वो तो पंगा हो गया, वरना कांग्रेस ने दांव तो ठीक चला था

मध्‍यप्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर एक्जिट पोल के अनुमान सामने आने के 24 घंटे के भीतर दो महत्‍वपूर्ण बयान आए हैं। इनमें से एक बयान मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का है जिन्‍होंने एक्जिट पोल अनुमानों के आधार पर सत्‍ता में अपनी वापसी को मुश्किल बताने वालों को दो टूक लहजे में कहा- ‘’मैं दिन रात जनता के बीच रहता हूं। कोई मुझसे भी बड़ा सर्वेक्षक नहीं हो सकता। मैं विश्‍वास के साथ कह रहा हूं कि भाजपा सरकार बनाएगी।‘’

दूसरा बयान मैंने भाजपा छोड़कर कांग्रेस में गए बुजुर्ग राजनेता और पूर्व मंत्री सरताजसिंह का देखा जिनके हवाले से कहा गया कि- प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन रही है। लेकिन लोकसभा के लिए कांग्रेस को बहुत मेहनत करना होगी। कांग्रेस का मैनेजमेंट अच्‍छा तो है, पर भाजपा के मुकाबले बेहतर नहीं…’’

शिवराज का बयान तो प्रदेश के करीब करीब सभी अखबारों में छपा है, लेकिन सरताज का बयान मैंने सिर्फ एक जगह देखा। फिर भी मैं मानकर चल रहा हूं कि ये बयान उन्‍हीं शब्‍दों और अंदाज में दिए गए होंगे जिस अंदाज में वे मीडिया में आए हैं। इन दोनों बयानों का उल्‍लेख करने के पीछे मेरे अपने कारण हैं।

दरअसल ये दोनों बयान मेरी उस बात को ही आगे बढ़ाते हैं जो मैंने संगठन और प्रबंधन की क्षमता को लेकर भाजपा व कांग्रेस की तुलना करते हुए कल कही थी। कोई कुछ भी कहे लेकिन शिवराज की इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि प्रदेश में वे उन गिने चुने नेताओं में हैं जिनका जनता से संवाद भी है और संपर्क भी। उनके इस दावे को अतिशयोक्ति नहीं माना जाना चाहिए कि ‘मुझसे बड़ा सर्वेयर कौन?’

लेकिन शिवराज जिस आत्‍मविश्‍वास से फिर सत्‍ता में लौटने का दावा कर रहे हैं उसके पीछे वे अकेले नहीं बल्कि भाजपा की संगठन क्षमता और उस संगठन को बेक सपोर्ट करने वाले राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के नेटवर्क की शक्ति है। भाजपा में चुनाव लड़ने वाला तंत्र कांग्रेस से बेहतर है यह बात सरताजसिंह के कथित बयान से भी पुष्‍ट होती है।

ऐसे में कांग्रेस के लिए, परिणाम आने से पहले चिंता और विचार की बात यही होनी चाहिए कि, भले ही लोग इस बार बदलाव चाहते हों, लेकिन लोगों में पनपी बदलाव की यह इच्‍छा पूरी करवाने के लिए कांग्रेस का कार्यकर्ता तंत्र कितनी मजबूती से उन्‍हें मतदान केंद्रों तक ला पाया। यदि कांग्रेस सिर्फ बदलाव की बयार पर सवारी करके खुश हो रही हो तो उसे ईवीएम खुलने तक यह बात बार-बार याद रखनी चाहिए कि भाजपा के चुनाव तंत्र ने हर स्‍तर पर और हर तिकड़म के साथ ग्राउंड वर्क किया है।

कांग्रेस और भाजपा के वर्क फोर्स की जब बात चली है तो आपसे कुछ और बातें शेयर करता चलूं। भाजपा सूत्रों के मुताबिक प्रदेश में उनके सक्रिय सदस्‍यों की संख्‍या करीब सवा लाख है। पार्टी में हर सौ सदस्‍य पर एक सक्रिय सदस्‍य होता है। इस हिसाब की सदस्‍य संख्‍या लगभग सवा करोड़ होती है। दूसरी तरफ कांग्रेस के सक्रिय सदस्‍यों की संख्‍या एक लाख है और वहां 25 सदस्‍यों पर एक सक्रिय अथवा सुपात्र सदस्‍य होता है। इस लिहाज से कांग्रेस का सदस्‍यता नेटवर्क 25 लाख का होता है। यानी सदस्‍यता नेटवर्क के मामले में भाजपा कांग्रेस से पांच गुना अधिक मजबूत है।

