जंबूरी मैदान से नई ‘राजनीतिक जंबूरी’ की शुरुआत

पंद्रह साल बाद मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल में उसी जंबूरी मैदान से एक नए राजनीतिक परिदृश्‍य की शुरुआत होने जा रही है जो अब तक भारतीय जनता पार्टी की जंबो रैलियों का गवाह रहा है। इसी जंबूरी मैदान पर निवर्तमान सरकार और भाजपा ने समय-समय पर अपना शक्ति प्रदर्शन करने वाले कई बड़े आयोजन किए। लेकिन इस बार यह मैदान एक नई राजनीतिक करवट का गवाह बनने जा रहा है।

खबरें कहती हैं कि कांग्रेस विधायक दल के नेता कमलनाथ के शपथ ग्रहण समारोह में आज कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी के अलावा विपक्षी दलों के भी कई बड़े नेता शामिल होने आ रहे हैं। इस लिहाज से एक मायने में भोपाल लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी महागठबंधन की आधार भूमि बनने जा रहा है।

विपक्षी दलों के नेताओं का ऐसा जमावड़ा हालांकि कुछ माह पहले कर्नाटक में भी हुआ था लेकिन कर्नाटक और मध्‍यप्रदेश में मोटा फर्क यह है कि वहां कांग्रेस के समर्थन से जेडीएस की सरकार बनी थी और यहां कांग्रेस की खुद की सरकार बनने जा रही है। इस नई सरकार को बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने समर्थन दिया है।

हिन्‍दी हृदयप्रदेश कहे जाने वाले मध्‍यप्रदेश, छत्‍तीसगढ़ और राजस्‍थान के विधानसभा चुनावों में हुई जीत ने, भारत के राजनीतिक परिदृश्‍य में कांग्रेस को, विपक्षी दलों द्वारा की जा रही भाजपा विरोधी राजनीति में बढ़त दिलाई है। माना जा रहा है कि आने वाले समय में भाजपा विरोधी महागठबंधन का जो खाका तैयार होगा उसमें इन तीनों राज्‍यों के चुनाव परिणामों से उभरे नए समीकरणों की मुख्‍य भूमिका होगी।

लोकसभा चुनाव को अभी करीब चार माह शेष हैं। इन चार माह में कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि वह मध्‍यप्रदेश, राजस्‍थान और छत्‍तीसगढ़ में ऐसा शासन और प्रशासन दे जिसे लेकर वह न सिर्फ इन राज्‍यों में, बल्कि अन्‍य राज्‍यों में भी, यहां का उदाहरण देते हुए जनता से लोकसभा के लिए वोट मांग सके।

यह ठीक ही हुआ है कि नेता चयन के शुरुआती झटकों से कांग्रेस जल्‍दी ही उबर गई और उसने तीनों राज्‍यों में अलग अलग फार्मूले अपनाते हुए, देश, काल और परिस्थिति के अनुरूप नेताओं के बीच सामंजस्‍य का तरीका निकालकर बात को बिगड़ने से बचा लिया। नई और पुरानी पीढ़ी के नेताओं के बीच टकराहट का सबब बन सकने वाली स्थितियों के बीच राहुल गांधी के लिए यह फैसला करना निश्चित रूप से आसान नहीं रहा होगा। लेकिन ऐसा लगता है कि तीनों राज्‍यों में हरसंभव कोशिश की गई है कि फैसले से पार्टी की छवि और संभावना को कोई नुकसान न हो।

राज्‍यों का प्रकरण तो निपट गया लेकिन अब सारी निगाहें लोकसभा चुनाव पर हैं। राज्‍यों में जो भी नेतृत्‍व दिया गया है उसकी परीक्षा दो स्‍तरों पर होने वाली है। एक तो नए नेतृत्‍व को संबंधित प्रदेशों में बेहतर शासन-प्रशासन देकर जनता की उम्‍मीदों पर खरा उतरना होगा, वहीं उन्‍हें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उनके काम करने के तौर तरीकों और किए गए काम के परिणामों से जनता में ऐसा सकारात्‍मक संदेश जाए जिसके आधार पर वे लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को अपनी पसंद के रूप में चुनें।

राजस्‍थान को छोड़ दें तो मध्‍यप्रदेश और छत्‍तीसगढ़ में बदलाव 15 साल बाद हुआ है। इतनी लंबी समयावधि की आदतें और अनुभव बहुत जल्‍दी नहीं छूटते। बदलाव ताजा ताजा होने के कारण लोग तुरंत तुलना करेंगे। इस तुलना में नई सरकार का पलड़ा पुरानी सरकार के मुकाबले भारी नहीं रहा तो मुश्किलें बढ़ सकती हैं। लोकसभा चुनाव के लिए समय बहुत कम बचा रहने के कारण, समय के साथ भर जाने वाले घाव भी ताजा ही बने रहेंगे।

जनमानस की भावनाओं को पढ़ना और उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप सरकार देना कितना मुश्किल है यह बात पिछले लोकसभा चुनाव के बाद बनी नरेंद्र मोदी सरकार को लेकर पनपी धारणाओं से अच्‍छी तरह समझी जा सकती है। सरकारें जब उम्‍मीदों के सैलाब पर बनती हैं तो उम्‍मीदें पूरी न हो पाने की स्थिति में उनके बह जाने का खतरा भी बना रहता है।

यहां एक बात और याद रखी जानी चाहिए कि मध्‍यप्रदेश और राजस्‍थान में कांग्रेस की सरकार भले ही बन रही है पर यहां विपक्ष कमजोर स्थिति में नहीं है। मध्‍यप्रदेश में तो कतई नहीं। इन हालात में सरकार पर जनता की अपेक्षाएं पूरी करने का भार तो रहेगा ही, विपक्ष का भी भारी दबाव रहेगा। विपक्ष की हर चंद कोशिश होगी कि वह सरकार को नाकाम साबित कर जनता को यह अहसास दिलाए कि उसने पहले वाली सरकार को सत्‍ता से हटाकर भूल की है।

जनता के मन में कांग्रेस को वोट देने का पछतावा नहीं बल्कि संतोष हो यह सिर्फ और सिर्फ काम और बेहतर परिणाम से ही संभव हो सकता है। कांग्रेस मध्‍यप्रदेश में अब तक भाजपा की जिन खामियों और बुराइयों को लेकर आलोचना करती रही है, वे बुराइयां उसके राज में कतई न पनप पाएं यह सुनिश्चित करना सत्‍तारूढ़ दल की जिम्‍मेदारी होगी।

एक बात और… आमतौर पर कोई भी सरकार बनने या उसका नेता चुन लिए जाने के बाद यह मान लिया जाता है या ऐसा माहौल बना दिया जाता है कि अब तो सारी जिम्‍मेदारी मुख्‍यमंत्री की ही है। आज भले ही कमलनाथ मुख्‍यमंत्री के रूप में शपथ ले रहे हों लेकिन कांग्रेस में यह भाव जागना बहुत जरूरी है कि आज उसका हरेक नेता और कार्यकर्ता संविधान और कानून के राज के पालन और जनसेवा की शपथ ले रहा है। लोककल्‍याणकारी राज और सुशासन देना सिर्फ मुख्‍यमंत्री का ही नहीं पूरी कांग्रेस पार्टी का कर्तव्‍य है। अगले पांच साल सिर्फ मुख्‍यमंत्री को ही नहीं पूरी पार्टी को एकजुट होकर इस कर्तव्‍य पर खरा उतरने का संकल्‍पबद्ध प्रयास करना होगा।

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