‘गुड’ को ‘गब्‍बर’ में बदलते बाजार के मुनाफाखोर

ऐसा लगता है कि हम फिर से 70 के दशक की हिन्‍दी फिल्‍मों के कथानक की ओर लौट रहे हैं। उन फिल्‍मों में खलनायकों का मुख्‍य काम ही मुनाफाखोरी, कालाबजारी, जमाखोरी, मिलावटखोरी आदि हुआ करता था। ज्‍यादतर सेठ किस्‍म के लोग खाद्यान्‍न के व्‍यापारी होते थे,जिनके गोदामों में नायक छापामार शैली में घुस कर सेठ के गुर्गों से दो-दो हाथ करता था।

अब यह शोध का विषय है कि चालीस-पैंतालिस साल बाद हमने खलनायकी के मामलों में तरक्‍की की है या फिर हम फिर से उसी दौर की ओर लौट रहे हैं। इस सारे प्रसंग में चौंकाने वाली बात यह है कि यह सब जीएसटी जैसे ‘गुड एंड सिम्‍पल टैक्‍स (यह नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दिया हुआ है) के बावजूद हो रहा है। राहुल गांधी ने इसे गब्‍बर सिंह टैक्‍स की संज्ञा दी है और इस मायने में वे प्रधानमंत्री के व्‍याकरण से ज्‍यादा मारक साबित हुए हैं।

मुनाफाखोरी जैसा शब्‍द मुझे इसलिए याद आया क्‍योंकि 16 नवंबर को मोदी मंत्रिमंडल ने मुनाफाखोरी रोकने के लिए नेशनल एंटी-प्रॉफिटियरिंग अथॉरिटी को मंजूरी दी। यह अथॉरिटी जीएसटी ढांचे के अंतर्गत ही बनाई जाएगी। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि उपभोक्‍ताओं को नई टैक्स व्यवस्था का फायदा मिल रहा है या नहीं।

ध्‍यान देने वाली बात यह है कि जीएसटी के अंतर्गत 200 से ज्यादा आइटम्स पर टैक्स रेट घटाने का निर्णय लागू होने के एक दिन बादमंत्रिमंडल ने इस अथॉरिटी को मंजूरी दी है। सरकार चाहती है कि कम की गई टैक्स दरों का फायदा उपभोक्‍ताओं को मिले। ऐसा न होने की स्थिति में उपभोक्‍ता इस अथॉरिटी के पास शिकायत कर सकेंगे।

चूंकि देश इन दिनों पद्मावतियों और रविशंकरों में व्‍यस्‍त है और जो लोग इनमें व्‍यस्‍त नहीं हैं वे गुजरात में बिजी हैं, इसलिए इस अथॉरिटी पर ज्‍यादा बात नहीं हुई। इसके तहत सरकार ने प्रावधान किया है कि जो कंपनियां या व्यापारी घटी हुई टैक्‍स दरों का फायदा उपभोक्‍ताओं को नहीं देंगे, उन्‍हें गलत तरीके से कमाए गए मुनाफे की राशि 18 फीसदी ब्‍याज के साथ उपभोक्‍ताओं को लौटानी होगी।

पांच सदस्‍यों वाली यह अथॉरिटी, कंपनियों को राशि लौटाने का निर्देश दे सकेगी और उनसे कह सकेगी वे अपने माल की कीमत घटाएं। जिन मामलों में उपभोक्‍ता की पहचान नहीं हो सकेगी वहां कंपनियों अथवा व्‍यापारियों से वसूली जाने वाली राशि उपभोक्‍ता कल्‍याण कोश में जमा कराई जाएगी। नियमों के गंभीर दुरुपयोग के मामले में अथॉरिटी, दोषियों पर जुर्माना लगाने के साथ ही उनका जीएसटी रजिस्ट्रेशन भी कैंसलकर सकती है।

दरअसल इस अथॉरिटी की जरूरत इसलिए महसूस हुई है क्‍योंकि जीएसटी लागू होने के बाद लगातार ये शिकायतें आ रही हैं कि कंपनियां और व्‍यापारी उपभोक्‍ताओं को कर की घटी दरों का लाभ नहीं देकर भारी मुनाफाखोरी कर रहे हैं। जबकि जीएसटी कौंसिल ने पिछले सप्ताह200 से ज्यादा वस्‍तुओं पर टैक्स रेट घटाने का निर्णय किया था। इसमें एसी और नॉन-एसी रेस्टोरेंट्स का टैक्‍स तो 18 फीसदी से घटाकर 5फीसदी कर दिया गया था। लेकिन रेस्‍टारेंटों ने इन घटी दरों का लाभ उपभोक्‍ताओं की जेब तक नहीं आने दिया है।

