हार्दिक पटेल की सीडी से उठते राज-नैतिकता के सवाल?

‘’24 साल का एक युवक अपनी युवती मित्र की सहमति से यौन संबंध बना रहा है, इसमें स्‍कैंडल क्‍या है? कांड तो यह है कि आप चुपके से रिकार्ड करो।‘’

मध्‍यप्रदेश के पूर्व मंत्री और इन दिनों ग्‍वालियर के नजदीक स्थि‍त आईटीएम यूनिवर्सिटी के चेयरमैन और कुलाधिपति रमाशंकर सिंह ने अपनी फेसबुक वॉल पर जब हार्दिक पटेल की सीडी वाले मामले को लेकर यह टिप्‍पणी डाली तो कई सवाल जेहन में उभर आए।

रमाशंकर सिंह की टिप्‍पणी पर कई लोगों ने प्रतिक्रियाएं दीं। उन्‍हीं में से एक अरविंद पांडे ने लिखा- ‘’आप की जय हो। मोदी विरोध में सब जायज है। तीनों युवा नेता सेक्स को निजी व मौलिक अधिकार मानते हैं। ऐसे क्रांतिकारी नेताओ से युवा जन सीख लें…।‘’

दरअसल इन दिनों यह घमासान केवल रमाशंकर सिंह की वॉल पर ही नहीं फेसबुक की कई वॉल्‍स पर चल रहा है। जब से हार्दिक पटेल की कथित सेक्‍स स्‍कैण्‍डल वाली सीडी आई है उसके राजनीतिक और चुनावी फलितार्थों को लेकर बहुत सारी बातें कही सुनी जा रही हैं।

वैसे भारतीय राजनीति में समय-समय पर अलग-अलग उद्देश्‍यों से ऐसी सीडी का आना अब कोई नई बात नहीं रही है। थोड़ा इतिहास पर नजर डालें तो पाएंगे कि पिछले कुछ सालों के दौरान ऐसी कई सीडी ने देश की राजनीति और समाज को मथा है। पिछले करीब डेढ़ दशक में सबसे चर्चित और राजनीतिक दृष्टि से सबसे घातक सीडी कांड खुद भाजपा में ही हुआ था।

आपको याद होगा 2005 में राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के वरिष्‍ठ कार्यकर्ता और भारतीय जनता पार्टी के संगठन महामंत्री संजय जोशी की एक सीडी चर्चा में आई थी। उस समय संजय जोशी भाजपा के उभरते हुए ताकतवर नेता के रूप में पहचान बना रहे थे। उस सीडी ने, जिसकी बाद में कोई पुष्टि नहीं हो सकी, संजय जोशी का कॅरियर ही बरबाद कर दिया था।

उसके बाद कांग्रेस के दिग्‍गज नेता रहे नारायणदत्‍त तिवारी की भी एक सीडी आई। यह उस समय की बताई गई जब वे आंध्रप्रदेश के राज्‍यपाल थे। इस पर बहुत बवाल हुआ और तिवारी जी को पद से इस्‍तीफा देना पड़ा।

हमारा मध्‍यप्रदेश भी इस सीडी कांड से अछूता नहीं रहा है। प्रदेश के तत्‍कालीन वित्‍त मंत्री राघवजी भाई की एक सीडी ने प्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया था। प्रदेश के दो प्रमुख दलों कांग्रेस और भाजपा में इसे लेकर लंबा घमासान चला था। बाद में भाजपा के ही एक कार्यकर्ता ने खुलासा किया था कि राजनीति में ‘शुचिता’ लाने के लिए उन्‍होंने इस सीडी को सार्वजनि‍क किया है।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ भाजपा के ही नेता ऐसी सीडी का निशाना बने हों। 2012 में वरिष्‍ठ वकील और कांग्रेस के प्रवक्‍ता अभिषेक मनु सिंघवी कथित रूप से ऐसी ही एक सीडी की चपेट में आ गए थे। सीडी में दिखने वाली महिला भी कानून के पेशे से ही संबंधित बताई गई थी। इस घटना के बाद सिंघवी ने संसद की स्थायी समिति से इस्तीफा दे दिया था।

