मोदीजी, गोमाता के नाम पर हो रहा स्‍वांग बंद करवाइए

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गुजरात में हाल ही में कुछ दलित युवकों को गोरक्षा दल के सदस्‍यों द्वारा बुरी तरह पीटे जाने की घटना से मचे बवाल के बीच, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ को इसके लिए जिम्‍मेदार ठहराते हुए, प्रधानमंत्री के नाम खुला पत्र लिखा है। लालू यादव की फेसबुक वॉल पर पोस्ट किया गया यह पत्र हम अपने पाठकों के लिए प्रकाशित कर रहे हैं।

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आदरणीय मोदीजी,

मैं पूरी विनम्रता से आपका ध्यान आपके गृह राज्य गुजरात में अहमदाबाद से 360 किलोमीटर दूर उना में घटित हुई उस दुर्भाग्यपूर्ण घटना की ओर ले जाना चाहूंगा जिसके बारे में संसद में खड़े होकर गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी ने कहा कि आपको इस घटना से गहरा दुःख पहुंचा है। जी हां, मैं उसी घटना की बात कर रहा हूं जिसमें चमड़ा उद्योग से जुड़े चार दलित युवकों को बेरहमी से सरेआम बुरी तरह से सिर्फ इसीलिए पीटा गया क्योंकि उन्होंने अपनी आजीविका के लिए मरी हुई गायों की खाल को उतारा था। यह जो गौ-सेवा और गौ रक्षा के नाम पर कुकुरमुत्तों की तरह जगह-जगह हिंसक तथाकथित गौ-रक्षक दल इत्यादि पनप रहे हैं, इस आग के पीछे सबसे बड़ा हाथ आरएसएस और आपका ही है। पहले लोकसभा चुनाव और हाल ही में हुए बिहार विधानसभा चुनावों में जिस गैर जिम्मेदारी से पिंक रेवोलुशन, गौ मांस, गाय पालने वाले और गाय खाने वाले आदि गैर जरूरी बातों पर समाज तोड़ने वाले, भड़काऊ भाषण दिए गये थे, उन्हीं का यह असर है की आज किसान खरीद कर गायों को गाड़ी में लादकर ले जाने से भी डरता है। जाने रास्ते में कौन उन्हें गौ रक्षा के नाम पर घेर कर पीट दे या जान ही ले ले।

आपने तो लोगों को बांटकर, जहर रोपकर वोटों की खूब खेती की और जो चाहते थे वो बन गए। पर आपका बोया जहर रह-रह जातिवादी और सांप्रदायिक साँप का रूप धर, समय-समय पर उन्मादी फन उठाता है और देश की शांति और सौहार्द को डस कर चला जाता है। मुझे अत्यंत दुःख है कि मुझे अपने देश के प्रधानमन्त्री को यह बताना पड़ रहा है कि यह आग आपकी ही लगाई हुई है। इस आग में भस्म होकर जो गौपालक, किसान बन्धु, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक मर रहे हैं, उसके दोषी सिर्फ आप, आपकी पार्टी और आपकी असहिष्णु विचारधारा की जननी संघ है। अगर आज मैं आपको कठघरे में खड़ा नहीं करूंगा तो मेरे अंदर का गौ-पालक मुझे कभी माफ नहीं करेगा। पूरे देश समेत विदेशी मीडिया भी जानता था कि हिंदुस्तान में जमीन एवं गरीबों से जुड़ा एक जनसेवक है लालू यादव जो लुटियंस दिल्ली के बंगले एवं मुख्यमंत्री आवास में भी गौ-माता रखता है। मेरे द्वारा दिल्ली के बंगले में गाय रखने पर मुझे जातिवादियों द्वारा ग्वाला और गंवार कहा गया। मैं दिखाने के लिए गाय नहीं रखता, जब कुछ नहीं थे तब भी गाय रखते थे और आज भी रखते है। आज भी शायद मिलाकर बीजेपी के सभी नेताओं के पास इतनी गायें नहीं होंगी जितनी हमारे आवास एवं खटाल (गौशाला) में है।