इस लिहाज से देखें तो, लागू होने के चंद महीनों में ही जीएसटी जैसा ‘गुड एंड सिंपल टैक्‍स’ जबरदस्‍त मुनाफाखोरी का जरिया बन गया है।सबसे बड़ी चालाकी जो कंपिनयों द्वारा की जा रही है वो यह कि उन्‍होंने उपभोक्‍ताओं को लाभ न देते हुए वस्‍तुओं की मूल कीमतें ही बढ़ा दी हैं।

शुक्रवार को ही टाइम्‍स ऑफ इंडिया ने एक खबर दी कि बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों मैक डोनाल्‍ड और डोमिनो पिज्‍जा आदि ने अपने उत्‍पादों की मूल कीमत में ही इजाफा कर दिया है। एक और फूड चेन केएफसी भी एकाध सप्‍ताह के भीतर ऐसा ही कदम उठाने जा रही है।

उपभोक्‍ताओं को कैसे चपत लग रही है इसे जरा यूं समझिए। एक प्रसिद्ध ब्रांड के कॉफी कप पर कर की दर 28 रुपए से घटकर 9 रुपए हो गई है। लेकिन इस ब्रांड ने अपनी कॉफी की कीमत 155 से बढ़ाकर 170 रुपए कर दी है। ऐसे में उपभोक्‍ता को कर रियायत के कारण जो 20 रुपए का लाभ मिलना था वह घटकर चार रुपए ही रह गया है। यानी 16 रुपए उसे जेब से अतिरिक्‍त देना पड़ रहे हैं।

कई टीवी चैनलों ने अपने स्टिंग ऑपरेशन में पाया है कि कंपनियां और व्‍यापारी उपभोक्‍ताओं को कर छूट का उसका जायज हक नहीं दे रहे हैं। ज्‍यादातर मामलों में उपभोक्‍ता खुद भी मूल कीमत और कर की दर या कर की छूट आदि का पूरा ब्‍योरा लेने में रुचि नहीं रखता इसलिए वह और अधिक ठगा जा रहा है।

हालांकि सरकार ने अपनी तरफ से दिशा निर्देश जरूर जारी किए हैं और नेशनल एंटी-प्रॉफिटियरिंग अथॉरिटी का गठन भी वह इसी उद्देश्‍य से करने जा रही है, लेकिन जो कंपनियां मूल या आधार कीमत को बढ़ाकर ग्राहकों को चपत लगा रही हैं उनका क्‍या? और इतिहास गवाह है कि बाजार ने एक बार जब कीमत बढ़ा दी तो फिर बढ़ा दी। वह उसे कम नहीं करता।

जो लोग इस मामले में थोड़ा बहुत समझते हैं वे भी माल की कीमत और उस पर कर की दर की तरफ ही ध्‍यान दे रहे हैं। एक बड़ी धोखाधड़ी पैक्‍ड वस्‍तुओं के वजन या आकार प्रकार में कमी करके की जा रही है। यानी मान लीजिए कि पहले एक कप में यदि 50 मिलीलीटर कॉफी आती थी या टूथपेस्‍ट की मीडियम साइज की ट्यूब में 100 ग्राम पेस्‍ट होता था तो उन्‍हें क्रमश: घटाकर 40 मिलीलीटर और 80 ग्राम कर दिया जा रहा है।

आपने भी देखा होगा कि पहले एक किलो और आधा किलो यानी 1000 ग्राम और 500 ग्राम की वस्‍तुओं के स्‍टैंडर्ड पैक आया करते थे लेकिन अब यह स्‍टैंडर्ड बदलकर 900 ग्राम और 400 ग्राम हो गया है। इसी तरह बिस्‍कुट का कोई भी ब्रांड आप उठा लीजिए और अपनी याददाश्‍त में दर्ज दो चार साल पहले के बिस्‍कुट के आकार प्रकार को याद कीजिए, आप पाएंगे कि पैक और बाहरी रंगरोगन सबकुछ पहले जैसा है, बस बिस्‍कुट का आकार छोटा हो गया है।

यानी बाजार भी हमारी अर्थव्‍यवस्‍था जैसा ही बर्ताव कर रहा है। उसका बाहरी रंगरोगन या पैकिंग भले ही आकर्षक हो लेकिन भीतर जाने क्‍या क्‍या धोखे भरे हुए हैं।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here