कल जब मैं यह कॉलम लिख रहा था तो मुझे जरा भी गुमान नहीं था कि मैं जिन राज चड्ढा की ‘सक्रियता’ का जिक्र कर रहा हूं, इतनी जल्दी भारतीय जनता पार्टी से उनके ‘उठावने’ की खबर आ जाएगी। मुझे लगता था कि पार्टी को सचेत करने वाले चड्ढा के बयानों को सकारात्मक तरीके से लिया जाएगा। लेकिन पार्टी ने ‘कड़ा रुख’ अपनाते हुए उन्हें प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया।
निलंबन के बाद राज चड्ढा ने अपनी फेसबुक वॉल पर कुछ दिलचस्प कमेंट डाले हैं। पहले इन कमेंट्स को जरा सिलसिलेवार पढ़ लीजिए..
तेरा निजाम है कि सिल दे जुबान शायर की
ये एहतियात जरूरी है इस बहर के लिए
दुष्यंत कुमार
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वे कहते हैं
व्यक्ति से पहले पार्टी
पार्टी से पहले देश
पर समझते हैं
खुद को पार्टी
खुद को ही देश
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मैं गुनहगार सही, मुझसे नज़र तो मिला
तख़्त से सजा सुनाने वाले, ज़रा ज़मीन पर तो आ
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ये तेरा ताज नही है, ये मेरी पगड़ी है
सर के साथ ही जायेगी, सर का हिस्सा है
शाद
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ग़रीबों के लिए अस्पताल के दरवाज़े बंद करके अगर आप करोड़ों के शामियाने में पंडित दीनदयाल जी को श्रद्धांजलि देते हैं तो उनका अपमान ही करते हैं।
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हे प्रभु, मेरी पार्टी की रक्षा करना
यह तुझ पर कोड़े बरसाने वालों को सर पर बिठा रही है और तेरे लिए कोड़े खाने वालों को बाहर का रास्ता दिखा रही है।
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मेरे व्यंग्य संग्रह ‘आदमक़द कुकुरमुत्ते’ की भूमिका में मैंने लिखा था-
“क़तर कर बरगद किये हैं बोन्साई, कुकुरमुत्ते ध्वजा फहरा रहे हैं “
लगता है किसी ने यह बात अपने दिल पर ले ली
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देर शाम तक कमेंट्स का यह सिलसिला जारी था…
राज चड्ढा को मैं करीब 30 साल से जानता हूं। जब मैं ग्वालियर में था तब राज चड्ढा भाजपा के तेज तर्रार युवा नेताओं में हुआ करते थे। बाकी लोगों से वे इस मायने में अलग थे कि वे जितना अच्छा बोल लेते थे, उतना ही अच्छा लिख भी लेते थे। उनसे बातचीत करने पर भी लगता है कि उनका पढ़ने लिखने से और बुद्धि और विचार से नाता रहा है।
वैसे तो राज चड्ढा सोशल मीडिया पर लंबे समय से ‘ठकुरसुहाती’ नहीं लिख रहे हैं,लेकिन उनका सबसे ताजा कमेंट, लगता है सत्ता और संगठन को ज्यादा ही चुभ गया। चड्ढा का जो कमेंट सबसे ज्यादा चर्चा में आया उसका जिक्र मैं कल कर चुका हूं। जरा उसे फिर पढि़ए-
‘’मुख्यमंत्री जी, प्रदेश में भ्रष्टाचार चरम पर है, अस्पतालों की दुर्दशा असहनीय है। सुधार करिये या हम जैसे लाखों कार्यकर्ताओं को पार्टी से बाहर कर दीजिए, जिन्होंने पंडित दीनदयाल जी के सपनों को पूरा करने के लिए पार्टी में अपना जीवन खपा दिया।
– राज चड्ढा, कार्यकर्ता भाजपा, वर्ष 1962 से’’
मुझे यह अधिकार कतई नहीं है कि मैं किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा अपने किसी सदस्य पर की गई किसी कार्रवाई को लेकर कोई आपत्ति करूं। लेकिन यह मेरा कर्तव्य है कि मैं इस कार्रवाई से उठे सवालों को समाज के सामने जरूर रखूं।
इसलिए पहले आपको बता दूं कि आज 72 साल के हो चुके राज चड्ढा 14 साल की उम्र से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े हैं, वर्तमान भाजपा जब नहीं बनी थी (और शायद आज की भाजपा के कई नेता उस समय पैदा भी नहीं हुए होंगे) तब 1962 में 18 साल की उम्र में वे तत्कालीन जनसंघ से जुड़ गए थे। वे सुंदरलाल पटवा के समय प्रदेश भाजपा के मंत्री रहे, दो बार ग्वालियर भाजपा के निर्विरोध अध्यक्ष चुने गए, ग्वालियर मेला विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे, ग्वालियर चंबल संभाग के पार्टी प्रवक्ता की जिम्मेदारी निभाई और 1993 में विधानसभा का चुनाव भी लड़ा।
इन दिनों राज चड्ढा सामाजिक कार्यों से जुड़े हैं और पक्षियों के लिए दाना-पानी जुटाने वाली एक संस्था संचालित कर रहे हैं। अब न तो राज चड्ढा को पार्टी में रहने से कोई फर्क पड़ने वाला है और न ही पार्टी को यह कदम उठाकर कोई फायदा मिलने वाला है। लेकिन फर्क जो पड़ने वाला है वह यह कि लोग अब सोचेंगे जरूर की आखिर राज चड्ढा ने ऐसी कौनसी गलत बात कह दी थी।
भाजपा आज जिस स्थिति में है हो सकता है राज चड्ढा जैसे पुराने पत्तों के झड़ जाने या झाड़ दिए जाने से उसकी चुनावी संभावनाओं पर कोई असर न हो। लेकिन भाजपा जैसे संगठन का पौधा आज यदि वटवृक्ष बना है, तो उसमें ऐसे पुराने पत्तों का भी महती योगदान रहा है जो टूट कर गिर जाने के बाद भी खाद बनकर उस पौधे को पोषण देते रहे हैं।
जैसा मैंने कहा कि यह किसी भी संगठन का विशेषाधिकार है कि वह अपने सदस्य के साथ कैसा बर्ताव करे। लेकिन जो सवाल मैं पूछना चाहता हूं वो यह है कि सागर में भ्रष्टाचार की शिकायत में सचाई पाने पर सरकार जिन महापौर अभय दरे के सारे वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार छीन लेती है, उस पर तो संगठन आज तक कोई कार्रवाई नहीं कर पाता। दूसरी तरफ भ्रष्टाचार का सवाल उठाने वाले राज चड्ढा आनन फानन में निलंबित कर दिए जाते हैं।
यह कैसा न्याय है कि कांग्रेस से आया जो व्यक्ति दो साल पहले पार्टी से जुड़ा हो उस पर तो जांच हो जाने के बाद भी रहमो करम जारी है और जो पार्टी से 55 साल से जुड़ा है वह एक झटके में हलाक कर दिया जाए।
लगता है राज चड्ढा जैसे लोगों की हैसियत अब भुनगों से ज्यादा नहीं बची है, पता नहीं कब मसल दिए जाएं…