मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश से लेकर कर्मचारियों की चयन परीक्षा तक में हुए महाघोटाले के बहुचर्चित व्यापमं कांड ने मध्यप्रदेश की छवि को जो नुकसान पहुंचाया है वह दाग वर्षों तक धुलने वाला नहीं है। हालत यह है कि यहां के किसी डॉक्टर से इलाज में कोई कमी रह जाए या उससे कोई केस बिगड़ जाए तो तत्काल कमेंट हो जाता है कि ‘’क्या भईया, व्यापमं से चुनकर आए हो क्या?’’ यानी मध्यप्रदेश का व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले और भ्रष्टाचार का पर्याय बन गया है।
सरकार व्यापमं के इन दागों को जैसे तैसे धोने की कोशिश कर ही रही है कि हाल ही में उसके लिए एक नई मुसीबत खड़ी हो गई। इस मुसीबत का सबब भी सरकारी कर्मचारियों और अफसरों की भरती से जुड़ी एक संस्था है। पिछले कई दिनों से मीडिया में मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा सरकारी कर्मचारियों की भरती को लेकर हुई वर्ष 2017 की चयन परीक्षा के बारे में सवाल उठ रहे हैं। इस परीक्षा का परिणाम पिछले माह ही घोषित हुआ है।
सोशल मीडिया से लेकर मुख्य मीडिया तक में इस आशय की खबरें सुर्खियां बन रही हैं कि एमपीपीएससी ने पिछले दिनों जो परीक्षा आयोजित की उसमें एक समुदाय विशेष के उम्मीदवारों को लाभ पहुंचाया गया है। मीडिया में इस घोटाले को एमपीपीएससी का ‘जैन घोटाला’ नाम दिया गया है, क्योंकि सबूत के तौर पर सोशल मीडिया में जो कुछ दस्तावेज धड़ल्ले से शेयर हो रहे हैं उनमें एक ऐसी सूची है जिनमें परीक्षा में सफल बताए जाने वाले ज्यादातर उम्मीदवार जैन समुदाय के ही हैं।
आरोपों में संदेह जताया जा रहा है कि मप्र लोक सेवा आयोग की परीक्षा में जैन समुदाय के अभ्यर्थियों के एक समूह को फायदा पहुंचाते हुए उन्हें ‘कृपापूर्वक’ पास किया गया। इन सफल उम्मीदवारों के चयन पर उंगली उठाते हुए जो कारण बताए जा रहे हैं उनमें एक कारण यह भी है कि मप्र पीएससी के परीक्षा नियंत्रक दिनेश जैन और प्रभारी परीक्षा नियंत्रक मदनलाल गोखरू दोनों जैन हैं।
बताया जाता है कि मध्यप्रदेश के कई दूसरे जिलों के निवासी जैन छात्रों ने आगर मालवा स्थित एक खास परीक्षा केंद्र को परीक्षा देने के लिए चुना और आयोग के अफसरों ने उन्हें वही केंद्र आवंटित भी कर दिया। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि इस परीक्षा केंद्र का सर्वेसर्वा भी जैन समुदाय से ही है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस केंद्र से परीक्षा देने वाले 80 प्रतिशत से ज्यादा जैन पास हो गए।
मीडिया में आई सूचनाओं के अनुसार इसी परीक्षा के एक उम्मीदवार ने संदेह जताया है कि राज्य सेवा2017 की परीक्षा में यह घोटाला अफसरों और उम्मीदवारों की मिलीभगत के चलते संभव हुआ। हैरानी की बात यह है कि अलग अलग जिलों के रहने वाले लोगों ने एक खास परीक्षा केंद्र की मांग की, उन्हें वह परीक्षा केंद्र आवंटित भी हुआ और उन्होंने वहीं से परीक्षा भी दी। परीक्षा परिणामों का आखिरी पेज इस संदेह की पुष्टि सी करता प्रतीत होता है, जिसमें 24 में से 18, लोग जैन समुदाय से ही है।
