असहिष्‍णुता का सबसे बड़ा जिम्‍मेदार तो मीडिया खुद है

आप सोच रहे होंगे कि कुछ दिनों से ठंडा पड़ा यह ‘असहिष्‍णुता’ का मुद्दा मैं कहां से उठा लाया? तो मैं बता दूं कि वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और इन सबसे ऊपर पत्रकारीय परिस्थितियों में यह ऐसा सदाबहार मुद्दा है, जो लंबे समय तक तो ठंडा होने वाला नहीं है। इस पर आप जब चाहे बात कर सकते हैं और इस पर जब चाहे बात करवाई जा सकती है।

लेकिन आज इस पर बात करने का एक खास मकसद है। आपको याद होगा, दो-तीन दिन पहले मैंने जिक्र किया था कि जिन दिनों भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह भोपाल में थे उन्‍हीं तीन दिनों यानी 18 से 20 अगस्‍त तक मैं ओरछा में था। वहां प्रदेश के चर्चित गैर सरकारी संगठन विकास संवाद ने ‘मीडिया, बच्‍चे और असहिष्‍णुता’ पर राष्‍ट्रीय मीडिया संवाद का आयोजन किया था जिसमें देश भर के मीडियाकारों, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों और नई पीढ़ी के पत्रकारों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिस्‍सेदारी की।

विकास संवाद लंबे समय से यह सालाना आयोजन कर रहा है और ओरछा का संवाद इस कड़ी में 11वां राष्‍ट्रीय संवाद था। इसमें असहिष्‍णुता को केंद्र में रखकर कई दृष्टिकोण से बातचीत हुई और सहमति असहमति के स्‍वर भी उभरे। पूरे संवाद के दौरान मुझे मेरी इस धारणा की ही पुष्टि होती दिखाई दी कि वर्तमान परिदृश्‍य में जिसे सबसे अधिक सहिष्‍णु होने की जरूरत है वह मीडिया ही है। तीन दिन चला यह विमर्श मीडिया से जुड़े लोगों के मानस को समझने में काफी मददगार रहा। यह भी समझ में आया कि आज यदि मीडिया टारगेट बना हुआ है तो उसके कारण क्‍या हैं?

आने वाले दो तीन दिनों में हम ‘ओरछा विमर्श’ के बहाने वर्तमान परिस्थितियों पर बात करेंगे। संभव है इस दौरान कई ऐसे सवाल भी उठें जिन पर मिलने वाली प्रतिक्रियाओं से मसले को और गहराई से समझने में मदद मिल सके। गुजारिश सिर्फ इतनी है कि इस श्रृंखला को पूरा पढ़े बिना किसी निष्‍कर्ष पर मत पहुंचिएगा।

आयोजन के पहले दिन बीज वक्‍तव्‍य देते हुए चर्चित वेबसाइट द वायर के संस्‍थापक और संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ने कहा कि मीडिया के हालात देश में चिंता पैदा करने वाले हैं। जिस तरह से वह समाज में नकारात्‍मकता फैला रहा है,उस पर बात करना बहुत जरूरी हो गया है। असहिष्‍णुता का मूल तत्‍व सियासत है लेकिन मीडिया भी उसका एक हिस्‍सा बन गया है। लोक-समाज का सोचे समझे तरीके से सांप्रदायीकरण किया जा रहा है। एक तरफ राजनेता मीडिया को इस्‍तेमाल कर रहे हैं दूसरी तरफ मीडिया की बहसें राजनीतिक एजेंडा सेट करने में लगी हैं।

सिद्धार्थ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पूर्व उपराष्‍ट्रपति हामिद अंसारी तक और लव जिहाद से लेकर गोरक्षकों तक कई उदाहरण देते हुए कहा कि हर मामले में मीडिया की भूमिका नकारात्‍मक है। वह या तो सत्‍तारूढ़ दल को खुश करने के लिए खबरें और बहसें चला रहा है या फिर मुनाफा कमाने के लिए। कोई मुद्दा न हो तो भी कहीं से चार लोगों को उठाकर लाते हैं और टीवी पर बिठाकर उसे मुद्दा बनवा देते हैं। जब गोरखपुर में बच्‍चे मर रहे होते हैं तो टीवी पर वंदे मातरम को लेकर बहस चल रही होती है। यह पत्रकारिता नहीं है।

सिद्धार्थ का कहना था कि आज किसी पर भी देशद्रोह का चार्ज बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है। हम मीडिया और राजनीति को अलग नहीं कर सकते, लेकिन आज मीडिया पर जितना दबाव है उतना कभी नहीं रहा। मीडिया का एक हिस्‍सा असहिष्‍णुता को बढ़ावा दे रहा है और जो ऐसा नहीं कर रहे उन पर भारी दबाव बनाया जा रहा है। विवेकपूर्ण या असहमति की बात करना संभव नहीं रह गया है। सवाल पूछने के अधिकार पर हमला हो रहा है।

जाने माने पत्रकार और टी.वी. टिप्‍पणीकार विनोद शर्मा ने अपनी पाकिस्‍तान पदस्‍थापना के दौर के अनुभव सुनाते हुए कहा कि हमारी सहनशीलता और हमारा समावेशी होना हमारी सॉफ्ट पॉवर है जिसे धीरे धीरे क्रूड पॉवर में तब्‍दील किया जा रहा है। किसी भी मुल्‍क का सच, सत्‍यों का समावेश होता है, एक सच किसी दूसरे सच को झुठलाने की कोशिश नहीं करता, लेकिन आज ऐसा किया जा रहा है। पाकिस्‍तान की हमेशा से कोशिश रही है कि हम भी उसके जैसे हो जाएं, लेकिन भारत कुछ भी हो सकता है, पाकिस्‍तान नहीं हो सकता, यह बात हमें समझनी होगी।

उन्‍होंने कहा कि मुझे बार बार यह कहने की जरूरत क्‍यों होनी चाहिए कि मैं इस देश से प्‍यार करता हूं। मैं यदि अपनी मां को प्‍यार करता हूं तो करता हूं, उससे यह बात बारबार तो नहीं कहता। लेकिन आज सार्वजनिक विमर्श (पब्लिक डिस्‍कोर्स) का तरीका ही बदला जा रहा है। लोकतंत्र में स्‍थायी बहुमत बनाने की कोशिश हो रही है। हमें यदि आतंक को खत्‍म करना है तो उसकी विचारधारा को खत्‍म करना होगा। हम हिन्‍दू और मुस्लिम को दो अलग-अलग राष्‍ट्र की अवधारणा के नजरिये से देखते हुए भारतीय समाज में सौहार्द स्‍थापित नहीं कर सकते। हमें मुस्लिमों को अल्‍पसंख्‍यकों के तौर पर नहीं बल्कि देश के दूसरे बड़े बहुसंख्‍यक समुदाय के रूप में स्‍वीकार करना होगा। भारत में हिन्‍दू यदि बहुसंख्‍यक हैं तो मुसलमान दूसरे बड़े बहुसंख्‍यक।

(जारी)

 

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