीडियो कॉल तक के होते हैं लेकिन मोबाइल से सामान्‍य बात तक नहीं हो पा रही। बात की तो छोडि़ए, अव्‍वल तो कॉल ही नहीं लगता और कभी भूले भटके लग भी जाए तो इस बात की खैर मनाते रहना पड़ता है कि जब तक बात पूरी न हो जाए कम से कम कॉल चालू रहे।

यही हाल इंटरनेट का है। 2 जी, 3 जी के बाद अब 4 जी के दावे हो रहे हैं। इंटरनेट की आसमानी सुलतानी स्‍पीड को दिखाने वाले नए नए विज्ञापन रोज टीवी चैनलों पर नुमायां हो रहे हैं, लेकिन असलियत यह है कि जितनी स्‍पीड के दाम लिए जा रहे हैं, उसका दसवां हिस्‍सा भी उपभोक्‍ताओं को नहीं मिल पा रहा। कहने को आपने 3 जी और 4 जी नाम का राकेट तो बना लिया लेकिन बैठा तो वह घोंघे की पीठ पर ही है।

दूरसंचार के मामले में देश की नियामक संस्‍था ट्राई ने मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हाल ही में जो सर्वे किया है वह सारी टेलीकॉम कंपनियों के दावों की पोल खोलने वाला है। सर्वे कहता है कि एयरटेल और वोडाफोन को छोड़कर कोई भी टेलकॉम कंपनी ऐसी नहीं है, जिसके उपभोक्‍ताओं के कॉल ड्रॉप होने की संख्‍या दो फीसदी से कम हो। ट्राई ने कॉल ड्रॉप की जो सीमा तय की है वह अधिकतम दो फीसदी है। लेकिन भोपाल में यह सच सामने आया है कि कुछ कंपनियों के कॉल ड्रॉप की संख्‍या तो 22 प्रतिशत तक है।

ट्राई की ओर से 3 से 5 मई तक भोपाल में मोबाइल नेटवर्क की टेस्टिंग कराई गई थी। इसमें एयरटेल, बीएसएनएल, आइडिया, रिलायंस, टाटा, वोडाफोन और वीडियोकॉन के नेटवर्क का ड्राइव टेस्ट किया गया। इस दौरान पाया गया कि अधिकांश कंपनियों के नेटवर्क की हालत बहुत खराब है। ट्राई ने विभिन्‍न ऑपरेटरों की सेवाओं की गुणवत्‍ता का पता लगाने के लिए शहर से 340 किमी तक के इलाके में अलग-अलग नेटवर्क पर आउटगोइंग और इनकमिंग कॉल करवा कर देखे। इस दौरान उन सारी शिकायतों को जांचा गया जो आमतौर पर उपभोक्‍ता करते रहते हैं। इनमें कॉल कनेक्ट होने, बीच में आवाज गायब हो जाने, कॉल ड्रॉप होने, मूवमेंट के दौरान आउटगोइंग कॉल और इनकमिंग कॉल की क्वालिटी जैसे परीक्षण शामिल थे।

जरा आप भी देख लें ट्राई की रिपोर्ट क्‍या कहती है-

– बीएसएनएल के 3 जी नेटवर्क पर सबसे ज्यादा 22.17 प्रतिशत कॉल ड्रॉप हुए। जबकि 2 जी पर कॉल ड्राप रेट 12.38 प्रतिशत था।
– रिलायंस कम्‍युनिकेशन के 3 जी नेटवर्क पर 16.17 प्रतिशत और 2 जी पर 8.58 प्रतिशत कॉल ड्रॉप हुए। इसके सीडीएमए नेटवर्क का कॉल ड्रॉप रेट 10.65 प्रतिशत था।
– आइडिया 3 जी में कॉल ड्रॉप रेट 14.29 प्रतिशत और 2 जी में 9.85 प्रतिशत पाया गया।
– 2 जी और सीडीएमए नेटवर्क में सभी ऑपरेटर की वॉइस क्वालिटी 95% के बैंचमार्क को पूरा नहीं कर सकी।
निश्चित रूप से यह गंभीर मामला है। यह उपभोक्‍ताओं के साथ सीधी सीधी धोखाधड़ी है, जिसमें निजी ही नहीं सरकारी संस्‍थाएं भी शामिल हैं। जिस समय देश डिजिटल इंडिया की बात कर रहा हो, जिस समय सारी सुविधाएं ऑनलाइन करने की कवायद चल रही हो, ऐसे समय में संचार नेटवर्क मुहैया कराने वाली कंपनियों के परफार्मेंस का यह हाल, देश को आगे ले जाने के बजाय पीछे खींचने वाला है।

मेरा मानना है कि ट्राई की ओर से कराए गए इस परीक्षण पर केंद्र व राज्‍य सरकार को भी ध्‍यान देना चाहिए। अपने नेटवर्क के विस्‍तार को लेकर आए दिन हमारी सड़कों को छलनी करने वाली टेलीकॉम कंपनियों को कठोरतम प्रावधानों के साथ इस बात के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए कि वे क्‍लेम की गई सुविधाएं उसी रूप में उपभोक्‍ताओं को मुहैया कराएं। टॉवर आदि लगाने के लिए उनकी कोई समस्‍या है तो उसकी ठोस नीति बनाकर उसका हल भी तत्‍काल किया जाए। लोग आखिर कब तक किसी भी सेवा का पैसा देने के बाद भी सरेआम ठगे जाते रहेंगे?

और हां, उपभोक्‍ता के नाते लोगों को भी जागरूक होना पड़ेगा। पहला कदम तो यही उठाया जा सकता है कि कोई फोरम बनाकर ट्राई की इस रिपोर्ट के आधार पर ही टेलीकॉम कंपनियों को उपभोक्‍ता अदालत में खड़ा किया जाए। जब ट्राई जैसी संस्‍था कह रही है कि उपभोक्‍ताओं को तय मापदंडों के हिसाब से सुविधा या सेवा नहीं मिल पा रही तो, इससे बड़ा सबूत और क्‍या चाहिए? क्‍या उपभोक्‍ताओं को होने वाले कष्‍ट या असुविधा का हर्जाना इन कंपनियों से नहीं वसूला जाना चाहिए?

गिरीश उपाध्‍याय

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