जैसे ही यह मामला सोशल मीडिया में उछला, जाहिर है उस पर प्रतिक्रियाएं भी आईं। कांग्रेस के नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एक अक्टूबर को लगातार तीन ट्वीट करते हुए इसकी जांच की मांग की। उन्होंने पहले ट्वीट में लिखा- ‘’व्यापम के बाद अब मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा भी संदेह के घेरे में आ गयी है।‘’ उनका दूसरा ट्वीट था- ‘’एक समाज विशेष के परीक्षार्थियों को लाभ पहुचने की शिकायत सामने आई है। इस सरकार के नुमाइंदों ने मिलकर फिर एक भ्रष्ट खेल को अंजाम दिया।’’ और तीसरे ट्वीट में सिंधिया ने लिखा- ‘’मेरी मांग है कि इस शिकायत की गंभीरतापूर्वक ईमानदारी से जांच की जाए जिससे सत्य सामने आ सके।‘’
इसी तरह मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के राज्य सचिव बादल सरोज ने बयान जारी कर कहा कि- ‘’व्यापमं के पदचिन्हों पर चलते हुए मध्यप्रदेश पीएससी के परिणामों ने पढ़े लिखे युवाओं के भविष्य पर कालिख पोतने का काम किया है। निष्पक्ष और प्रतियोगी मानी जाने वाली परीक्षाओं का पूरी तरह भ्रष्टाचारीकरण कर प्रदेश में एक नया रिकॉर्ड कायम किया गया है। इस बार परिणामों ने नकदी लेनदेन के साथ एक नया आयाम- जाति और धर्म का भी जोड़ा है।‘’
इसी बीच बुधवार को खबर आई है कि सरकार ने एमपीपीएससी से इस मामले से जुड़े दस्तावेज तलब किए हैं। मुख्यमंत्री सचिवालय ने भी इस संबंध में आयोग से रिपोर्ट मांगी है। आयोग की प्रवक्ता और उप सचिव वंदना वैद्य ने मीडिया से कहा कि सरकार ने हमसे मुख्य परीक्षा के परिणामों की विस्तृत जानकारी मांगी थी। हमने सफल उम्मीदवारों की सूची सहित यह पूरी जानकारी सरकार को भेज दी है।
जब वंदना वैद्य से उस संदिग्ध परीक्षा केंद्र के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था कि इसका उत्तर तो वे उम्मीदवार ही बेहतर दे सकते हैं कि उन्होंने अन्य शहर के निवासी होने के बावजूद आरंभिक और मुख्य परीक्षा के लिए अलग अलग शहरों के परीक्षा केंद्र को क्यों चुना? हालांकि वैद्य ने दावा किया कि आयोग की परीक्षा प्रणाली पूरी तरह सुरक्षित है और उसमें किसी तरह की अनियमितता की गुंजाइश नहीं है।
कुल मिलाकर यह पूरा मामला राज्य सेवा के कर्मचारियों का चयन करने वाली संस्था की प्रतिष्ठा से जुड़ा है। यदि सवाल उठ रहे हैं तो सरकार को चाहिए कि वह मामले की गहराई से पड़ताल कर लोगों की शंकाओं का तत्काल निराकरण करे।
यह मामला इसलिए भी संवेदनशील है क्योंकि इसके चलते एक समुदाय विशेष बदनाम हो रहा है। अभी यह तय नहीं है कि घोटाला हुआ है या नहीं लेकिन मीडिया में चल रही बातें जैन समुदाय को कठघरे में खड़ा कर रही हैं। इसलिए भी सरकार का दायित्व बनता है कि वह जल्द से जल्द वस्तुस्थिति का ब्योरा लेकर प्रदेश की जनता के सामने आए।
यदि ऐसा नहीं हो पाया तो व्यापमं के बाद प्रदेश में राज्य सेवा के अधिकारियों व कर्मचारियों के चयन पर भी हमेशा उंगली उठती रहेगी। खुद जैन समाज को भी आगे आकर यह मांग करनी चाहिए कि सरकार इस मामले की गहराई से जांच कर सच सामने लाए ताकि जैन समुदाय पर इस तरह की कोई उंगली न उठे।