रवि भोई
आजकल छत्तीसगढ़ के एक कैबिनेट मंत्री और एक मेयर के बीच मतभेद की खबर राजधानी के राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय है। दोनों को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का विश्वास पात्र और करीबी कहा जाता है। कुछ लोग तो मंत्री और मेयर को मुख्यमंत्री के लेफ्ट और राइट हैण्ड मानते हैं। कहते हैं मेयर को सत्ता में ज्यादा भाव मिलने से मंत्री जी खफा हैं। वहीं कांग्रेस के बड़े नेता मेयर साहब को मंत्री जी के विकल्प के रूप में भी देखने लगे हैं, मंत्री जी के कुछ विभागों में मेयर के रिश्तेदार और करीबियों की दखलंदाजी की बातें भी सामने आ रही हैं। चर्चा है कि यह भी मंत्री जी को नागवार लग रहा है। इसे संयोग ही कहा जायेगा कि दोनों छात्र राजनीति से सक्रिय राजनीति में आए हैं और दोनों ने ही एक चर्चित नेता से राजनीतिक गुर सीखे और फिर उनसे नाता तोड़ लिया।
यह अलग बात है कि मंत्री जी 1980 में छात्र राजनीति में आ गए थे और मेयर साहब ने 2000 में कांग्रेस की छात्र इकाई में कदम रखा। मंत्री जी जिस शहर में रहते हैं, वहां से विधायकी की जोर-आजमाइश में फेल हो गए तो दूसरे जिले की ओर रुख कर लिया। मंत्री जी ने शहर से दूर के जिले के अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में जीत-हार का स्वाद चखते 2018 में सर्वाधिक वोटों से जीतने का रिकार्ड अपने नाम दर्ज कर लिया, वही मेयर साहब को विधायकी का मौका अब तक नहीं मिला है, लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव में अवसर मिलने की संभावना है, क्योंकि वे जिस शहर के मेयर हैं, वहां तो कांग्रेस मेयर को विधानसभा या लोकसभा का उम्मीदवार बना ही देती है।
काजल की कोठरी का प्रेमी नेता
कहते हैं राज्य नागरिक आपूर्ति निगम में हर साल छोटी-मोटी गड़बड़ियां तो होती रहती हैं, जिस पर लोग ध्यान भी नहीं देते, लेकिन 2005 का कुनकुरी चावल घोटाला और 2015 में सामने आए 36 हजार करोड़ के घोटाले ने तो लोगों की आँखें फाड़ कर रख दी। चर्चित नान घोटाले ने सत्ता के पहिये को डगमगा दिया था, जो अब भी जिन्न की तरह जब चाहे प्रकट होता रहता है। वैसे छत्तीसगढ़ गठन के साथ ही नागरिक आपूर्ति निगम पर दाग लगने शुरू हो गए थे। इसके साथ ही निगम का विवादों से चोली-दामन का साथ हो गया।
अजीत जोगी के मुख्यमंत्रित्व काल में कस्टम मिलिंग के लिए प्रति क्विंटल दस रुपये वसूली की खबर ने तब राजनीति गरमा दी थी। निगम का गड़बड़ियों से गहरा नाता होने के चलते इसे काजल की कोठरी कहा जाने लगा है, पर कांग्रेस के एक नेता का आपूर्ति निगम से अटूट प्रेम चर्चा का विषय है। मौका मिलते ही नेताजी ने निगम को दिल से लगा लिया और पार्टी के बड़े नेताओं से निगम की सेवा का उपहार ले लिया। सेवा के बहाने नेता जी कमीशन के नए खेल में लग गए हैं और पार्टी फंड का हवाला दे रहे हैं। अजीत जोगी के जमाने में नेताजी का नाम कस्टम मिलिंग की वसूली में खूब सुर्ख़ियों में आया था। राईस मिल के इलाके से वास्ता रखने वाले नेताजी को कोष एकत्र करने में माहिर माना जाता है। नेता जी 2018 का विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते थे, पर दांव फिट नहीं बैठा, लेकिन रास्ता रोकने वाले को सबक सिखा ही दिया।
शीर्ष पुलिस अफसर ही अधर में
पुलिस का काम कानून-व्यवस्था कायम करना और आम लोगों को अत्याचार और प्रताड़ना से बचाना होता है, लेकिन पुलिस के शीर्ष अफसर ही न्याय की बाट जोहते रह जाएं तो आम जनता के साथ कैसा न्याय करेंगे, इसका अंदाजा लगा सकते हैं। छत्तीसगढ़ में पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के तीन पद रिक्त हैं और प्रमोशन के पात्र अधिकारी भी हैं, लेकिन उनके प्रमोशन में बड़ा पेंच फंस गया है। डीजीपी के तीन रिक्त पद के लिए इस साल मार्च में विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) की बैठक हो गई थी, लेकिन डीपीसी के तीन में से एक सदस्य ने बैठक के कार्यवाही विवरण पर दस्तखत करने से इंकार कर दिया, जिसके चलते मामला अधर में लटक गया है।
