आज कुछ आंकड़ों से खेलने का मन है। यह मन इसलिए बना क्योंकि मध्यप्रदेश में 8 फरवरी को नगरोदय अभियान के तीसरे चरण में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने ऐलान किया है कि अगले पांच सालों में सरकार शहरी विकास के लिए 86 हजार करोड़ रुपये खर्च करेगी। मुख्यमंत्री जी ने जो राशि घोषित की है यह राशि मध्यप्रदेश के पिछले साल के बजट की आधे से भी अधिक बैठती है।
अपनी घोषणा के साथ ही मुख्यमंत्री ने विकास के लिए जनता को सबसे महत्वपूर्ण कड़ी बताते हुए अफसरों से कहा कि जनता न भटके, प्रशासन जनता के द्वार जाए और वार्डों में बैठकर ही उनके विकास का खाका तैयार हो। शहरों को विकास का इंजन बताते हुए वे बोले कि शहर रोजगार के साधन हैं, विकास का दर्पण हैं। हमारा उद्देश्य है कि शहरी आबादी के प्रत्येक पात्र हितग्राही को शासन की योजनाओं का लाभ मिले।
अब सिर्फ राशि के लिहाज से ही मुख्यमंत्री की घोषणा को देखा जाए तो प्रदेश के 51 जिलों में सरकार, आने वाले पांच सालों में प्रत्येक जिले के लिए औसतन 1686 करोड़ रुपये खर्च करने वाली है। चूंकि मुख्यमंत्री ने कहा है कि यह राशि शहरी विकास के लिए खर्च की जाएगी तो माना जाना चाहिए कि यह पैसा सिर्फ नगरीय क्षेत्र के लिए ही है।
प्रदेश में नगरीय निकायों की संख्या 378 है जहां कुल आबादी का 30 प्रतिशत हिस्सा रहता है। इस लिहाज से हर निकाय के लिए पांच साल में औसतन 227.51 करोड़ रुपये खर्च होंगे। यानी हर साल प्रत्येक निकाय में शहरी सुविधाओं के विकास के लिए सरकार ने औसतन 45.50 करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य रखा है।
हो सकता है इतने सारे आंकड़े देखकर आप चकरा गए हों, लेकिन इसमें मेरा कोई दोष नहीं है। यह आंकड़े खुद सरकार ने ही दिए हैं, मैं तो आपको सिर्फ एक बहुत मोटे आंकड़े के हिज्जे अलग अलग करके बता रहा हूं कि उसमें आपके लिए क्या है। इसलिए आप इस आंकड़े को ध्यान में रखिएगा।
ध्यान में रखना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि 86 हजार करोड़ खर्च करने की जो अवधि दी गई है वो पूरे पांच साल है। प्रदेश में अगला विधानसभा चुनाव 2018 में होना है मतलब करीब पौने दो साल बाद। यानी अपने वर्तमान शासनकाल में सरकार इस 86 हजार करोड़ की घोषणा में से 17200 करोड़ सालाना के हिसाब से 34400 करोड़ रुपये खर्च कर डालेगी।
इस घोषणा के राजनीतिक मायने भी समझ लीजिए। चूंकि घोषणा पांच साल में खर्च करने की है इसलिए यह ये भी बताती है कि भाजपा और शिवराजसिंह अगली बार भी अपनी सरकार बनने को लेकर निश्चिंत हैं। ऐसे में सबसे पहले तो कांग्रेस को भूल जाना चाहिए कि अगले चुनाव में भी वह सत्ता में आ सकती है। यदि ऐसा कोई सपना वह देख भी रही हो तो उसे कोशिश करनी चाहिए कि कुछ दूसरे टाइप के सपने देखे।
चूंकि यह बजट का मौसम है। केंद्र सरकार का बजट आ चुका है और मध्यप्रदेश का बजट इसी माह आने वाला है। इसलिये नगरोदय अभियान के तहत हुई घोषणा को जरा बजट के आईने में भी देख लिया जाए। राज्य में नगरीय विकास एवं पर्यावरण विभाग का वर्ष 2015-16 का बजट 6550.95 करोड़ रुपए था,जबकि पिछले साल यानी 2016-17 के बजट में यह राशि बढ़कर 10669.43 करोड़ हो गई थी। ये दोनों आंकड़े मैंने इसलिए बताए क्योंकि 8 फरवरी को जो घोषणा हुई है उसके हिसाब से सरकार शहरी विकास पर प्रतिवर्ष औसतन 17200 करोड़ रुपए खर्च करने वाली है। यानी पूरे नगरीय विकास (पर्यावरण सहित) विभाग के पिछले सालाना बजट से भी 6530.57 करोड़ रुपए अधिक।
इन आंकड़ों के पीछे इतनी मेहनत करने का मकसद सिर्फ यह है कि प्रदेश के शहरी इलाके अब जान लें कि वे बस चमन होने ही वाले हैं। सरकार ने इतना पैसा खर्च करने की ठान ली है तो मानकर चला जाना चाहिए कि ये राशि अवश्य ही अपने मकसद पर खर्च होगी। बस जरूरत इस बात की है कि आप इस खर्च पर नजर रखें। पहली नजर इस बात पर कि जो घोषणा हुई है उतना पैसा आया कि नहीं। और दूसरी इस बात पर कि पैसा आ गया तो वह कायदे से खर्च हो रहा है या नहीं। शहरी खर्च की राशि में से भाई लोग अपने ‘खेत-खलिहान’ के लिए पगडंडियां तो नहीं बना रहे। योजनाओं के क्रियान्वयन में हितग्राहियों का हित देखा जा रहा है या खुद का…
ऐसा मैंने इसलिए कहा क्योंकि नगरोदय अभियान के अंतिम चरण को लेकर प्रदेश के एक अखबार में छपी उज्जैन के कार्यक्रम की रिपोर्ट की शुरुआत ही कुछ यूं हुई है- ‘’बाबू साहब, हमारा नाम प्रधानमंत्री आवास योजना की सूची में हैं। हमें हमारा अधिकार पत्र दे दो। बुजुर्ग लोगों की भीड़ से उठती इस आवाज पर नगर निगम कर्मचारियों ने जवाब दिया, पहले सीएम का भाषण सुनो। फिर लेने आना अपना अधिकार पत्र।‘’
इस खबर की तर्ज पर कहीं ये सारी बातें सिर्फ भाषणबाजी तक सिमट कर न रह जाएं…