भाजपा ने जहां इस बार अपने 15 साल के कार्यकाल की उपलब्धियों को जनता के बीच जाने का आधार बनाया वहीं कांग्रेस वैसा कोई बड़ा आधार अपने पक्ष में लेकर जनता के बीच नहीं जा सकी। अलबत्‍ता उसका किसानों की कर्ज माफी का वादा जरूर भाजपा के तमाम वादों पर भारी पड़ता नजर आया। कर्ज माफी के कांग्रेसी पत्‍ते के जवाब में भाजपा ने पांच एकड़ तक के किसानों के खाते में अनाज के बोनस की राशि सीधे जमा करवा देने का वायदा जरूर किया, लेकिन यह कर्ज माफी के आकर्षण को कम करने वाला तीर साबित नहीं हो सका।

जैसा मैंने कहा कि मध्‍यप्रदेश की तासीर सांप्रदायिक नहीं रही है। लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष कमलनाथ के एक वीडियो को लेकर जब भाजपा ने कांग्रेस पर चुनाव का सांप्रदायीकरण करने का आरोप लगाया तो मामला सांप्रदायिक होता लगा, पर बात ने उतना तूल नहीं पकड़ा। दरअसल कांग्रेस ने इस बार भाजपा को उसकी ही चालों में उलझाने की रणनीति अपनाई थी और इसके तहत साम, दाम, दंड, भेद सभी तरीके अपनाए गए।

इसी सिलसिले में मुस्लिम समुदाय को 90 फीसदी तक की वोटिंग के लिए राजी करने का कमलनाथ का दांव चुनावी लिहाज से बहुत सटीक था। क्‍योंकि प्रदेश में मुस्लिमों की जनसंख्‍या करीब सात प्रतिशत अनुमानित है। 2011 में प्रदेश की जनसंख्‍या 7 करोड़ 26 लाख 26809 थी। राज्‍य की जनसंख्‍या वृद्धि दर औसतन दो प्रतिशत सालाना है। इस हिसाब से 2018 में प्रदेश की जनसंख्‍या 8 करोड़ 28 लाख के आसपास बैठती है। इसमें यदि मुस्लिम आबादी सात प्रतिशत मानी जाए तो उनकी संख्‍या 57 लाख 96 हजार होती है।

मुस्लिमों की इस संख्‍या को आधार मानते हुए जनसंख्‍या और वोटरों के अनुपात के लिहाज से आकलन करें तो प्रदेश में आज की स्थिति में मुस्लिम वोटर लगभग 35 लाख होते हैं। यानी 51 जिलों के हिसाब से हर जिले में औसतन 68 हजार से अधिक और 230 विधानसभा क्षेत्रों के हिसाब से प्रत्‍येक विधानसभा क्षेत्र में औसतन 15 हजार से अधिक। अब यदि कांग्रेस की यह रणनीति थी कि मुस्लिमों का 90 फीसदी तक मतदान कराया जाए, तो इसका मतलब है हरेक विधानसभा क्षेत्र में कम से कम 13 हजार वोट।

इस बार चुनाव मैदान में जिस तरह कांटे की टक्‍कर है और ज्‍यादातर सीटों पर हार जीत का अंतर बहुत कम रहने की संभावना है, वहां 13 हजार वोट तो पूरा ही पांसा पलट सकते हैं। यह तो पता नहीं लगाया जा सकता कि कांग्रेस इनमें से कितने वोट डलवाने में कामयाब रही होगी या कि कितने प्रतिशत मुसलमानों ने कांग्रेस को वोट दिया होगा, लेकिन यदि सचमुच कांग्रेस ने ऐसा करवा लिया होगा तो उसका यह दांव भाजपा पर बहुत भारी पड़ सकता है।

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