कैशलेस सिस्‍टम की ओर बढ़ रहे देश की ‘मग्‍गालेस’ ट्रेनें

चोरी हमारे देश की संस्‍कृति है। या यूं कहें कि यह आर्य जाति के खून में ही है। लिहाजा कोई भी ताकत, कितनी भी ताकत लगा ले, हमारे खून से चोरी को अलग नहीं कर सकती। और अब तो हमारी इस अद्वितीय सभ्‍यता ने चोरी के साथ साथ सीनाजोरी को भी अपने खून में शामिल कर लिया है। यदि यह कहें कि हम भारत के लालों के खून का रंग भी इस चोरी की प्रवृत्ति के कारण ही लाल है, तो भी कोई हर्ज नहीं होगा। हमारे यहां तो देवी देवता भी माखन से लेकर दिल तक की चोरी करते रहे हैं।

हमारे देश का यह चोर कल्‍चर आज एक खबर पर नजर पड़ने से याद आया। खबर मध्‍यप्रदेश की संस्‍कारधानी कहे जाने वाले शहर जबलपुर से आई है। खबर के मुताबिक जबलपुर रेल मंडल ने पिछले तीन महीने में विभिन्‍न ट्रेनों के 450 डिब्‍बों के शौचालयों में स्‍टील के 1800 मग लगाए। बाद में पता चला कि इनमें से 11 सौ से अधिक मग चोरी हो गए। यह बेशकीमती सामान सिर्फ जनरल और स्लीपर कोच से ही चोरी नहीं हुआ, बल्कि एसी कोच के टॉयलेट से भी चुराया गया। लगातार मग गायब होने से परेशान रेल अधिकारियों ने रेलवे प्रोटेक्‍शन फोर्स (आरपीएफ) से भी इसकी शिकायत की, लेकिन हमारे हुनरमंदमग्‍गाचोरों के आगे रेलवे के इन हिफाजती सिपाहियों की भी एक न चली। वे अपने कौशल में, कानून के इन रखवालों से भी ज्‍यादा होशियार निकले।

जबलपुर से दिल्‍ली जाने वाली श्रीधाम एक्सप्रेस में तो कमाल ही हो गया। नवंबर महीने में एक दिन रखरखाव के दौरान इस ट्रेन के सभी डिब्‍बों के शौचालयों में यात्रियों की सुविधा के लिए 80 मग लगाए गए। लेकिन अगले दिन जब यह ट्रेन दिल्ली से लौटी, तो उसमें सिर्फ 20 मग बचे थे।

ऐसा नहीं है कि रेलवे ने इन मग्‍गों की सुरक्षा के लिए कोई इंतजाम नहीं किए। उसने करीब 90 हजार रुपए के मग खरीदे तो इतनी ही लागत से इन्‍हें शौचालय में बांधने वाली जंजीरें भी खरीदी गईं। लेकिन वो कहते हैं ना कि ताले तो साहूकारों के लिए होते हैं, चोरों के लिए कौन से ताले?  उसी तर्ज पर भाई लोग यह बंधा बंधाया माल भी अपने साथ बांध ले गए। इन दिनों सरकार ने पूरे देश में स्‍वच्‍छता अभियान चला रखा है। पर ऐसा लगता है कि कुछ लोग इस अभियान में अपने तरीके से सफाई कर, अपना योगदान कर रहे हैं।

शौचालयों में मग्‍गे की अहमियत क्‍या है, यह वही व्‍यक्ति जान सकता है जिसने ट्रेन में शौचालय का इस्‍तेमाल किया हो। मुझे याद है पिछले साल सुरेश प्रभु के रेल बजट में जब बुलेट ट्रेन चलाने और रेलवे स्‍टेशनों पर वाईफाई सुविधा देने जैसी बातें हुई थीं, तो एक न्‍यूज चैनल पर चर्चा के दौरान छत्‍तीसगढ़ के एक व्‍यक्ति ने कहा था कि सरकार ये सब चोचले छोड़कर रेल डिब्‍बों के शौचालयों में रखे मग की जंजीर ही लंबी कर दे तो बड़ी मेहरबानी होगी। यह मामला सोशल मीडिया पर भी खूब उठा था। किसी ने जवाब दिया था कि पब्लिक यदि सुधार जाए तो मग को जंजीर से बांधने की जरूरत ही न पड़े।

मेरे खयाल से असली मुद्दा भी यही है। लोग सुधर जाएं तो पता नहीं किस किस चीज की जरूरत न पड़े। लेकिन सब जानते हैं कि लोगों को यदि सुधरना होता तो देश जाने कब का सुधर गया होता। इधर सरकार टैक्‍स चोरी रोकने के लिए जाने क्‍या क्‍या धत्करम कर रही है, और उधर भाई लोग मग्‍गे चुराने तक से बाज नहीं आ रहे। जिस देश में मग्‍गा चोरी नहीं रोकी जा सकती वहां टैक्‍स चोरी क्‍या खाक रुकेगी। इधर सरकार देश को कैशलेस इकॉनोमी की तरफ ले जाने की बात कर रही है और उधर लोग ट्रेन के शौचालयों को मग्‍गालेस बनाने का अभियान बदस्‍तूर जारी रखे हुए हैं।

अस्‍तु, देश में एक क्‍या, हजार नरेंद्र मोदी भी आ जाएं तो भी हम नहीं सुधरेंगे के राष्‍ट्र लक्ष्‍य को नहीं बदल सकते।

पुछल्‍ला…!!!

ट्रेन के शौचालयों से मग्‍गाचोरी की यह खबर जब मैंने अपने एक मित्र को सुनाई तो उनकी प्रतिक्रिया लाजवाब करने वाली थी। वे बोले- ‘’चलो इस देश में कोई तो अपनी बात और उसूलों पर कायम है?’’

इस पर मैं चौंका तो उन्‍होंने अपनी बात का मतलब साफ करते हुए कहा- ‘’अरे यार, ये मग्‍गाचोर कम से कम अपने कर्म से डिगे तो नहीं हैं ना… ये उस सरकार की तरह तो नहीं हैं जो कहती कुछ और करती कुछ है। चोर तो पहले भी चोरी करते थे, आज भी करते हैं… लेकिन सरकार तो पहले कहती है कि हजार पांच सौ के पुराने नोट 31 मार्च तक जमा कराये जा सकते हैं, पर अब वह उससे मुकर गई, तो बताओ जबान और उसूलों का सच्‍चा कौन?’’

मैं तभी से मौन हूं… 

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