नहीं चली भाजपा की गोटियां, वकील विवेक तन्‍खा की जीत

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भोपाल, जून 2016/ मध्‍यप्रदेश में पिछले दस सालों से भी अधिक समय से ज्‍यादातर चुनाव जीतती आई भारतीय जनता पार्टी को राज्‍यसभा चुनाव में तीसरी सीट के लिए मुंह की खानी पड़ी है। निर्दलीय के रूप में खड़े हुए भाजपा के प्रदेश महामंत्री विनोद गोटिया को हराकर कांग्रेस के प्रत्‍याशी और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्‍ठ वकील विवेक तन्‍खा ने आखिरकार मोर्चा फतह कर ही लिया। तन्‍खा के अलावा भाजपा के दो प्रतिनिधि अनिल माधव दवे और वरिष्‍ठ पत्रकार एम.जे. अकबर भी राज्‍यसभा के लिए चुन लिए गए हैं।

भारी उठापटक और जोड़तोड़ के चलते मध्‍यप्रदेश से राज्‍यसभा की तीसरी सीट का चुनाव बहुत हाई प्रोफाइल हो गया था। दोनों ही दलों ने इसके लिए हर हथकंडा अपनाया। भाजपा ने अंतिम समय में साम,दाम, दंड, भेद की सारी कसरतें कर लीं लेकिन बाजी उसके हाथ नहीं आई। दरअसल इस बार किस्‍मत ने भाजपा का साथ ही नहीं दिया। भाजपा ने विनोद गोटिया के लिए जिस जिस गोटी पर दांव चला, उसकी चाल फेल होती गई। मतदान में एम.जे.अकबर व अनिल माधव दवे को प्रथम वरीयता के 58-58 वोट मिले जबकि विवेक तन्‍खा को प्रथम वरीयता के सर्वाधिक 62 वोट मिले। भाजपा के निर्दलीय प्रत्‍याशी विनोद गोटिया के खाते में 50 वोट ही आए।

सबसे पहले बसपा ने कांग्रेस को समर्थन का ऐलान कर उसकी राह आसान की। उसके बाद हाईकोर्ट द्वारा दुष्‍कर्म के मामले में जेल में बंद कांग्रेस के एक विधायक रमेश पटेल को जमानत देने और गंभीर रूप से बीमार एवं मुंबई अस्‍पताल में भरती नेता प्रतिपक्ष सत्‍यदेव कटारे को पोस्‍टल बैलेट की अनुमति देने से कांग्रेस का किला और मजबूत हो गया था। इसके अलावा प्रदेश के तीन निर्दलीय विधायकों में से एक और का समर्थन भी मिल जाने से तन्‍खा के राज्‍यसभा में जाने पर मुहर लग गई।

मध्‍यप्रदेश से राज्‍यसभा की कुल तीन सीटों पर चुनाव हुआ। इनमें से कायदे से भाजपा को दो और कांग्रेस को एक सीट मिल जानी चाहिए थी। लेकिन भाजपा ने कांग्रेस की राह में मोटा रोड़ा डालते हुए निर्दलीय के रूप में अपने प्रदेश महामंत्री विनोद गोटिया को मैदान में उतार दिया। और फैसला मतदान से ही हुआ।

यदि सामान्‍य स्थितियां होतीं तो 58-58 वोटों के साथ भाजपा के वर्तमान सांसद अनिल दवे एवं एम.जे.अकबर और प्रथम वरीयता के 57 वोटों के साथ कांग्रेस के प्रत्‍याशी, वरिष्‍ठ वकील विवेक तन्‍खा का चुना जाना तय था। लेकिन विनोद गोटिया के मैदान में आ जाने के कारण तन्‍खा की राह कठिन हो गई थी। 230 सीटों वाली मध्यप्रदेश विधानसभा में भाजपा के पास 165 और कांग्रेस के पास 57 विधायक हैं। बसपा के चार और तीन निर्दलीय विधायक हैं। एक विधायक का निधन हो गया है और एक को कोर्ट ने मताधिकार से वंचित कर दिया है। ऐसी स्थिति में चुनाव जीतने के लिए हरेक उम्मीदवार को प्रथम वरीयता के 58 वोट चाहिए थे। इस गणित के हिसाब से दो सीटें जीतने के बाद भाजपा के पास 48 वोट अतिरिक्त बचे थे। तीसरी सीट जीतने के लिए उसे 10 वोट अतिरिक्‍त चाहिए थे। यह संख्‍या इतनी बड़ी थी कि काफी हाथ पांव मारने के बाद भी भाजपा यह लक्ष्‍य हासिल नहीं कर सकी।

इस बीच भाजपा के एक विधायक राजेंद्र मेश्राम सुप्रीम कोर्ट द्वारा मताधिकार से वंचित करने और ऐन वक्‍त पर नेपानगर के भाजपा विधायक राजेंद्र दादू की सड़क दुर्घटना में मृत्‍यु हो जाने से भाजपा की मुश्किलें और बढ़ गई थीं। उधर भाजपा की राह में लगातार रोड़े आते गए और कांग्रेस की राहें दिन ब दिन आसान होती गईं। विवेक तन्‍खा के लिए पूरी कांग्रेस एकजुट होकर लड़ी। वरिष्‍ठ नेता कमलनाथ और दिग्विजयसिंह ने भोपाल में डटे रहकर मोर्चा संभाला। और कांग्रेस के विधायकों में फूट नहीं पड़ने दी।

अंतिम समय में निर्दलीय विधायकों के समर्थन और कांग्रेस विधायक दल में फूट पर उम्‍मीदें लगाने वाली भाजपा को निराशा ही हाथ लगी। मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और उनके विश्‍वस्‍त संकटमोचक मंत्री डॉ. नरोत्‍तम मिश्रा की तमाम जोड़तोड़ इस बार काम नहीं आ सकी।

राज्‍यसभा की इस जीत ने कांग्रेस को एक बार फिर संकेत दिया है कि यदि वह एकजुट होकर गंभीरता से प्रयास करे तो प्रदेश में भाजपा को चुनौती दी जा सकती है। कांग्रेसियों की ऐसी ही एकता पिछले साल झाबुआ-रतलाम लोकसभा सीट के उपचुनाव के समय भी दिखाई दी थी और वहां उसके प्रत्‍याशी, पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया ने जबरदस्‍त जीत हासिल की थी।

 

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