गाय के नाम पर लोगों को बाँटने वाले नेताओं का गौ-सेवा से क्या सरोकार? आपके जम्बो मंत्रिमंडल के 78 मंत्री लुटियंस दिल्ली के बड़े-बड़े बंगलों में रहते हैं। कितनों ने अपने भीमकाय बंगलों में गाएँ पाली हुई हैं? कुत्ते जरूर पाल रखे होंगे। पर गायों के नाम पर नाक-भौं सिकोड़ेंगे क्योंकि उनका तथाकथित Class consciousness उन्हें इसकी अनुमति नहीं देगा! बिहार में आपने गौ-प्रेम पर सभाओं में बड़े-बड़े लेक्चर और अखबारों में करोड़ों के इश्तेहार दिए थे। मोदीजी, अगर सचमुच आप गौ प्रेम करते हैं तो आप अपने हर मंत्री के लिए नियम बनाइए कि हर कोई अपने बंगलों में गाय पालेगा, खुद अपने हाथों से उनकी देखभाल करेगा, उन्हें नहलाएगा, खिलाएगा और मृत्यु होने पर उनका विधिवत अंतिम संस्कार भी करेगा। ताकि मृत गायों को उनके बंगलों से ले जाते वक्त आप ही के कार्यकर्ता उन दलितों या पिछड़ों की हत्या ना कर दे।

उना की घटना अपने आप में कोई अनोखी या एकमात्र घटना नहीं है, आए दिन यह पागलपन देश के किसी ना किसी कोने में अपना नंगा नाच दिखाता है और आप दूसरी ओर मुंह फेर लेते हैं। आप लोग तो वोट की राजनीति करके चले जाते हैं पर गरीब इसका भुगतान अपनी आय, खुशियों, संभावनाओं और जीवन से करते हैं। गौ-रक्षा के नाम पर मनुवादी इसका प्रयोग अपने हाथों से धीरे-धीरे खिसकती निरंकुशता को पुनः हथियाने के लिए करते हैं, दलित पिछड़ों को उनकी ‘जगह’ दिखाने के लिए करते हैं। देश भर में गायें सड़कों के किनारे कचरा खाती हैं, पर कोई गाय प्रेमी उसे दो रोटियां नहीं खिलाएगा। भूख, प्यास, गर्मी, बीमारी से ये गायें दम तोड़ देती हैं पर कोई गौ रक्षक इसकी सुध लेने नहीं आएगा। पर गौ मांस पर किसी अखलाक की हत्या करने को पूरा गांव ही नहीं, आसपास के गांव के भाजपा कार्यकर्ता भी जुट जाते हैं। ठीक उसी तरह गाय पर राजनीति करने चुनावों में आप लोग जुट जाते हैं।

अब संघ और भाजपा का यह स्वांग बंद होना चाहिए। अब देश को यह बर्दाश्त नहीं है कि किसी ‘मां भारती के सन्तान’ रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या पर प्रधानमंत्री का मर्म एक हफ्ते बाद जागे। देश के दलित और पिछड़े, संघ की थोपी हुई आचार संहिता को मानने से इंकार करते हैं। अपने विरोध और प्रदर्शन से दलितों ने गुजरात की सरकार को अपने महत्व का आभास कराया है, समाज को आइना दिखाया है और अपने अंदर पल रही कटुता की एक झलक मात्र को दिखाया है।

प्रधानमंत्री जी, ब्राह्मणवादी और मनुवादी मानसिकता को पिछले दरवाजे से हम दलित, पिछड़े और आदिवासियों पर पुनः लादने का प्रयास बंद कीजिए, वरना इसका परिणाम देश के लिए विध्वंसक होगा। देश का बहुसंख्यक वर्ग देश में हजारों साल तक चलने वाले काले सामाजिक ढांचे की पुनरावृत्ति किसी कीमत पर होने नहीं देगा। संघ के मोहन भागवत जैसे विषैली राजनीति करने वालों के लिए मेरी एक ही चेतावनी है- चेतें अथवा अपना कुनबा समेटें!

 

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