बिहार हो या मध्‍यप्रदेश, मेरिट का सिस्‍टम मटियामेट

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ऐसा लगता है कि हमारे यहां मेरिट से कभी कोई काम हो ही नहीं सकता। बाकी बातें छोड़ दीजिए, यहां तो मेरिट की लिस्‍ट ही ठीक से नहीं बन पाती। और जब मेरिट की लिस्‍ट ही ठीक नहीं बनती तो मेरिट से काम होने का प्रश्‍न ही नहीं उठता।

हाल ही में मेरिट का मामला दो राज्‍यों से उठा है। सौभाग्‍य कहें या दुर्भाग्‍य कि इसमें बिहार के साथ साथ हमारे मध्‍यप्रदेश का नाम भी चमका है। वैसे मध्‍यप्रदेश इससे पहले व्‍यापमं मामले में मेरिट को लेकर नाम कमा चुका है। लेकिन पिछल दिनों बिहार ने उसे पछाड़ दिया। वहां स्‍कूली परीक्षा में जो छात्र मेरिट में आए,उन्‍हें यह तक पता नहीं था कि उन्‍होंने किस विषय की परीक्षा दी है। इंटर की परीक्षा में मेरिट में पहले नंबर पर आने वाली छात्रा रूबी राय की दुबारा परीक्षा ली गई और उसके द्वारा पर्चा हल न कर सकने के कारण शक के आधार पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया है। इसके विपरीत मध्‍यप्रदेश में दसवीं कक्षा की एक छात्रा सिदरा खान ने जब अपनी उत्‍तरपुस्तिकाओं के अंकों की पुनर्गणना करवाई तो उसके अंक मेरिट की सूची में छठे नंबर पर आने लायक निकले।

इन दोनों ‘हादसों’ को देखते हुए एक बात समझ में नहीं आती कि जब मेरिट सूची का परीक्षा में किए गए प्रदर्शन से कोई लेना देना ही नहीं है, तो फिर ये मेरिट बनाई ही क्‍यों जाती है। बिहार में एक लड़की ने (संभवत:) परीक्षा न देकर मेरिट में स्‍थान पा लिया और मध्‍यप्रदेश में एक लड़की बहुत बेहतर तरीके से परीक्षा देने के बावजूद मेरिट में जगह नहीं पा सकी। वो तो भला हो मीडिया का, जिसके हो हल्‍ला मचाने पर बिहार और मध्‍यप्रदेश दोनों जगह अलग अलग तरीके से मामले का खुलासा हुआ। बिहार में जहां मेरिट में टॉप करने वाली लड़की जेल में है वहीं मध्‍यप्रदेश की प्रतिभावान बच्‍ची को आस बंधी है कि आधिकारिक मेरिट में अब उसका नाम भी शामिल हो सकेगा।

हमारी शिक्षा व्‍यवस्‍था गधे और घोड़े एक साथ तौल रही है। राजनीति में हार्स ट्रेडिंग करने वाले लोग, शिक्षा के क्षेत्र में टॉड (मेढक) ट्रेडिंग को बढ़ावा दे रहे हैं। जो उछल कर उनके पलड़े में बैठ जाए, वही दूसरों पर भारी पड़ जाता है। यह पलड़ा भी पैसे वालों को ही नसीब होता है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन इस मेरिट पर से ही बच्‍चों का विश्‍वास उठ जाएगा। या यूं कहें कि उठने लगा होगा।