राजस्थान में कांग्रेस शासन के दौरान मंत्री रहे महिपाल सिंह मदेरणा भी सीडी कांड में फंसे थे। भंवरी देवी नामक एक महिला के साथ सार्वजनिक हुई उनकी सीडी ने राजस्‍थान की राजनीति को हिला दिया था। बाद में मामले ने उस समय गंभीर मोड़ ले लिया था जब भंवरी देवी की हत्या हो गई थी और महिपाल मदेरणा को उस मामले में आरोपी बनाया गया था।

केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के पुत्र और भाजपा सांसद वरुण गांधी भी सीडी कांड में फंस चुके हैं। उत्‍तरप्रदेश चुनाव से पहले जब वरुण को वहां के मुख्‍यमंत्री पद का दावेदार समझा जा रहा था उसी समय उनका एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वे कथित रूप से एक महिला के साथ थे।

सीडी कांडों को एक तरह से दलनिरपेक्ष कहा जा सकता है। पिछले दिनों दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार के मंत्री रहे संदीप कुमार की सीडी सुर्खियों में आई थी। उस सीडी को लेकर एक महिला ने आरोप लगाया था कि वह संदीप कुमार के पास राशन कार्ड बनवाने के लिए गई थी और उन्‍होंने मौके का फायदा उठाते हुए उसके साथ गलत काम किया।

एक और ताजा मामला छत्तीसगढ़ भाजपा के कद्दावर नेता और वहां के कैबिनेट मंत्री राजेश मूणत का है। कथित तौर पर उनकी भी एक सीडी सार्वजनिक हुई है और इस सिलसिले में राज्‍य की पुलिस ने बीबीसी के पूर्व पत्रकार विनोद वर्मा को उनके घर से गिरफ्तार किया था। मूणत का आरोप था कि वर्मा उन्‍हें ब्‍लैकमेल कर रहे थे।

मध्‍यप्रदेश के एक वर्तमान मंत्री की भी ऐसी ही सीडी की पिछले दिनों बड़ी चर्चा थी। हालांकि बाद में वह मामला दब गया। उस वीडियो क्लिप के पीछे भी पार्टी के ही एक गुट का हाथ बताया गया था।

इन सारे मामलों में व्‍यक्ति और घटना की पृष्‍ठभूमि भले ही अलग अलग हो लेकिन इनमें एक समानता नजर आती है कि सभी के पीछे ब्‍लैकमेलिंग ही उद्देश्‍य रहा है। और सीडी भी अपने ही लोगों या प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल द्वारा तैयार करवाई गई है।

बड़ा सवाल यह है कि भले ही यह काम राजनीतिक रूप से किसी को निपटाने अथवा उससे बदला निकालने के लिए किया गया हो, लेकिन यदि घटना सही है तो क्‍या उसे जायज ठहराया जाना चाहिए। क्‍या हम राजनीति को शुचिता और नैतिकता के दायरे से परे रखना चाहते हैं। ठीक है कि यह ‘लिव इन रिलेशनशिप’ का जमाना है, लेकिन उसमें भी एक जवाबदेही तो होती ही है, वह रिश्‍ता समाज की जानकारी में होता है।

हार्दिक पटेल ने हालांकि अपने बारे में आई सीडी को नकारने की कोशिश की है। इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि उनके खिलाफ यह साजिश चुनावी नफे नुकसान को लेकर ही रची गई है। लेकिन सवाल यह भी है कि कोई व्‍यक्ति यदि इस तरह से दैहिक संबंध बनाए या बनाने का आदी हो तो क्‍या उसे नेतृत्‍व सौंपा जा सकता है? और क्‍या व्‍यक्ति के निजी जीवन को उसके सार्वजनिक जीवन से अलग रखा जाना चाहिए?

 

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