उन्‍होंने भौंकने का आरोप लगाया है, आप उन्‍हें काट खाइए

पाकिस्‍तान अधिकृत कश्‍मीर में भारतीय सेना की ओर से की गई ‘सर्जिकल स्‍ट्राइक’ के बाद पैदा हुई परिस्थितियों के चलते भारत के रिश्‍ते न सिर्फ पाकिस्‍तान के साथ बिगड़े हैं, बल्कि चीन के साथ रिश्‍तों में भी अच्‍छी खासी कड़वाहट आई है। उरी में आतंकवादियों द्वारा भारतीय सैन्‍य शिविर पर हमले में 19 जवानों के शहीद हो जाने के बाद पाकिस्‍तान मुख्‍य रूप से भारतीय जनमानस के निशाने पर था। ‘सर्जिकल स्‍ट्राइक’ ने गुस्‍साए जनमानस की छाती थोड़ी ठंडी की, लेकिन जैसे ही चीन अपने दोस्‍त पाकिस्‍तान के समर्थन में आया और उसने पाकिस्‍तानी आतंकवादी संगठनों के खिलाफ अंतरराष्‍ट्रीय कार्रवाई में अडंगा डाला, भारतीय जनमानस की तोपें चीन की ओर मुड़ गईं। इसी गुस्‍से के चलते भारत में चीनी सामान के बहिष्‍कार का नारा आया और सोशल मीडिया पर चीनी सामान को खारिज करने वाली अपीलों की बाढ़ आ गई। इसका असर भी हुआ और व्‍यापारिक संगठनों के ही अनुमान कहते हैं कि इस दीवाली पर चीन में बने सामान की बिक्री में 30 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है।

पेट पर पड़ी इस लात से चीन का बिलबिलाना स्‍वाभाविक था। वहां की सरकार ने तो सीधे सीधे कुछ नहीं बोला, लेकिन वहां के सरकारी मीडिया ने अपना पूरा मुंह खोल दिया। चीन के सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ में छपे एक लेख में कहा गया कि ‘‘भारत के प्रॉडक्ट किसी भी मामले में चीनी प्रॉडक्ट्स का मुकाबला नहींकर सकते। भारत केवल ‘भौंक’ सकता है, दोनों देशों के बढ़ते व्यापार घाटे पर कुछ नहीं कर सकता। भारत के प्रधानमंत्री का ‘मेक इन इंडिया’ प्रोजेक्‍ट पूरी तरहअव्‍यावहारिक है। भारतीय मीडिया और सोशल मीडिया में लोगों की भावनाएं भड़काने के लिए चीनी सामान के बॉयकॉट को लेकर काफी बातें की गई हैं। लेकिन सचाई यह है कि भारतीय सामान किसी भी सूरत में चीनी सामानों का मुकाबला नहीं कर सकते।’’

चीन की ओर से आई इस सख्‍त आलोचना पर प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त करते हुए, गाली के बदले गाली देने के बजाय हमें पूरे मामले पर ठंडे दिमाग से सोचने की जरूरत है। चीन ने हमें भौंकने वाला (कुत्‍ता) बताते हुए हमारी मनोवृत्ति पर तगड़ा तंज कसा है। लेकिन मेरा मानना है कि इस ताने में हमारी भलाई के सूत्र छिपे हैं। यह उलाहना हमारे लिए बहुत बड़ा अवसर लेकर आया है, बशर्ते हम इसे एक चुनौती के रूप में स्‍वीकार करें। ‘ग्‍लोबल टाइम्‍स’ के उस लेख को जरा ध्‍यान से पढि़ए। वह क्‍या कहता है? उसमें यही बात तो कही गई है ना कि भारतीय प्रॉडक्‍ट किसी भी सूरत में चीनी प्रॉडक्‍ट का मुकाबला नहीं कर सकते। बस, हमें इसी बात को चुनौती के रूप में लेकर लागत, कीमत और गुणवत्‍ता के लिहाज से अपने उत्‍पादों को श्रेष्‍ठ बनाने की मुहिम में जुट जाना चाहिए।

हमें याद रखना होगा कि अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर व्‍यापारिक लड़ाइयां दिल से नहीं दिमाग से लड़ी जाती हैं। यदि हम वास्‍तव में चीन को सबक सिखाना चाहते हैं तो हमें अपनी मैन्‍युफैक्‍चरिंग इंडस्‍ट्री को इतना मजबूत बनाना होगा कि हम चीनी उत्‍पादों का मुकाबला कर सकें। यह किसी से छिपा हुआ तथ्‍य नहीं है कि चीनी माल की खासियत है उसका सस्‍ता होना और उसकी सबसे बड़ी कमी है उसकी घटिया क्‍वालिटी। यदि हम अपेक्षाकृत कम कीमत में, उससे अच्‍छी क्‍वालिटी का माल उपभोक्‍ताओं को दे सकने की स्थिति पैदा कर लें तो चीन क्‍या, किसी भी व्‍यापारिक महाशक्ति से मुकाबला कर सकते हैं।

ऐसा नहीं है कि यह काम असंभव है। मैं यहां किसी का प्रचार करने नहीं बैठा हूं, लेकिन हमें यह तो मानना ही पड़ेगा कि बाबा रामदेव ने यह करके दिखा भी दिया है कि कैसे सस्‍ते और अपेक्षाकृत ठीकठाक गुणवत्‍ता वाले भारतीय उत्‍पादों के जरिए बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों के उत्‍पादों का मुकाबला किया जा सकता है। पतंजलि ने दो चार साल में ही अनेक बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों को नाकों चने चबवा दिए हैं। हाल ही में घरेलू उत्‍पाद के अंतर्राष्‍ट्रीय दिग्‍गज हिन्‍दुस्‍तान यूनीलीवर ने भी मंजूर किया है कि पतंजलि ने उसके व्‍यापारिक साम्राज्‍य को अच्‍छी खासी चोट पहुंचाई है। अब यदि एक अकेला पतंजलि अनेक बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों को टक्‍कर दे सकता है, तो सोचिए कि सारी भारतीय उत्‍पाद कंपनियां मिलकर कोई रणनीति बनाएं तो क्‍या नहीं हो सकता।

हम लाख उन्‍मादी बातें कर लें, लेकिन युद्ध किसी भी समस्‍या का स्‍थायी समाधान नहीं हो सकता। और फिर युद्ध के अपने दुष्‍परिणाम इतने गंभीर होते हैं कि वे किसी भी देश की अर्थव्‍यवस्‍था को चौपट कर सकते हैं। भारत वैश्विक अर्थजगत में अपना मजबूत स्‍थान बनाती अर्थव्‍यवस्‍था है। हम चीन से युद्ध में भले ही न जीत सकते हों, लेकिन ‘स्‍वदेशी भाव’ और ‘स्‍वाभिमान’ को जाग्रत कर, उसे व्‍यापार में तो सबक सिखा ही सकते हैं। इसके लिए किसी ‘सर्जिकल स्‍ट्राइक’ की नहीं,बल्कि ‘टेक्टिकल स्‍ट्राइक’ की जरूरत है। यह काम सेना का नहीं, भारत की जनता का है और चीनी माल के बहिष्‍कार की अपील के छोटे से नमूने ने दिखा दिया है कि देश की जनता चाहे तो ऐसे एक क्‍या दस चीन भी भारत का कुछ नहीं बिगाड़ सकते। उन्‍होंने हमें सिर्फ ‘भौंकने’ वाला कहा है, मजा तो तब है जब हम उन्‍हें ‘काट’ कर दिखा दें।

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