पढ़ाई के बोझ और अच्‍छे नंबर लाने के दबाव के चलते छात्र-छात्राओं द्वारा आत्‍महत्‍या किए जाने के मामले,कुछ सालों से बहुत बढ़ गए हैं। शिक्षा में गलाकाट स्‍पर्धा का माहौल है। इस माहौल ने बच्‍चों में निराशा के साथ साथ अपराध या अनैतिक प्रवृत्ति को भी बढ़ावा दिया है। जो बच्‍चे दिमाग तोड़ मेहनत करने के बावजूद अपेक्षित परिणाम नहीं ला पाते, वे आत्‍महत्‍या जैसे कदमों की ओर मुड़ जाते हैं। और जो बच्‍चे मेहनत करना ही नहीं चाहते वे जोड़तोड़ और जुगाड़ का रास्‍ता अपना लेते हैं। कदम दोनों ही आत्‍मघाती हैं। समस्‍या यह है कि हमारा सिस्‍टम इन दोनों कदमों के लिए समान अवसर उपलब्‍ध करा रहा है।

बिहार में तो इंटर परीक्षा की टॉपर रूबी राय गिरफ्तार हो गईं लेकिन जरा कल्‍पना कीजिए कि मध्‍यप्रदेश की बेटी के साथ यदि न्‍याय नहीं हुआ होता तो क्‍या होता? सिदरा खान को खुद पर भरोसा था और उसने हिम्‍मत के साथ अपनी लड़ाई लड़ते हुए सिस्‍टम को आईना दिखा दिया। सिस्‍टम अंदर से कितना खोखला और सड़ा हुआ है, यह बात सिदरा की लड़ाई ने उजागर कर दी। शुक्र है कि वह जीत गई, मान लीजिए कि वह हार जाती तो…? और हारने के बाद हताशा में कोई गलत कदम उठा लेती तो?  उस स्थिति में परिवार वाले छाती पर पत्‍थर रखकर नियति को स्‍वीकार कर लेते। समाज दो चार आंसू बहाकर आगे चल देता। सरकारें और सिस्‍टम अधिक से अधिक सहानुभूति का मुआवजा देकर अपने कर्तव्‍य की इतिश्री कर लेते। बात वहीं की वहीं रहती।

बिहार और मध्‍यप्रदेश की घटनाओं से ज्‍यादा उनके सबक, समाज और सरकारों के लिए महत्‍वपूर्ण हैं। सिस्‍टम का अपराधियों का मोहरा बन जाना या आपराधिक लापरवाहियां करना दोनों ही अक्षम्‍य हैं। घटना होने पर हम बहुत बहस और तर्क कुतर्क करते हैं, लेकिन घटना बीत जाने के बाद सब कुछ भूलकर अगली घटना का इंतजार करने लगते हैं। स्‍थायी या समाधानकारी उपायों की ओर ध्‍यान कम ही दिया जाता है। बिहार हो या मध्‍यप्रदेश या देश का कोई दूसरा राज्‍य, क्‍या हम परीक्षा प्रणाली को तर्कसंगत और पूरी तरह पारदर्शी बनाने की क्षमता भी नहीं रखते? हम अपनी शिक्षा प्रणाली के दोषों के लिए मैकाले को तो गाली दे देते हैं, लेकिन इस प्रणाली में जो दुर्गुण हमने पैदा किए हैं, उसके लिए हम किसको गाली देंगे। एक साथ बीस उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ने और मंगल पर यान भेजने जैसी महान वैज्ञानिक उपलब्धियों वाला यह देश,एक ठीकठाक परीक्षा तंत्र विकसित न कर पाए तो, हमारी सारी क्षमताओं और योग्‍यताओं का क्‍या मतलब?धिक्‍कार है ऐसा सिस्‍टम जो नाकारा को मेरिट में और प्रतिभावान को कूड़े में डालने के लिए रचा गया हो। लेकिन जहां स्‍वयं के दम पर आगे आने वाली प्रतिभाओं से गुरु दक्षिणा में अंगूठा मांगे जाने की कहानियां चलती हों, वहां इसे आप तरक्‍की ही तो कहेंगे कि, अब गुरु की जगह सिस्‍टम ने ले ली है और वह दक्षिणा में अगूंठा नहीं, या तो बोरी भर रुपया मांगता है या फिर शिष्‍य का सिर।

गिरीश उपाध्‍याय

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