जिंदगी है खेल, कोई पास, कोई फेल

राकेश अचल

आज के व्यंग का शीर्षक आपको अटपटा लगेगा,क्योंकि इसमें व्यंग्य ध्वनि प्रत्यक्ष नहीं है, लेकिन परोक्ष में ये एक ताकतवर व्यंग्य है उन लोगों के लिए जो कोरोनाकाल में अपने आपको सूरमा समझकर जिंदगी से खिलवाड़ करते आ रहे हैं और अंतत: अपनी जिंदगी से खेल रहे हैं। कोई 48 साल पहले जब फिल्म सीता-गीता के लिए स्वर्गीय आनंद बख्शी ने ये गीत लिखा था, तब हम लोग किशोर थे और इसका सिर्फ मजा लेते थे। जिंदगी का मतलब नहीं समझते थे। आज पचास साल बाद कोरोनाकाल में समझ में आ रहा है कि जिंदगी सचमुच कितना बड़ा खेल है!

जिंदगी से खेलना नेताओं का शौक है लेकिन आम जनमानस की मजबूरी है। शौकिया खेलने और मजबूरी में खेलने में बड़ा फर्क है। मजबूरी में खेलने वाले अक्सर जिंदगी के खेल में पास नहीं हो पाते, उन्हें फेल ही होना पड़ता है। पास होने का विशेषाधिकार केवल नेताओं या समरथ लोगों के पास होता है। अब देखिये न रोज-रोज के लॉकडाउन में आम आदमी जिंदगी का खेल कब तक खेल सकता है। उसके पास तो आज खाकर कल के लिए कुछ है ही नहीं और सरकार कह देती है कि दस दिन का लॉकडाउन है जल्दी से राशन-पानी भर लीजिये! आम आदमी की जिंदगी से तो कोई भी खेल सकता है। ख़ास को छूकर दिखाए तब जानें?

बरसात का मौसम है। देश के अनेक हिस्सों में इंद्र देव जनता से खिलवाड़ कर रहे हैं। इतना अधिक मेह बरसा चुके हैं कि जिंदगी के खेल में फेल होने के बाद हारे हुए खिलाड़ी को जलाने के लिए भी खाली जमीन नहीं है। जहां तक नजर जाती है पानी ही पानी दिखाई देता है। अब आप ही बताइये कि आम आदमी कोरोना से लड़े या इंद्र देव से। एक तरफ यमराज और इंद्रदेव दोनों हैं और दूसरी तरफ निरीह जनता, वो क्या खाकर मुकाबला करेगी इन महाबलियों का? ये किस्सा बिहार, असम का है।

अब चलिए राजस्थान, यहां लोग कुर्सी पाने के लिए जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं। कोई बाग़ी है तो कोई दागी केवल यहां की जनता अभागी है। राजस्थान में जनता की जिंदगी से खिलवाड़ में सब बराबर के भागी हैं, लेकिन ऊपर वाला गरीबों की, दुखियों की कहाँ सुनता है। वैसे नीचे वाला (राज्यपाल) भी कुर्सी के लिए जिंदगी से खेल रहे लोगों की कहाँ सुन रहा है। बड़ी अदालत में सुनवाई जरूर होने की उम्मीद है लेकिन तब तक जिंदगी का खेल जानलेवा साबित हो सकता है।

आपको अब अपने सूबे मध्यप्रदेश ले चलते हैं,यहां कुर्सी के खेल में उलझे हमारे मुख्यमंत्री जी खुद जान पर खेल गए और अब चिरायु अस्पताल में भर्ती होकर दवा-दारू करा रहे हैं ताकि जिंदगी के साथ-साथ कुर्सी के खेल में भी अच्छे नंबरों से पास हो जाएँ। गरीब को अपनी कुरसी बचने के लिए दो दर्जन से ज्यादा उप-चुनावों का सामना करना है। पूर्व मुख्यमंत्री को वर्तमान मुख्यमंत्री बनाने वाले हमारे महाराज तो पहले ही जिंदगी से खिलवाड़ कर चुके हैं, लेकिन वे एक बार हारकर हमेशा अजेय रहे हैं इसलिए फिर जीत गए। जीते ही नहीं बिना चुनाव लड़े राज्य सभा में भी पहुँच गए।

जिंदगी और कुरसी के खेल में कब, किसका पलड़ा भारी पड़ जाये, किसी को पता नहीं रहता। न जिंदगी को और न कुरसी को। सब धूल में लाठियां भांजते हैं। किसी को इसके लिए दाढ़ी बढ़ाना पड़ती है तो किसी को इसके लिए अपनी मूंछें मुड़ाना पड़ती हैं। टोटके हैं, जो काम आ जाएँ! कुरसी का खेल अनंत है, कभी थमता ही नहीं। लगातार चलता है। कर्नाटक और मध्यप्रदेश होते हुए अभी राजस्थान में खेला जा रहा है।  यहां से समाप्त होगा तो बिहार और बंगाल की बारी है। इन सूबों में भी जनता ही जिंदगी के खेल में हारेगी, क्योंकि जीतना तो अंतत: राजनीति को है।

जिंदगी के इस खेल को आरडी बर्मन साहब ने कुछ सुरीला बना दिया था, लेकिन आम आदमी कहाँ से बर्मन दा को लेकर आये? आनंद बख्शी साहब तो चिल्ला-चिल्लाकर बता गए कि जिंदगी के खेल में जितने खिलाड़ी हैं उससे कहीं ज्यादा अनाड़ी शामिल हैं। मैं भी जिंदगी के इस खेल के बारे में अपने मित्रों को केवल आगाह कर सकता हूँ, खेलने से रोक नहीं सकता, क्योंकि जिंदगी से खेलना उनका मौलिक अधिकार है।

मौलिक अधिकारों पर रोक-टोक केवल सरकार लगा सकती है, ये उसका विशेषाधिकार है। विशेषाधिकार का हनन जनता नहीं कर सकती। न संसद में न सड़क पर। आम जनता के लिए कोई विशेषाधिकार है ही नहीं सिवाय जिंदगी से खेलने के। जनता को और चाहिए भी क्या? सब कुछ तो सरकार दे रही है। 80 करोड़ जनता को मुफ्त का राशन-पानी मिल रहा है, 20  लाख करोड़ का विशेष पैकेज दे दिया है, अब क्या सरकार की जान लीजियेगा!

बहरहाल जिंदगी के खेल को संभलकर खेलिए। हार-जीत के फेर में मत पढ़िए। अगर मुमकिन हो तो खेलने से मना कर दीजिये। बहाना बना दीजिये। दरवाजा ही मत खोलिये। कोरोना को पहले गश्त कर लेने दीजिये। जब वो थककर चूर हो जाये तबकी तब देखी जाएगी। अभी घर में रहिये, जरूरी हो तो ही बाहर निकलिए। एक सुरक्षित दूरी बनाकर रखिये, मुंह पर मुसीका जरूर बांधिए। घर वापस लौटिए तो नहा-धो लीजिये। इसका मनुवाद से कोई लेना देना नहीं है। ये सब आपको जिंदगी के खतरनाक खेल में विजयी बनाने के तौर-तरीके हैं।

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