प्रमोशन की कतार में 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी संजय पिल्लै, आर.के.विज, मुकेश गुप्ता और 1989 बैच के अशोक जुनेजा हैं। कायदे से 30 साल की सेवा के बाद इन अफसरों को प्रमोशन मिल जाना चाहिए। भाजपा की रमन सरकार ने 2018 में चुनाव अधिसूचना जारी होने के कुछ घंटे पहले पिल्लै, विज और गुप्ता को प्रमोट करने का आदेश जारी कर दिया था, लेकिन कांग्रेस की सरकार ने प्रमोशन को गलत मानते हुए तीनों को रिवर्ट कर दिया। इसमें मुकेश गुप्ता अभी निलंबित हैं और उनके खिलाफ कई जाँच चल रही है। मुकेश गुप्ता 2022 में रिटायर होंगे।
कहते हैं मुकेश गुप्ता को बहाली और जाँच के निपटारे के बाद ही प्रमोट किया जा सकता है। पदोन्नति समिति उनके नाम पर विचार कर लिफाफा सील पैक कर देती और उनसे जूनियर को लाभ मिल जाता। इस प्रक्रिया के कारण 1989 बैच के आईपीएस अशोक जुनेजा को फायदा हो जाता। कहते हैं भारत सरकार ने डीपीसी की मंजूरी दी और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने डीपीसी के निर्देश दे दिए थे। डीपीसी के एक दिन पहले समिति के सदस्यों को मुकेश गुप्ता के वकील की तरफ से पदोन्नति को गलत ठहराते नोटिस मिल गया।
नोटिस के बाद भी बैठक तो हुई, लेकिन समिति के एक सदस्य ने नोटिस का हवाला देकर कार्यवाही विवरण पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया और तीनों अफसर पदोन्नति से वंचित रह गए। छत्तीसगढ़ में आईएएस अफसर तो समय से पहले प्रमोशन पा जाते हैं, लेकिन ये तीन आईपीएस निर्धारित सेवा अवधि पूरी कर लेने के बाद भी पदोन्नति के इंतजार में हैं। अब देखते हैं इन तीनों की किस्मत कब चमकती है।
अवकाश पर जाएंगी निहारिका बारीक़
1997 बैच की आईएएस अफसर और छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य सचिव निहारिका बारीक़ सिंह एक सितंबर 2020 से दो साल के लिए अवकाश पर जा रही हैं। निहारिका ने चाइल्ड केयर लीव ली है, इस दौरान वे जर्मनी की राजधानी बर्लिन में रहेंगी। निहारिका बारीक सिंह के पति 1997 बैच के आईपीएस अधिकारी जयदीप सिंह को विदेश मंत्रालय ने बर्लिन स्थित भारतीय दूतावास में मंत्री (कार्मिक) के पद पर पदस्थ किया है। जयदीप सिंह की पदस्थापना तमिलनाडु कैडर के 1990 बैच के आईपीएस टी.वी. रविचंद्रन के स्थान पर हुई है।
जयदीप सिंह छत्तीसगढ़ कैडर के आईपीएस हैं। वे अभी तक छत्तीसगढ़ स्थित आईबी दफ्तर में पदस्थ थे। जयदीप सिंह ने नया कार्यभार संभाल लिया है। निहारिका बारीक़ को भाजपा के डॉ. रमन सिंह सरकार ने स्वास्थ्य सचिव बनाया था। भूपेश बघेल की सरकार ने पौने दो साल के कार्यकाल में मंत्रालय में तैनात कई आईएएस अफसरों की पोस्टिंग बदली, लेकिन निहारिका बारीक़ का स्वास्थ्य विभाग यथावत रहा। कहा जा रहा है निहारिका बारीक़ के जाने के बाद स्वास्थ्य विभाग का प्रभार रेणु पिल्लै को दे दिया जायेगा। रेणु पिल्लै अभी अपर मुख्य सचिव चिकित्सा शिक्षा हैं, जो स्वास्थ्य विभाग का हिस्सा है।
एजी की नियुक्ति ने चौंकाया
अतिरिक्त और उप महाधिवक्ता की नियुक्ति रूटीन प्रक्रिया है। छत्तीसगढ़ सरकार ने कई अतिरिक्त और उप महाधिवक्ता नियुक्त करके रखे भी हैं, लेकिन 13 अगस्त को अतिरिक्त महाधिवक्ता के रूप में अर्जुन विनोद बोबडे की नियुक्ति ने सबको चौंकाया। अर्जुन बोबडे नई दिल्ली में छत्तीसगढ़ सरकार के वकील होंगे। कहते हैं उनकी नियुक्ति में नागपुर लिंक की भूमिका अहम रही। नागपुर लिंक कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ में सेवाएं दे चुके हैं और यहाँ उनकी नसें दबी होने की ख़बरें आ रही हैं। भाजपा की रमन सरकार ने नागपुर के जुगल किशोर गिल्डा को जनवरी 2014 में महाधिवक्ता बनाया था। वे इस पद पर करीब चार साल रहे। तब विपक्ष में रही कांग्रेस इसको लेकर सरकार पर कटाक्ष करती थी। वैसे श्री गिल्डा 2006 से सरकार से जुड़ गए थे, तब उन्हें अतिरिक्त महाधिवक्ता बनाया गया था। इसके बाद महाधिवक्ता बने।
(लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं।)